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हर 3 हजार में से 1 व्यक्ति को फेफड़ों में छेद का खतरा, इससे किडनी कैंसर का भी जोखिम, वैज्ञानिकों ने पकड़ लिया इसका कारण

Last Updated:April 08, 2025, 23:52 IST

Hole in Lungs: एक अध्ययन में पता चला है कि हर 3 हजार में एक व्यक्ति के लंग्स में छेद का खतरा है. इससे बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम हो जाता है जिससे किडनी कैंसर का जोखिम भी बढ़ जाता है.हर 3 हजार में से 1 व्यक्ति को फेफड़ों में छेद का खतरा, किडनी कैंसर का भी खतरा

फेफड़ों में छेद का कारण.

Hole in Lungs: हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया है कि प्रति तीन हजार में एक व्यक्ति में फेफड़ों में छेद का खतरा है. लंग्स में छेद को मेडिकल भाषा में न्यूमोथॉरेक्स कहते हैं. सामान्य भाषा में इसे फेफड़ों का फटना या फेफड़ों में छेद कहा जाता है. एक तरह से लंग्स में पंक्चर हो जाता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक लंग्स में छेद का मुख्य कारण एक खराब जीन है. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 5.5 लाख से ज़्यादा लोगों पर अध्ययन के बाद पाया कि हर 2,710 से 4,190 में से एक व्यक्ति के शरीर में एफएलसीएन नामक एक खास जीन होता है जिससे बर्ट-हॉग-डुबे नाम का सिंड्रोम हो जाता है. इस सिंड्रोम के कारण किडनी कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है. जब किसी को न्यूमोथॉरेक्स होता है तो फेफड़ों से हवा लीक होने लगती है. इस कारण सही से शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है. इसमें छाती में दर्द होता है और सांस लेने में तकलीफ होती है.

इस बीमारी में स्किन पर छोटे-छोटे गांठ बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम रेयर जेनेटिक बीमारी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी वंश में चलती रहती है. इस बीमारी में स्किन पर छोटे-छोटे गांठ जैसे ट्यूमर बनते हैं. वहीं फेफड़ों में सिस्ट (गांठें) बनने लगती है. इससे किडनी कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. हालांकि जरूरी नहीं कि हर बार फेफड़ों में छेद होने का कारण यही जीन हो. अन्य कारणों से भी लंग्स में छेद हो सकता है. यह अध्ययन थॉरेक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है. अध्ययन में जिन मरीजों को बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम की बीमारी थी, उनमें जीवनभर फेफड़ों में छेद होने का खतरा 37 प्रतिशत ज्यादा था. हालांकि एफएलसीएन जीन में बदलाव वाले लोगों के बड़े समूह में यह खतरा कम होकर 28 प्रतिशत रह गया था.

सिर्फ जीन ही जिम्मेदार नहीं शोधकर्ताओं ने बताया कि खराब जीन के कारण जिस व्यक्ति में बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम था उसमें किडनी कैंसर का खतरा 32 प्रतिशत ज्यादा था लेकिन जिसमें यह बीमारी नहीं था उसमें यह सिर्फ 1 प्रतिशत ही खतरा था. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मार्सिनियाक ने बताया कि उन्हें यह जानकर हैरानी हुई कि जिन लोगों में केवल यह जीन था पर बीमारी नहीं थी, उनमें किडनी कैंसर का खतरा बहुत कम था. इसका मतलब यह हो सकता है कि बीमारी के लिए केवल यह जीन ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि कुछ और कारण भी हो सकते हैं. अध्ययन में यह भी सामने आया कि हर 200 लंबे और दुबले-पतले किशोर या युवा पुरुषों में से एक को फेफड़ा पंक्चर होने की परेशानी हो सकती है. अधिकतर मामलों में यह तकलीफ अपने आप ठीक हो जाती है या फिर डॉक्टर फेफड़ों से हवा या तरल निकालकर इलाज करते हैं.

किडनी कैंसर को होने से रोका जा सकता है अगर किसी व्यक्ति का फेफड़ा पंक्चर हो जाए और वह आम तौर पर इस बीमारी वाले लक्षणों में फिट न बैठता हो तो डॉक्टर उसके फेफड़ों की एमआरआई करके जांच करते हैं. अगर एमआरआई में निचले फेफड़ों में सिस्ट (गांठें) दिखती हैं, तो संभावना होती है कि उस व्यक्ति को बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम है. प्रोफेसर मार्सिनियाक कहते हैं, अगर किसी को बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम है, तो यह जानना जरूरी है, क्योंकि उसके परिवार के अन्य लोगों को भी किडनी कैंसर का खतरा हो सकता है. अच्छी बात यह है कि फेफड़ा पंक्चर की समस्या अक्सर किडनी कैंसर के लक्षण दिखने से 10-20 साल पहले होती है. इसका मतलब है कि अगर समय रहते बीमारी की पहचान हो जाए, तो नियमित जांच और निगरानी से किडनी कैंसर को समय पर पकड़ा और ठीक किया जा सकता है. इनपुट -आईएएनएस

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First Published :

April 08, 2025, 23:52 IST

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हर 3 हजार में से 1 व्यक्ति को फेफड़ों में छेद का खतरा, किडनी कैंसर का भी खतरा

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