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सेहत का रक्षक बना किसानों की कमाई का जरिया, इस तरह करें खेती, बंपर उत्पादन के साथ मिलेगा तगड़ा मुनाफा

नागौर. स्वास्थ्य की दुनिया में इसबगोल को प्राकृतिक डॉक्टर कहा जाए तो गलत नहीं होगा. यह एक ऐसा पौधा है जो न केवल पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए अमृत समान है, बल्कि किसानों के लिए भी सोने की फसल साबित हो रहा है. वर्तमान समय में इसबगोल की खेती धीरे-धीरे लोकप्रिय होती जा रही है, खासकर राजस्थान में.इसकी बढ़ती मांग के कारण यह फसल अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दे रही है. इसबगोल एक औषधीय पौधा है, जिसकी खेती मुख्य रूप से ठंडी जलवायु में की जाती है.

इसके बीजों का उपयोग छिलका निकालने के बाद किया जाता है, जिसे इसबगोल का भूसी कहा जाता है. यह भूसी पानी में घुलकर जेल जैसी बन जाती है और पाचन तंत्र को सुचारु रखने में मदद करती है. यह खेती का नया ट्रेंड बन चुका है. यह फसल न सिर्फ दवाओं और हेल्थ प्रोडक्ट्स में काम आती है, बल्कि किसानों के लिए नकदी फसल के रूप में भी उभर रही है. इसकी खासियत यह है कि यह कम पानी और कम लागत में शानदार उत्पादन देती है.

इसबगोल की बुवाई का सही समय और विधि

इसबगोल ठंडी जलवायु वाली फसल है, इसलिए इसकी बुवाई का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से नवंबर तक माना जाता है. इस मौसम में तापमान 15 से 25 डिग्री के बीच रहता है, जो इसके अंकुरण के लिए आदर्श होता है. इसबगोल के लिए हल्की, दोमट या रेतीली मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. जिस खेत में पानी ज्यादा ठहरता हो, वहाँ यह फसल नहीं होती, क्योंकि अधिक नमी से पौधा गल जाता है खेत की मिट्टी में अच्छी जल निकासी होना जरूरी है. मिट्टी का pH 5 से 7 के बीच होना चाहिए. खेती से पहले 2–3 बार गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए. फिर खेत में अच्छी तरह गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट मिलाएं. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों की बढ़वार बेहतर होती है. आखरी जुताई में पाटा/पटास चलाए ताकि सतह एक समान हो जाए और बीज समान रूप से गिर सके.

इसबगोल की दो तरह से कर सकते हैं खेती

एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 5-6 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. बीज छोटे होते हैं, इसलिए इन्हें हल्के हाथ से छिटकाव विधि या कतारों में बोया जा सकता है.कतारों के बीच 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए.बीज हल्के होने के कारण इनकी बुवाई करते समय उन्हें थोड़ी सी रेत या राख के साथ मिलकर बोए ताकि समान वितरण हो सके. बुवाई दो तरीकों से की जाती है? जिसमें  छिड़काव विधि और कतर विधि शामिल है. छिड़काव विधि में बीजों को हल्के हाथों से पूरे खेत में समान रूप से छिड़का जाता है. इसके बाद मिट्टी की पतली परत (1-1.5 सेंटीमीटर) से बीज ढक दें. कतार विधि में कतार से कतार की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखी जाती है.

पौधों के बीच की दूरी का भी रखें ख्याल

पौधों की दूरी लगभग 8 से 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए. यह विधि सिंचाई और निराई-गुड़ाई के लिए सुविधाजनक होती है और उत्पादन भी अधिक देती है. पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करनी चाहिए. इसके बाद पौधों के बढ़ने पर हर 15–20 दिन में हल्की सिंचाई करें. इसबगोल की फसल को बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती. फूल आने के बाद जब पौधे का रंग हल्का भूरा पड़ने लगे, तब फसल कटाई के लिए तैयार होती है. यह आमतौर पर 110–120 दिनों में पक जाती है.कटाई के बाद पौधों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर मड़ाई की जाती है, जिससे बीज आसानी से निकल आते हैं.

इसबगोल कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने में है मददगार

इसबगोल का छिलका यानी भूसी वह हिस्सा है जो असल में चमत्कारी गुणों से भरा होता है. इसे पानी या दूध के साथ लिया जाता है और यह शरीर में प्राकृतिक सफाई करने में मदद करता है. हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. अंजू के अनुसार यह कब्ज से राहत देता है. इसबगोल में फाइबर की मात्रा बहुत अधिक होती है. यह आंतों में मौजूद मल को मुलायम बनाता है और कब्ज से तुरंत राहत देता है. इसके साथ ही यह गैस और एसिडिटी में लाभकारी होती है. इसबगोल पेट की जलन और एसिडिटी को शांत करता है. भोजन के बाद इसका सेवन करने से पेट हल्का रहता है और गैस की समस्या नहीं होती. यह कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में मददगार होता है. इसबगोल शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बनाए रखता है. इससे हृदय संबंधी रोगों का खतरा घटता है.

शुगर रोगियों के लिए फायदेमंद है इसबगोल

हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार, इसका सेवन शुगर रोगियों के लिए फायदेमंद होता है. यह फाइबर ब्लड शुगर के स्तर को संतुलित रखता है. डायबिटीज़ के मरीजों को रोजाना रात में सोने से पहले दूध के साथ इसका सेवन करने की सलाह दी जाती है. यह वजन घटाने में सहायक होता है. इसबगोल पानी में फूलकर पेट को भर देता है, जिससे भूख कम लगती है. इसलिए यह वजन घटाने की प्रक्रिया में काफी मददगार माना जाता है. यह त्वचा और पाचन दोनों के लिए लाभकारी है. इसके नियमित सेवन से शरीर से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं. इससे चेहरा साफ़ और चमकदार बनता है तथा पाचन तंत्र मजबूत होता है.

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