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सरकंडे की घास की छत करौली में टिकाऊ और किफायती विकल्प.

Last Updated:November 20, 2025, 18:50 IST

राजस्थान के करौली में सरकंडे और मुंजा की घास से बनने वाली छतें पीढ़ियों से भरोसे की निशानी रही हैं. आधुनिक सीमेंट-कंक्रीट की छतें जहां 10–12 साल में मरम्मत मांगने लगती हैं, वहीं सरकंडे की घास की छतें 30–35 साल तक बिना टूट-फूट के टिक जाती हैं. इसकी सबसे बड़ी खासियत है प्राकृतिक तापमान नियंत्रण—गर्मी में यह कूलर की तरह ठंडक देती है और सर्दियों में स्पंज की तरह गर्माहट संजोकर कमरे को गर्म रखती है. बारिश, धूप और तेज़ हवाओं में भी यह आसानी से खराब नहीं होती.करौली

सरकंडे की घास… देखने में भले ही साधारण लगे, लेकिन करौली में यह घास सिर्फ एक छत नहीं, बल्कि पीढ़ियों का भरोसा है. जहां आधुनिक मकानों की सीमेंट-कंक्रीट की छतें 10–12 साल में ही मरम्मत माँगने लगती हैं, वहीं सरकंडे की घास से बनी छतें 30 साल से भी अधिक समय तक बिना टूट-फूट के टिक जाती हैं.

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इस छत की सबसे खास बात इसका प्राकृतिक तापमान नियंत्रण है.<br />अपने पक्के घर पर इस घास की छत डाल रहे ऋषिकेश सैनी बताते हैं कि यह छत गर्मी में बिल्कुल कूलर की तरह काम करती है. हल्की सी हवा भी लगे तो कमरे के अंदर ठंडक बनी रहती है.

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सर्दियों में यही छत स्पंज की तरह गर्माहट को संजोकर रखती है, जिससे कमरे बाहर की तुलना में ज्यादा गर्म रहते हैं. बुजुर्ग नाथू लाल सैनी का कहना है कि अगर इस घास की छत को ठीक तरीके से बांधा जाए तो यह 30–35 साल तक आराम से चलती है.

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बारिश, धूप, तूफान – कुछ भी हो, यह छत आसानी से खराब नहीं होती. सरकंडे की घास की यही मजबूती इसे आज भी ग्रामीण इलाकों में नंबर-वन पसंद बनाती है. करौली में सरकंडा और मुंजा की यह घास पहले केवल गरीबों की छत कहलाती थी, लेकिन अब समय बदल रहा है. कई पक्के और आधुनिक मकानों में भी लोग इसकी छत बनवा रहे हैं.

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स्थानीय निवासी राजाराम सैनी बताते हैं कि सीमेंट-कंक्रीट की छत डालने में 3–4 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं, जबकि सरकंडे की घास की छत सिर्फ 50 हजार रुपये में तैयार हो जाती है. कम लागत, ज्यादा मजबूती और प्राकृतिक तापमान नियंत्रण—यही तीन वजहें हैं कि यह घास की छत आज भी करौली के हजारों परिवारों का सहारा बनी हुई है.

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इस घास की छत भले ही कुदरत की साधारण देन हो, लेकिन इसकी खूबी आज भी आधुनिक निर्माण तकनीकों को चुनौती देती है.

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राजस्थान के करौली में सरकंडे की घास की छत की पहचान गरीब की छत के नाम से भले ही होती हो. लेकिन यह छत सुविधाओं के मामलों में आज भी यहां के लोगों की पहली पसंद बनी हुई है.

First Published :

November 20, 2025, 18:50 IST

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करौली में टिकाऊ और किफायती विकल्प है सरकंडे की घास की छत

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