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कोरोना काल में जयपुर की 2 बेटियां चुका रही माटी का कर्ज, जुटी हैं पीड़ितों की सेवा में Rajasthan news-Jaipur news-Positive India-Corona era- 2 daughters of Jaipur are busy in service of victims

कोरोना मरीजों तक पहुंचने वाला ये खाना केवल खाना नहीं है बल्कि जिंदगी बचाने का प्रसाद है. इस खाने को पूरी तन्मयता के साथ तैयार किया जाता है.

कोरोना मरीजों तक पहुंचने वाला ये खाना केवल खाना नहीं है बल्कि जिंदगी बचाने का प्रसाद है. इस खाने को पूरी तन्मयता के साथ तैयार किया जाता है.

Service to humanity in corona era: राजधानी जयपुर की 2 बेटियां कोरोना महामारी के दौर में पीड़ित मानवता की सेवा करने में जुटी हैं. इनमें एक बहिन आईटी प्राफेशनल हैं तो दूसरी रेकी मास्टर हैं. ये जरुरतमंद कोरोना संक्रमितों के लिये खाना तैयार करती हैं.

जयपुर. राजधानी जयपुर में दो सगी बहनें कोरोना महामारी (Corona epidemic) के इस भीषण दौर में लोगों को जीने की राह दिखा रही हैं. पेशे से आईटी प्रोफेशनल और अमेरिका (America) में काम कर रही पूजा हरितवाल और उसकी रेकी मास्टर बहन वंदना जोशी उन परिवारों तक खाना (Food) पहुंचा रही हैं जो कोरोना संक्रमित (Corona infected) हैं और खाने का इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं. कोरोना के भयावह हालात के बीच पूजा जब पिछले साल अमेरिका से आई तब से दोनों बहनें जरुरतमंदों के लिए कुछ न कुछ करना चाहती थीं. पूजा अमेरिका में हालात सामान्य होने का इंतजार कर ही रही थी कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने तबाही मचा दी. उसने अमेरिका जाना स्थगित किया और दोनों बहनें मानवता की सेवा में जुट गईं. जयपुर के बजाज नगर इलाके में लोग उन्हें टिफिन वाली बहनें कहकर पुकारते हैं. मरीज की सलामती है उनकी प्राथमिकता कोरोना मरीजों तक पहुंचने वाला ये खाना केवल खाना नहीं है बल्कि जिंदगी बचाने का प्रसाद है. इस खाने को पूरी तन्मयता के साथ तैयार किया जाता है. यह खाना उन अनजान रोगियों की सलामती के लिए बनाया जाता है जिनको दोनों बहनों ने कभी देखा भी नहीं है. लेकिन उनके घर पर जब किसी रोगी का खाना पहुंचाने का मैसेज आता तो दोनों बहने पूरे मनोयोग के साथ खाना बनाती हैं. बाद में उसे वक्त पर पहुंचाकर ही सांस लेती हैं. पहले इक्का दुक्का लोगों के खाने के फोन आते थे. लेकिन अब ये संख्या 50 तक जा पहुंची है.भोजन में जब दुआ शामिल हो जाती है तो वह दवा बन जाता है महात्मा गांधी कहते थे कि भूखे के लिए भोजन में भगवान है. इसलिए पूजा और वंदना का घर दुआ और दवा दोनों का समागम है. उनकी प्रार्थना का असर दवा से कम भी नहीं है. पूजा कहती हैं जब हम रोगी तक खाना पहुंचाते हैं और उनका मनोबल बढ़ाते हैं तो उन्हें अहसास होता है कि वो अकेले नहीं हैं. उनकी हिम्मत बढ़ती है और वो जल्दी रिकवर करते हैं. इससे हमें आत्म संतुष्टि मिलती है और भगवान से यही प्रार्थना करती हैं कि उन्हें सेवा के ऐसे ही मौके मिलते रहें. कंपनी की वह एमडी है पूजा
पूजा जोशी और उसकी बहन वंदना पिछले महीने से इस काम को अंजाम दे रही हैं. उन्हें अपने काम पर गर्व हो रहा है. संकट की इस घड़ी में वे बिना थके बिना रुके इस काम को बखूबी अंजाम दे रही हैं. उन्हें न तो किसी पब्लिसिटी की जरूरत है और नहीं वे किसी से मदद चाहती हैं. सबकुछ दोनों बहनें खुद-ब-खुद अरेंज कर रही हैं. पूजा जोशी अमेरिका के ओमायो में रहती है. वह पेशे से आईटी इंजीनियर हैं. अपनी कंपनी की वह एमडी हैं. पिछले साल अमेरिका में जब हालात खराब हुए तो वह जयपुर स्थित पैतृक घर आ गई थी. तब से वह यहीं से वर्क फ्रॉम होम भी करती हैं और मानवता के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह भी. पिछले साल दोनों बहनों का परिवार भी संक्रमित हो गया था उनकी बहन वंदना जोशी रेकी मास्टर हैं. वह बड़ौदा में रहती है. फिलहाल जयपुर आई हुई हैं. उनके इस कार्य में वंदना का बेटा रोहिन भी पूरा हाथ बंटाता है. रोहिन मुंबई में पृथ्वी थिएटर में काम करता है. पेशे से एक्टर है. खाना तैयार कराने से लेकर जरुरतमंदों के घर तक खाना पहुंचाने के काम में हाथ बंटाता है. पिछले साल दोनों बहनों का परिवार भी संक्रमित हो गया था. तब दोनों को एहसास हुआ कि जिन लोगों के परिवार में कोई मदद करने वाला नहीं है तो उन तक खाना कैसे पहुंचा जाए. पूरी बैलेंस डाइट होती है और ऑर्गेनिक सब्जियां बनाई जाती है इसके बाद दोनों ने इस साल जब महामारी चरम पर पहुंच गई तो खाना बनाकर जरुरतमंदों के घर तक पहुंचाने का काम शुरू किया. कभी रोहिन कार चलाकर खाना पहुंचाता है तो कभी किसी और के जरिये जरूरतमंदों तक खाना पहुंचाया जाता है. खाने में खिचड़ी दलिया से लेकर पूरी बैलेंस डाइट होती है. इसमें ऑर्गेनिक सब्जियां बनाई जाती है. सोनू सूद से दोनों बहनों ने प्रेरणा ली है. उन्होंने अपने मोबाइल नंबर भी अपने इलाके में उन लोगों को दिए हैं जो लोग संकट की इस घड़ी में जरुरतमंद की मदद के लिए आगे आ रहे हैं. सचमुच वतन की माटी की इससे बढ़कर सेवा नहीं हो सकती.





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