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‘एक स्टार का बेटा होना दोधारी तलवार..’ सुपरहिट हीरो के फ्लॉप स्टार बेटे ने कहा, एक्टिंग छोड़ करता है ये काम

नई दिल्लीः देशभक्ति फिल्मों और भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए मनाए जाने वाले महान अभिनेता और फिल्म निर्माता मनोज कुमार का 4 अप्रैल को निधन हो गया. लेकिन उनसे जुड़ी यादें हमेशा ही लोगों के बीच रहेंगी. हाल ही में बीटी के साथ बातचीत में, उनके बेटे और अभिनेता कुणाल गोस्वामी अपने पिता की विरासत और फिल्मों में अपने सफर के बारे में बात की है. इंटरव्यू में उनसे पूछा कि आप मनोज कुमार के साथ अपने बंधन को कैसे बयां करेंगे एक बेटे और एक अभिनेता दोनों के रूप में?

TOI के अनुसार, जवाब में कुणाल ने बताया, ‘एक बेटे और अभिनेता के रूप में, मुझे उनसे सिनेमा और जीवन के बारे में कई चीजें सीखने और भूलने का सौभाग्य मिला है. मेरे पिता को प्यार से मिस्टर भारत के नाम से जाना जाता था क्योंकि उनमें देशभक्ति का जज्बा था. उन्होंने बड़े जुनून और समर्पण के साथ अभिनय किया. उपकार, पूरब और पश्चिम और शहीद जैसी फिल्में दर्शाती हैं कि उनमें देशभक्ति कितनी गहराई से निहित थी. और हम, उनके बच्चे, हर दिन उस जुनून को देखते और जीते थे.

कुणाल से पूछा गया क्या आप हमेशा से अभिनेता बनना चाहते थे?जवाब में उन्होंने कहा, ‘और अचानक, मैं मीडिया और हजारों लोगों से घिरा हुआ था, जब वो दिलीप कुमार साहब और हेमा मालिनी जी के साथ एक सीन का निर्देशन कर रहे थे. जब मैंने अपनी शुरुआत की, तब मैं लगभग 14 साल का था. मैंने प्रकाश मेहरा के साथ घुंघरू और श्रीदेवी के साथ कलाकार में काम किया, जो अपने संगीत के लिए लोकप्रिय हुए. मैंने लगभग 10 फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन चीजें उतनी नहीं चलीं. मेरे पिता ने मुझे जय हिंद (2000) में निर्देशित करने के बाद, मैंने फिल्म उद्योग से दूर जाने का फैसला किया.

क्या यह एक कठिन निर्णय था? मैं एक बार अभिनेता, हमेशा अभिनेता के विचार से चिपके नहीं रहना चाहता था, खासकर अगर इसका मतलब उन भूमिकाओं को स्वीकार करना था जो सही नहीं लगती थीं. एक स्टार का बेटा होना एक दोधारी तलवार है जैसे आपको एक प्रारंभिक मंच मिलता है, लेकिन धारणाएं होती हैं. कई फिल्म निर्माताओं का मानना ​​​​था कि उन्हें मेरे पिता के माध्यम से मुझसे संपर्क करना होगा, जो बहुत मिलनसार या आसानी से सुलभ नहीं थे.

यह झिझक मेरे खिलाफ काम करती रही. मैंने खुद फिल्म निर्माताओं से संपर्क किया, लेकिन मुझे कभी भी मजबूत किरदार नहीं मिले. कुमार गौरव और चिम्पू कपूर जैसे अन्य लोगों ने भी इसी तरह के संघर्षों से गुजरा. आखिरकार, मैं खानपान के व्यवसाय में चला गया. मेरे पिता ने मुझे फिल्मों में बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि उन्होंने मेरी क्रिएटीविटी को देखा था, लेकिन उन्होंने कभी मुझ पर दबाव नहीं डाला. अभिनय भले ही मेरे पीछे छूट गया हो, लेकिन मुझे उम्मीद है कि मैं किसी दिन फिल्म निर्देशित करूंगा.

क्या आप अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उनकी किसी फिल्म का रीमेक बनाने की योजना बना रहे हैं? सवाल के जवाब में कुणाल ने कहा, ‘नहीं, मुझे नहीं लगता कि उन फिल्मों का रीमेक बनाया जा सकता है. आप डॉन का रीमेक बना सकते हैं जैसे यह जेम्स बॉन्ड की तरह एक व्यावसायिक फिल्म है – लेकिन उपकार, पूरब और पछिम या रोटी, कपड़ा और मकान जैसी फिल्में अपनी अलग केटेगरी में हैं. उनमें जो भावनात्मक गहराई और संदर्भ था, उसे दोहराया नहीं जा सकता. भले ही शहीद के कई संस्करण बन चुके हैं, लेकिन लोग अभी भी मनोज कुमार को असली शहीद भगत सिंह के रूप में याद करते हैं.

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