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The many stories behind song aye mere watan ke logo which will sing on beating retreat

बीटिंग रिट्रीट में इस बार बजने वाला गाने ऐ मेरे वतन के लोगों से कई किस्से भी जुड़े हुए हैं. लता मंगेशकर इस गाने को गाने से मना कर दिया था. तब आशा भोंसले के नाम पर विचार किया गया. किसी तरह से गीत लिखने वाले कवि प्रदीप ने लता को जब मनाया, तो गीत सुनने के बाद लता ने एक शर्त और रख दी.

सिगरेट डिब्बी के एल्यूमिनियम फॉयल पर लिखा गया गाना
ऐ मेरे वतन के लोगों गाने को लता मंगेशकर जितने फील से गाया है, वो अपने आप में बहुत खास है. कवि प्रदीप ने बाद में बताया कि जब वो माहीम बीच मुंबई पर टहल रहे थे, तब ये शब्द उनके दिमाग में आए. तब न उनके पास पेन थी और ना कागज. उन्होंने पास से गुजर रहे एक अजनबी से पेन मांगा. फिर सिगरेट डिब्बी के अल्यूमिनियम फॉयल पर इसे लिखा.

ऐ मेरे वतन के लोगों ..गाने की गोल्डेन तिकड़ी. गीतकार कवि प्रदीप, गायिका लता मंगेशकर और संगीतकार सी. रामचंद्र ( साभार Kantilal Bhaskar / Facebook.)

लता और संगीतकार के बीच विवाद हो गया
जब कवि प्रदीप ने गीत तैयार कर लिया और ये पक्का हो गया कि इसको लता मंगेशकर गाएंगी और संगीत सी रामचंद्र देंगे तभी संगीतकार और गायिका के बीच मतभेद हो गया. लता इससे निकल गईं. तब आशा भोंसले से इसको गाने के लिए कहा गया. लेकिन प्रदीप अड़ गए कि इसको लता ही गाएंगी, उन्हें लग रहा था कि आवाज में जो फील और न्याय लता दे सकती हैं, वो किसी और के वश की बात नहीं है. फिर प्रदीप ने लता को मना ही लिया.

गाना पहली बार सुनकर रो पड़ीं थीं लता
जब लता मंगेशकर ने इस गाने को कवि प्रदीप से गुना, तब कहा जाता है कि इसको सुनकर वो रो पड़ीं. तुरंत उन्होंने इसको गाने के लिए हां कर दिया-उन्होंने तब एक ही शर्त रखी कि जब इस गाने का रिहर्सल होगा तो प्रदीप को खुद मौजूद रहना होगा. प्रदीप मान गए. फिर जो कुछ हुआ, वो इतिहास बन गया.

लता-आशा को ड्यूट में गाना था लेकिन फिर विवाद हो गया
हालांकि गीत को सुनने के बाद लता ने ये सुझाव दिया कि इसको सोलो की बजाए ड्यूट में गाना चाहिए. उनके साथ आशा भी इसमें रहें. हालांकि प्रदीप चाहते थे कि लता इसको अकेले ही गाएं. गाने की रिहर्सल लता और आशा ने ड्यूट में ही की लेकिन जब दिल्ली जाने से थोड़ा पहले ही आशा ने इससे खुद को अलग कर लिया. लता ने उनको समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं मानीं.

26 जनवरी 1963 पहली बार दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में जब लता मंगेशकर ने ऐ मेरे वतन के लोगों गाया, तो वहां मौजूद नेहरू समेत सभी के आंखों में आंसू आ गए (फाइल फोटो)

इवेंट के लिए अखबारों में जो छपा था, उसमें गायिकाओं के तौर पर लता और आशा दोनों का ही नाम था. ऐसे में इस प्रोजेक्ट को महान संगीतकार और गायक हेमंत कुमार ने संभालने की कोशिश की लेकिन वो भी आशा को मना नहीं सके. तब लता ने दिल्ली में इसको अकेले ही गाया.

नेहरू ने कहा, जो इस गाने की फील नहीं कर सकता वो हिंदुस्तानी नहीं
जब लता ने इसे नेशनल स्टेडियम में गाया तो वहां प्रधानमंत्री नेहरू के साथ राष्ट्रपति राधाकृष्णन भी थे. नेहरू की आंखों से आंसू बहने लगे. उन्होंने ये भी कहा, जो भी इस गाने से प्रेरित नहीं हो सकता, मेरे खयाल से वो हिंदुस्तानी नहीं है.

जब ये गाना पहली बार दिल्ली में 26 जनवरी 1963 में गाया गया तो गीतकार कवि प्रदीप उस समारोह में आमंत्रित नहीं थे लेकिन दो महीने बाद उन्हें नेहरू के सामने ये गाना गाने का अवसर मिला (Source: Kantilal Bhaskar / Facebook)

कवि प्रदीप तब उदास हो गये
हालांकि प्रदीप तब उदास हो गए जबकि 27 जनवरी 1963 को नेशनल स्टेडियम समारोह में उन्हें नहीं बुलाया गया, जिसमें लता ने जब गाया तो पूरा माहौल ही भावुक हो गया. हालांकि इसके दो महीने बाद जब एक स्कूल प्रोग्राम में नेहरू मुंबई में आए तब कवि प्रदीप ने जरूर उनके सामने ये गाना गाया. उस दिन प्रदीप ने अपनी हेंडराइटिंग में लिखे इस गीत को नेहरू को प्रेजेंट किया. इस गीत ने प्रदीप को देश के दूसरे गीतकारों के बीच महान बना दिया.

Tags: Beating the Retreat, Jawaharlal Nehru, Lata Mangeshkar

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