17वीं शताब्दी में 700 फ़ीट की उंचाई पर बनाई थी राजस्थान की सबसे भव्य बावड़ी, इस वास्तुकला को देखकर लोग होते हैं हैरान

जयपुर. सर्दियों की शुरुआत के साथ ही जयपुर में पर्यटक सीजन भी शुरू हो गया है. जयपुर के ऐतिहासिक किलों और महलों का दीदार करने के लिए पर्यटक जयपुर पहुंच रहे हैं, लेकिन यहां पर्यटकों के लिए केवल ऐतिहासिक इमारतें ही नहीं, बल्कि किलों और महलों में बनी प्राचीन बावड़ियां भी बेहद खास हैं. इन बावड़ियों की बेजोड़ वास्तुकला यह बताती है कि पुराने समय में किस प्रकार राजा-महाराजाओं द्वारा पानी का प्रबंधन इन बावड़ियों के माध्यम से किया जाता था. ऐसी ही जयपुर के नाहरगढ़ किले में स्थित है नाहरगढ़ की बावड़ी, जो जयपुर की सबसे प्राचीन और सुंदर बावड़ियों में से एक है. इसकी सुंदरता और वास्तुकला को देखकर पर्यटक हैरान रह जाते हैं.
नाहरगढ़ किले की पहाड़ी की तलहटी पर बनी नाहरगढ़ बावड़ी का निर्माण 17वीं शताब्दी में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया था, जिसे विशेष रूप से जल प्रबंधन के स्रोत के रूप में उपयोग में लिया जाता था. इस बावड़ी की वास्तुकला इस प्रकार की है कि यह अनोखी बावड़ी आज भी वैसी की वैसी स्थिति में मौजूद है. नाहरगढ़ बावड़ी जमीन से 700 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ों के बीच बनाई गई थी, जिसका भव्य दृश्य हर कोई देखना पसंद करता है, इसलिए नाहरगढ़ किले में यह बावड़ी आज भी पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है.
बावड़ी में दिखाई देती है जल प्रबंधन की बेजोड़ वास्तुकला की झलक
वैसे पुराने समय के सभी किलों और महलों में छोटी-मोटी बावड़ियां देखने को मिलती हैं, जो समय के साथ जर्जर स्थिति में पहुंच गई हैं, लेकिन नाहरगढ़ किले में स्थित यह बावड़ी आज भी उसी मजबूती के साथ जल प्रबंधन की बेजोड़ वास्तुकला का अद्भुत नमूना पेश करती है. नाहरगढ़ बावड़ी की सबसे खास बात है इसकी अनोखी और अद्भुत वास्तुकला, जिसे देखने पर ही ऐसा लगता है जैसे उस समय के सबसे बेहतरीन आर्किटेक्ट्स ने अपनी पूरी कला इस बावड़ी में समर्पित की हो.
बावड़ी की बनावट इस तरह की गई है कि इसमें कभी पानी सूखता नहीं है, साथ ही बावड़ी में बनी जल संग्रहण की तकनीक आज भी बेजोड़ रूप से काम करती है. इस बावड़ी के चारों तरफ़ विशाल दीवार का घेरा बना है जो बेहद सुंदर है, इसलिए शाम के समय पहाड़ी की तलहटी से शहर की सुंदरता का दृश्य बेहद खास होता है और इस समय यहां पर्यटकों की संख्या सबसे ज्यादा रहती है.
बावड़ी के अंदर जल संचय की प्रक्रिया भी अनूठी है, जिसमें नालियों के मध्य में छोटी-छोटी हौदियां बनी हैं, जो कचरे को रोककर जल को शुद्ध करती हैं. इस रूप में बावड़ी के पास एक विशिष्ट प्रकार का जल शोधन तंत्र बनता है, जो इस बावड़ी को अन्य बावड़ियों से अलग बनाता है. साथ ही वर्षों बाद भी इस बावड़ी के किसी भी कोने में जर्जरता दिखाई नहीं देती, जिससे इसकी वास्तुकला और मजबूती का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
पर्यटन स्थल ही नहीं, बॉलीवुड फिल्मों की गवाह भी रही है यह बावड़ी
नाहरगढ़ किले में स्थित यह बावड़ी जितनी पर्यटकों के लिए खास है, उतनी ही यह बावड़ी अपनी सुंदरता के चलते बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी खास रही है. इस बावड़ी पर बॉलीवुड की सबसे आइकॉनिक फिल्म रंग दे बसंती सहित तमाम प्रसिद्ध फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है. बावड़ी इतनी विशाल रूप में बनी हुई है कि इसके हर हिस्से को अंदर जाकर देखा जा सकता है, जो इसे खास बनाता है.
साथ ही, यह बावड़ी इतनी भव्य और सुंदर होने के बावजूद इसे देखने के लिए किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लगता, इसलिए लोग इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में आते हैं. यह बावड़ी नाहरगढ़ किले के बाहर की ओर बनी हुई है, जिसे किले में प्रवेश करने से पहले ही देखा जा सकता है.



