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वो संगीतकार, जिसकी वजह से बनी अमर हो जाने वाली ब्लॉकबस्टर फिल्म, सक्सेस देखने से पहले हुई सिंगर और हीरोइन की मौत

Last Updated:November 06, 2025, 19:22 IST

“इन्हीं लोगों ने, ठाड़े रहियो, चलते चलते, मौसम है आशिकाना… ये सब सुपरहिट सॉन्ग फिल्म पाकीजा में थे. जिन्हें आज भी सुनकर बहुत सुकुन मिलता है लेकिन क्या आपको पता है जिस संगीतकार ने ये गीत लिखे वो इतना बदकिस्मत रहा कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने के बाद भी काम के लिए तरसता रहा, एक ऐसा समय भी जब पैसों की तंगी से उन्हें जूझना पड़ा. फिल्म पाकीजा में जब उन्होंने गाने लिखे तो वो दुनियाभर में फेमस हो गए लेकिन बदकिस्मती देखिए अपनी सफलता देखने से पहले ही वो इस दुनिया से चल बसे.

आजादी के बाद से सबसे प्रतिभाशाली फिल्म संगीतकारों में से एक गुलाम मोहम्मद ने अपने समय की सुपर हिट फिल्म पाकीजा और मिर्जा गालिब जैसी फिल्मों में संगीत दिया. फिल्म पाकीजा के गाने आज भी जिंदा हैं लेकिन संगीतकार खो गया.

गुलाम मोहम्मद का जीवन गरीबी में गुजरा नौबत ये आ गई थी कि उनके अंतिम वक्त उनके पास भोजन और दवाई खरीदने तक के पैसे नहीं थे. कमाल अमरोही की फिल्म पाकीजा के रिलीज से पहले ही उनकी मौत हो गई. हालांकि बाद में फिल्म पाकीजा के गीत को बहुत पसंद किया गया. लेकिन गुलाम मोहम्मद अपनी सफलता का कभी आनंद नहीं ले सके.

गुलाम मोहम्मद का जन्म 1905 में बीकानेर के नाल गांव में हुआ था. उनके पिता, नबी बख्श, एक फेमस तबला वादक थे और गुलाम मोहम्मद को संगीत की शुरुआती शिक्षा भी उनके पिता से ही मिली. पिता के मार्गदर्शन में उन्होंने ढोलक, तबला और पखावज बजाना सीखा. संगीत प्रस्तुति के लिए एक बार वो जूनागढ़ रियासत गए थे. जहां उन्होंने अपनी संगीत से सबको मंत्रमुगध कर दिया उनकी शानदार प्रस्तुती से खुश होकर वहां के मंत्री ने उन्हें सुनहरी तलवार भेंट कर दी थी.

बात है 1924 की जब गुलाम मोहम्मद म्यूजिक अपने करियर बनाने के लिए बॉम्बे चले गए. वहां पर उन्होंने आठ सालों तक लंबा संघर्ष किया. जिसके बाद उन्हें एक फिल्म में बतौर तबला वादक के रुप में पहला अवसर मिला. जहां उन्हें सैलरी के तौर पर 100 रुपए महीना मिलता था. बॉम्बे में गुलाम मोहम्मद को मशहूर संगीतकार नौशाद का साथ मिला, जहां उन्होंने सहायक के रूप में 12 साल तक काम किया, संगीत की बारीकियां सीखीं. 1947 उन्होंने फिल्म टाइगर क्वीन में बतौर संगीतकार अपना डेब्यू किया.

गुलाम मोहम्मद ने कई फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया, जिनमें मधुबाला अभिनीत परदेस भी शामिल थी. इस फिल्म में लता मंगेशकर ने उनके मधुर गीतों जैसे ” जिया लागे नहीं मोरा” और रात है तारों भरी को अपनी आवाज दी. बाद में अजीब लड़की (1952), अंबर (1952) और दिल-ए-नादान (1953)जैसी फिल्मों उन्होंने म्यूजिक दिया. लेकिन इतनी फिल्मों संगीत देने के बाद गुलाम मोहम्मद करियर में हमेशा पैसों की तंगी से जूझते रहे.

गुलाम मोहम्मद को राष्ट्रीय स्तर पर उस समय पहचान मिली जब उन्हें फिल्म मिर्जा गालिब (1954) के लिए सर्वश्रेठ म्यूजिक डायरेक्टर के लिए नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला. ये फिल्म मशहूर उर्दू शायर मिर्जा गालिब के जीवन पर आधारित थी.

” दिल-ए-नादान तुझे, फिर मुझे दीदा-ए-तर और आह को चाहिए एक उमर ” जैसे गीत बहुत लोकप्रिय हुए. फिल्म को राष्ट्रपति भवन में दिखाया गया और तत्तकालिन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने फिल्म के संगीत की खूब प्रशंसा की थी और इसे महान शायर को समर्पित एक सच्ची श्रद्धाजंलि बताया.

राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने के बाद गुलाम मोहम्मद का करियार उम्मीदों के अनुसार आगे नहीं बढ़ पाया. एक वक्त तो ऐसा आया जब आठ साल में उन्होंने सिर्फ एक फिल्म के लिए संगीत तैयार किया. लेकिन उनकी किस्मत बदली जब 1962 में फिल्म निर्मता कमाल अमरोही ने उन्हें पाकीजा के लिए संगीत तैयार करने का प्रस्ताव दिया.

फिल्म पाकीजा में के लिए गुलाम मोहम्मद ने जी जान लगा दिया सुंदर गीत लिख दिए. लेकिन गुलाम मोहम्मद की किस्मत ने एक बार फिर से उन्हें निराश कर दिया. फिल्म पाकीजा की रिलीज डेट कई सालों तक टलती रही क्योंकि कमाल अमरोही और मीना कुमारी के बीच मतभेद हो गए. और इसी दौरान गुलाम मोहम्मद की तबियत भी बिगड़ गई और 1968 में उनका निधन हो गया. इस तरह न तो गुलाम मोहम्मद पाकीजा की सक्सेस देख पाए और न ही मीना कुमारी. दरअसल पाकीजा की रिलीज के 3 हफ्ते बाद मीना कुमारी की भी मौत हो गई थी. जब मीना कुमारी का निधन हुआ तो सब उनकी आखिरी फिल्म देखने के लिए थिएटर में उमड़े. मगर मीना कुमारी पाकीजा की सक्सेस नहीं देख पाईं.

जब फिल्म पाकीज रिलीज हुई तो उसके गीत , “इन्हीं लोगों ने , ठाड़े रहियो, चलते चलते , मौसम है आशिकाना , तीर-ए-नजर और नजरिया की मारी ऐसे हिट हुए की इतिहास की सबसे यादगार गीतों में गिने जाने लगे.

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November 06, 2025, 19:22 IST

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