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हाइलाइट्स

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में चश्‍मे के बजाय लेंस लगाने वालों की संख्‍या बढ़ रही है.
आरपी सेंटर एम्‍स विशेषज्ञ कॉन्‍टेक्‍ट लेंस के बजाय मरीजों को चश्‍मा लगाने की सलाह देते हैं.

Contact lenses VS Eye Glasses: बात जब खूबसूरती की आती है तो सबसे पहले आंखों का ही जिक्र आता है लेकिन खूबसूरत दिखने से भी ज्‍यादा खूबसूरती देखने के लिए आंखें जरूरी हैं. इसलिए जब भी नजर कमजोर पड़ती है तो चश्‍मा लगाकर उसे ठीक किया जाता है. पिछले कुछ समय से लोग चश्‍मा लगाने के झंझट से बचने के लिए आंखों में कॉन्‍टेक्‍ट लेंस लगवाने की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2019 से 2025 तक कॉन्‍टेक्‍ट लेंसेंज का राजस्‍व के लिहाज से कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट 7.5 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है. हालांकि हाल ही में अमेरिका के फ्लोरिडा से लेंस पहनने से आंख की रोशनी छिनने के एक सनसनीखेज मामले के सामने आने के बाद लोगों में लेंस को लेकर डर पैदा हो गया है. वहीं चश्‍मा या कॉन्‍टेक्‍ट लेंस, आंखों के लिए क्‍या फायदेमंद है? इसको लेकर भी बहस शुरू हो गई है.

चश्‍मा या कॉन्‍टेक्‍ट लेंस, असल में आंखों के लिए क्‍या बेहतर है? इसे लेकर News18Hindi ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑप्‍थेल्मिक साइंसेज की प्रोफेसर डॉ. राधिका टंडन से बातचीत की है.

डॉ. राधिका टंडन कहती हैं कि चश्‍मा हो या कॉन्‍टेक्‍ट लेंस परेशानी के इलाज के रूप में दोनों ही चीजें आंखों में लगाई जाती हैं. हालांकि नेत्र विशेषज्ञ अलग-अलग परिस्थितियों में मरीजों को इन्‍हें लगाने के लिए कहते हैं क्‍योंकि कुछ मरीजों के लिए चश्‍मा ज्‍यादा कारगर होता है तो कुछ मरीजों की आंखों में लेंस लगाने की जरूरत पड़ती है. दोनों के ही अपने-फायदे-नुकसान हैं लेकिन बतौर ऑप्‍थेल्‍मोलॉजिस्‍ट चश्‍मा लगाना कॉन्‍टेक्‍ट लेंस लगाने से ज्‍यादा आसान और आंखों के लिए बेहतर है.

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डॉ. राधिका कहती हैं कि ऑप्‍थेल्‍मोलॉजिस्‍ट मरीजों को कॉन्‍टेक्‍ट लेंस के बजाय चश्‍मा लगाने की सलाह देते हैं. चश्‍मे को लगाना और उतारना बेहद आसान है. इसके लिए विशेष एजुकेशन की जरूरत नहीं पड़ती. यह आंख के ऊपर लगता है, ऐसे में आंख के अंदरूनी हिस्‍से से न तो यह छूता है और न ही इससे कोई संक्रमण पैदा होने का खतरा होता है. इसे कितने भी घंटे लगातार पहना जा सकता है. इसके लिए विशेष हाइजीन या सावधानी बरतने की भी जरूरत नहीं पड़ती. ये ही सारी वजहें हैं कि बच्‍चे हों या बहुत व्‍यस्त रहने वाले बुजुर्ग और व्‍यस्‍क हों, उन सभी को चश्‍मा पहनने की ही सलाह दी जाती है.

डॉ. कहती हैं कि कॉन्‍टेक्‍ट लेंस भी अधिकतम 8 या 10 घंटे तक ही लगातार पहनने की सलाह दी जाती है. इससे ज्‍यादा पहनने या साफ-सफाई का ध्‍यान न रखने पर यह आंख को नुकसान पहुंचा सकता है. आंख के अंदर कॉर्निया पर लगने और हाईजीन न रख पाने से खतरनाक बैक्‍टीरिया पनप जाते हैं और आंख की रोशनी भी जा सकती है. लोग लेंस लगाकर सो जाते हैं या 24 घंटे से ज्‍यादा लगाए रखते हैं. इससे आंखों में हाइपोक्सिया यानि ऑक्‍सीजन की कमी हो जाती है. कॉर्निया का एपीथिलिया भी बीमार हो जाता है. कभी आंख में हल्‍का डिफेक्‍ट भी आ जाता है या फिर आंख के आसपास मौजूद कीटाणु भी कॉर्निया को नुकसान पहुंचाने लगते हैं. कई बार कॉन्‍टेक्‍ट लेंस संक्रमित होते हैं या उनका सॉल्‍यूशन भी कंटामिनेटेड हो सकता है जो पुतली को संक्रमित कर सकते हैं.

इन लोगों दी जाती है लेंस की सलाह

एम्‍स की डॉ. कहती हैं कि जिन लोगों की दोनों या एक आंख का नंबर बहुत ज्‍यादा होता है और एक का कम होता है, ऐसी हालत में एक चश्‍मे से देखने में मरीज को दिक्‍कत होती है. कई बार चश्‍मे से भी इमेज साफ नहीं दिखती या किसी कारण से चश्‍मा इस्‍तेमाल करने में परेशानी होती है तो ऐसे लोगों को चश्‍मे की बजाय नजर वाला कॉन्‍टेक्‍ट लेंस लगाने की सलाह दी जाती है. हालांकि लेंस एक मेडिकेटेड प्रक्रिया है ऐसे में इसे लगाने के लिए पेशेंट एजुकेशन या ट्रेनिंग बेहद जरूरी है कि कैसे लेंस लगाएं और कैसे संभालकर उसे निकालें. थोड़ी सी भी दिक्‍कत दिखाई दे तो बिना इंतजार किए ऑप्‍थेल्‍मोलॉजिस्‍ट को दिखाएं.

Tags: Eyes, Health News

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