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89 घंटे भटकता रहा प्‍लेन, लैंडिंग देने को कोई नहीं था तैयार, आखिरी नजारा देख फट पड़ा कलेजा | KLM Airlines plane took off from Amsterdam Schiphol for Tokyo landed at Dubai Airport after being hijacked and wandering for 89 hours

KLM Airlines Hijacked Plane & 89 Hours: एम्स्टर्डम के शिफोल एयरपोर्ट से टेकऑफ हुआ एक प्‍लेन 264 लोगों के साथ करीब 89 घंटे तक एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा, लेकिन किसी भी देश का कोई भी एयरपोर्ट लैंडिग देने के लिए तैयार नहीं था. करीब साढ़े तीन दिन तक लगातार भटकने के बाद जब यह प्‍लेन दुबई एयरपोर्ट पर लैंड हुआ तो फ्लाइट के भीतर का नजारा देख सभी का कलेजा फटने को हो गया. दरअसल, यह इस मामले की शुरूआज आज से ठीक 52 साल पहले हुई थी. 25 नवंबर 1973 को केएलएम एयरलाइंस की फ्लाइट KL-861 ने एम्स्टर्डम के शिफोल एयरपोर्ट से टोक्‍यो के लिए उड़ान भरी थी.

‘मिसिसिपी’ के नाम से मशहूर इस प्‍लेन में 264 लोग सवार थे, जिसमें 247 पैसेंजसर और 17 क्रू-मेंबर शामिल थे. शुरूआत में सबकुछ सामान्‍य लग रहा था, लेकिन टेकऑफ होने के कुछ घंटे बाद ही सबकुछ बदल गया. जैसे ही यह प्‍लेन के एयर स्‍पेस में पहुंचा, तीन लड़के अपनी-अपनी सीटों से उठे और अगल अगल दिशाओं में चल दिए. एक ने अपना रुख प्‍लेन की पिछली पेंट्री की तरफ किया. दूसरा पैसेंजर एरिया में ठहर गया और तीसरा कॉकपिट में दाखिल हो गया. इसके बाद, तीनों लड़कों ने कपड़ों के भीतर छिपाई गई पिस्‍तौल और हैंडग्रेनेड बाहर निकालकर लहराना शुरू कर दिया.

हाईजैकर बोले- अब हमारा हुक्‍म चलेगा…

प्‍लेन हाईजैक करने के बाद तीनों ने खुद को ‘अरब यूथ ऑर्गनाइजेशन फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन’ का मेंबर बताया. कॉकपिट में मौजूद हाईजैकर ने पायलट के माथे पर पिस्‍टल सटाते हुए कहा- अब हमारा हुक्म चलेगा. उन्‍होंने सबसे प्‍लेन को सीरिया के दमिश्‍क एयरपोर्ट ले जाने के लिए कहा. दमिश्‍क एयरपोर्ट पर मुश्किल से लैंडिंग तो मिल गई, लेकिन ज्‍यादा देर वहां टिक नई पाए. वहां से फ्यूल लेने के बाद प्‍लेन फिर टेकऑफ हो गया. इसके बाद यह प्‍लेन निकोसिया (साइप्रस), और फिर त्रिपोली (लीबिया) पहुंचा. हर जगह दमिश्‍क वाली कहानी दोहराई गई. सभी देश इस बात से डर रहे थे कि कहीं प्‍लेन में बम न हो.

माल्‍टा में चली सबसे लंबी खींचतान

सबसे लंबी खींचतान माल्टा में हुई. माल्टा की सरकार प्‍लेन को लैंडिंग देने से डर रही थी. माल्‍टा सरकार के इस रुख को देख अपहरणकर्ताओं ने धमकी दी कि अगर लैंडिंग नहीं दी गई तो प्‍लेन को बम से उड़ा देंगे. उस वक्त माल्टा के प्रधानमंत्री डॉम मिंटॉफ खुद बातचीत में उतरे. उन्होंने घंटों फोन पर बात की और आखिरकार प्‍लेन को उतरने की इजाजत दे दी गई. माल्टा में प्‍लेन करीब 24 घंटे रुका. यहां प्‍लेन में फिर से फ्यूल भरा गया और पैसेंजर्स को थोड़ा खाना मुहैया कराया गया. इसके बाद, प्‍लेन एक बार फिर बिना किसी निर्धारित गंतव्‍य के टेकऑफ कर गया. अपहरणकर्ता इस बार प्‍लेन को लेकर दुबई पहुंच गए.

साढ़े तीन दिन तक भटकता रहा प्‍लेन

दुबई में भी अपहरणकर्ताओं को कोई देश शरण देने को तैयार नहीं था. लगातार 89 घंटे यानी लगभग साढ़े तीन दिन या तो प्‍लेन हवा में, या फिर अलग-अलग एयरपोर्ट्स में फंसा रहा. दुबई एयरपोर्ट के ऊपर चक्‍कर लगा रहे इस प्‍लेन का फ्यूल लगातार कम हो रहा था. पैसेंजर्स बुरी तरह से थक चुके थे, लेकिन अपहरणकर्ताओं के दिमाग में अलग ही पालगपन सवार था. आखिरकार दुबई में लंबी बातचीत के बाद तीनों नौजवानों ने हथियार डालने के लिए तैयार हो गए. इसके बाद प्‍लेन की दुबई एयरपोर्ट पर लैंडिंग कराई गई. उन्होंने चुपचाप से सरेंडर कर दिया. हाईजैकर्स को अरेस्‍ट करने के बाद सुरक्षा एजेंसियां प्‍लेन के भीतर दाखिल हुई.

उस समय की सबसे लंबी हाईजैकिंग

अंदर का नजारा देख सुरक्षा अधिकारियों का कलेजा मुंह को आ गया. महिला हो या पुरुष, बच्‍चे हों या बड़े, सभी का रो-रो कर बुरा हाल हो गया था. शरीर थकान से बुरी तरह टूट चुका था और आंखें बाहर को निकल आईं थीं. प्लेन में मौजूद बुजुर्गों और बच्‍चों का हाल सबसे बुरा था. सभी को बीते साढ़े तीन दिनों में सिर्फ इतना खाना मिला था, जिससे वह जिंदा रह सकें. इमरजेंसी टीम ने सभी पैसेंजर्स को सुरक्षित प्‍लेन से बाहर निकाला और प्राथमिक उपचार के लिए अस्‍पताल पहुंचाया. 25 नवंबर 1973 को हुई यह हाईजैकिंग दुनिया की सबसे लंबी और जटिल हाईजैकिंग्‍स में एक थी.

साथ आई पांच देशों की सरकारें

यह घटना इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें सीरिया, साइप्रस, लीबिया, माल्टा और संयुक्त अरब अमीरात जैसे पांच अलग-अलग देशों की सरकारों को एक साथ काम करना पड़ा. उस समय मध्य-पूर्व में तनाव बहुत था, फिर भी कूटनीति और धैर्य से सबने मिलकर पैसेंजर्स की जान बचा ली गईं. आखिर में, हाईजैकर्स से पूछताछ में पता चला कि वह किसी तरह की फिरौती नहीं चाहते थे, बल्कि वे दुनिया का ध्यान फिलिस्तीनी मुद्दे की तरफ खींचना चाहते थे.

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