महिलाओं में बढ़ रहा इस गंभीर बीमारी का खतरा, संतान सुख से कर सकती है वंचित, 5 लक्षण न करें नजरअंदाज
All About Fibroid: महिलाओं के गर्भाशय में मांसपेशियों की गांठें बन जाती हैं, जिन्हें फाइब्रॉएड या रसौली कहा जाता है. यह समस्या करीब 30 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित करती है और कई बार इसकी वजह से संतान सुख में बाधा आ जाती है. अगर सही समय पर अल्ट्रासाउंड कराकर इस समस्या का इलाज कराया जाए, तो महिलाओं को होने वाली दिक्कतों से छुटकारा मिल सकता है. बड़ी संख्या में महिलाएं इस परेशानी को नजरअंदाज करती हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए और इसके लक्षण दिखने पर डॉक्टर से मिलकर कंसल्ट करना चाहिए.
नई दिल्ली के फोर्टिस ला फेम हॉस्पिटल के गायनेकोलॉजी डिपार्टमेंट की सीनियर डायरेक्टर डॉ. मीनाक्षी आहूजा ने को बताया कि महिलाओं के गर्भाशय में मांसपेशियों की गांठ बन जाती हैं, जिन्हें फाइब्रॉएड कहा जाता है. इसे आमतौर पर रसौली भी कहा जाता है. रसौली गर्भाशय के अंदर या दीवार के बाहर हो सकती है. हर 3 में से एक महिला के गर्भाशय में फाइब्रॉएड होते हैं. आज के दौर में खराब लाइफस्टाइल, फिजिकल एक्टिविटी की कमी और बच्चे लेट करने की वजह से रसौली की संभावना बढ़ जाती है. कई लोग जानबूझकर बच्चा नहीं करना चाहते हैं, जिससे फाइब्रॉएड का रिस्क बढ़ता है.
डॉक्टर मीनाक्षी की मानें तो फाइब्रॉएड के साइज से ज्यादा उसकी पोजीशन मायने रखती है. अगर पोजीशन कैविटी के अंदर है, तो उसका इलाज जल्द कराना चाहिए. महिला को पीरियड्स बहुत हैवी हो रहे हैं या जल्दी-जल्दी पीरियड्स हो रहे हैं, तो ये फाइब्रॉएड के लक्षण हो सकते हैं. अगर फाइब्रॉएड का साइज 4-5 सेंटीमीटर का है और कोई लक्षण नहीं दिख रहा है, फिर भी इलाज करना जरूरी है. वक्त के साथ ये फाइब्रॉएड बढ़ सकते हैं. इससे बचने के लिए वक्त रहते इलाज करवाना जरूरी होता है. नॉर्मली महिलाओं के पीरियड्स 3-5 दिन चलने चाहिए, लेकिन रसौली की वजह से पीरियड्स 8-10 दिन चल सकते हैं. इसकी वजह से खून की कमी हो सकती है. फाइब्रॉएड की वजह से इनफर्टिलिटी हो सकती है और प्रेग्नेंसी ठहरने में दिक्कत हो सकती है.
ग्रेटर नोएडा के फोर्टिस हॉस्पिटल की कंसल्टेंट गाइनी एंड ऑन्को सर्जरी डॉ. प्रिया बंसल ने को बताया कि सभी फाइब्रॉएड के लिए सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है. गर्भाशय फाइब्रॉएड महिला प्रजनन प्रणाली के सबसे कॉमन बिनाइन ट्यूमर में शुमार हैं, जो 20-30% महिलाओं में होते हैं. 30-50 वर्ष की आयु की महिलाओं में इसका खतरा ज्यादा होता है. फाइब्रॉएड अक्सर हैवी पीरियड्स, पैल्विक दर्द, बार-बार पेशाब आना और कब्ज जैसे लक्षणों के साथ मौजूद होते हैं. फाइब्रॉएड का सटीक कारण अभी भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन कई रिस्क फैक्टर्स होते हैं. सभी फाइब्रॉएड महिलाओं के लिए परेशानी का कारण नहीं बनते हैं. जो परेशानी पैदा करते हैं, उनके ट्रीटमेंट की जरूरत होती है.
डॉक्टर प्रिया ने बताया कि फाइब्रॉएड के लिए नॉन-सर्जिकल और सर्जिकल ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं. गर्भाशय धमनी एम्बोलाइजेशन एक रेडियोलॉजिकल प्रक्रिया होती है, जो फाइब्रॉएड की ब्लड वेसल्स को बंद कर देती है. इससे इनका आकार नहीं बढ़ता है. रोबोटिक/लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टोमी के जरिए गर्भाशय को संरक्षित करते हुए फाइब्रॉएड को हटा दिया जाता है. कई मामलों में रोबोटिक/लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी से महिलाओं के गर्भाशय को हटाना पड़ता है. आज के दौर में एडवांस टेक्नोलॉजी के जरिए फाइब्रॉएड के लिए लेप्रोस्कोपिक या रोबोटिक सर्जरी कर सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED : July 27, 2024, 15:33 IST