मारवाड़ के घांची समाज की धणी भविष्यवाणी, इस साल अकाल और सुकाल के बीच झूलेंगे राजस्थान के हालात!”

Last Updated:May 01, 2025, 16:46 IST
राजस्थान के मारवाड़ में घांची समाज अक्षय तृतीया पर ‘धणी’ अनुष्ठान के जरिए परंपरागत तरीके से पूरे वर्ष के मौसम और राजनीतिक हालात की भविष्यवाणी करता है. इस वर्ष अनिश्चितता, विपदाओं और संघर्षों के संकेत मिले हैं.X
धणी की भविष्यवाणी: क्या आने वाला है अराजक तूफ़ान
हाइलाइट्स
राजस्थान में धणी अनुष्ठान से भविष्यवाणी की जाती है.इस वर्ष अनिश्चितता और संघर्ष के संकेत मिले हैं.धणी अनुष्ठान में कुमकुम और काजल का प्रयोग होता है.
जोधपुर- जहां आधुनिक विज्ञान सैटेलाइट और टेक्नोलॉजी के माध्यम से मौसम की भविष्यवाणी करता है, वहीं राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में सदियों पुरानी परंपरा ‘धणी’ आज भी जीवंत है. घांची समाज द्वारा अक्षय तृतीया (अखा तीज) पर किया जाने वाला यह आयोजन पूरे वर्ष की संभावित प्राकृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों की भविष्यवाणी करता है.
धणी अनुष्ठान की विधिइस परंपरा के अनुसार, यज्ञ वेदी के पास दो खंभ लगाए जाते हैं और दो अबोध बालकों को मंत्रोच्चार के साथ पवित्र कर उनके हाथ में बांस की दो पट्टिकाएं दी जाती हैं. एक पट्टिका पर कुमकुम (सुकाल का संकेत) और दूसरी पर काजल (काल का संकेत) लगाया जाता है. मंत्रोचार के साथ दोनों पट्टिकाएं स्वतः ऊपर-नीचे हिलने लगती हैं. खंभ पर सूल (बबूल का कांटा) लगाया जाता है. यदि कुमकुम लगी पट्टी सूल को छू ले तो वर्षा और शांति का संकेत माना जाता है, और अगर काजल लगी पट्टी सूल को तोड़े, तो विपदाओं, आपदाओं और राजनीतिक संकट की आशंका मानी जाती है.
संकट और संघर्ष का वर्षघांची समाज के वरिष्ठों के अनुसार, इस वर्ष दोनों पट्टिकाएं बराबर रहीं. न तो सुकाल ऊपर गया, न काल नीचे रहा. यह संकेत देता है कि वर्ष असामान्य रहेगा. अनिश्चित मौसम, कम या अधिक वर्षा से फसलों को नुकसान होगा. साथ ही, राजनीतिक उथल-पुथल और युद्ध की संभावनाओं के भी संकेत मिले हैं.
ऐसे शुरू हुई परंपराघांची समाज के बुजुर्गों का कहना है कि जब वर्षा ही जीवन का एकमात्र आधार थी, तब ‘धणी’ अनुष्ठान से भविष्य जानकर किसान पूरे साल की योजना बनाते थे. जैसे बरसात का पानी कैसे सहेजना है, पशुओं के लिए चारा कहां से आएगा. यह परंपरा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में निभाई जाती है.
Location :
Jodhpur,Rajasthan
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