दशकों पुरानी है पालीवाल ब्राह्मणों की कहानी, कभी राजस्थान के इस जिले से हो गए थे पलायन, सोमनाथ है इष्ट देव
हेमंत लालवानी/पाली: पाली नगर में करीब एक लाख के लगभग पालीवालों की आबादी थी. सभी ब्राह्मण समृद्ध व सम्पन्न थे. बताया जाता है कि वहां आने वाले प्रत्येक ब्राह्मण को एक ईंट व एक रुपए का सहयोग कर उसे भी संपन्न बनाते थे. पाली में पालीवाल ब्राह्मणों की खुशहाली के चर्चे पूरे भारत में थे. पाली के आसपास उस समय के आदिवासी लुटेरे उनको लूटते रहते थे. तब पालीवाल समाज के मुखिया ने राठौड़ वंश के राजा सीहा को पाली नगर का शासन संभालने और उनकी रक्षा के लिए प्रार्थना की. तब सीहा राठौड़ ने पाली नगर के पालीवालों की रक्षा का दायित्व अपने ऊपर लिया था. लेकिन यवन आक्रांता द्वारा किए गए आक्रमण में राठौड़ वंश के शासक सीहा वीरगति को प्राप्त हो गए थे. जिसके बाद एक समय ऐसा आया जब जलालुद्दीन खिलजी के आक्रमण से पाली नगर तहस-नहस हो गया और यहां रहने वाले गौड़ ब्राह्मण अपने शासक आस्थान के साथ इन हमलावरों से लड़ाई के लिए मैदान में आए और हजारों की संख्या में गौड़ ब्राह्मण पालीवाल वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद पालीवाल ब्राह्मण खुद को सुरक्षित महसूस नही कर सके और पाली से पलायन कर दिया मगर इतने वर्षो बाद अब पुन: उनका पाली में आगमण शुरू हुआ है.
2 साल से पालीवाल ब्राह्मण आने लगे पालीपाली निवासी और सोमनाथ मंदिर के पुजारी कमलेश रावल ने कहा कि पालीवाल ब्राह्मण एक समय में रहा करते थे और उन्ही के नाम से पाली का नाम पडा. सोमनाथ महादेव जी पालीवाल ब्राह्मणों के ईष्ट देव है और उनका सोमनाथ महादेव की पूजा अर्चना में पूर्ण सहयोग होता था. दो वर्ष से अब पुन: पालीवाल ब्राह्मण पाली आने लगे है. उसके पूर्व में पाली में आना तो दूर की बात यहां का पानी तक भी नही पीते थे. दो वर्ष से वह आकर यहां पूजा पाठ करवाने लगे है. जब भी आते है तो सोमनाथ महादेव जरूर आते है.
इसलिए वचनबद्ध थे पालीवाल ब्राह्मणजलालुद्दीन खिलजी ने गुलाम वंश के अंतिम शासक समसुद्दीन की 1290 में हत्या कर दिल्ली का शासन अपने कब्जे में किया. जिसके बाद 1292 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी ने मारवाड़ के रणथंभौर और मंडोर के किलो पर आक्रमण किया. इसी समय जलालुद्दीन खिलजी ने पाली नगर की संपन्नता को देख कर उसे लूटने के लिए ईस्वी सन 1292 विक्रम संवत 1348 में आक्रमण किया. जिस समय राठौड़ वंश के शासक सिहा और उनके पुत्र आस्थान पालीवाल ब्राह्मणों की रक्षा के लिए वचनबद्ध थे.
यह रही पाली छोडने की वजहजलालुद्दीन खिलजी के आक्रमण से पाली नगर तहस-नहस हो गया और यहां रहने वाले गौड़ ब्राह्मण अपने शासक आस्थान के साथ इन हमलावरों से लड़ाई के लिए मैदान में आए और हजारों की संख्या में गौड़ ब्राह्मण पालीवाल वीरगति को प्राप्त हुए. कहा जाता है कि बाद में पाली नगर में रहने वाले ब्राह्मण अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं कर सके. खिलजी आक्रमणकारियों ने पालीवालों के पाली नगर स्थित पीने के पानी के जल स्रोतों में गोवंश को मार कर डाल दिया. जिससे पेयजल स्रोत अपवित्र होने से भी ब्राह्मणों ने खुद को धार्मिक रूप से भी असुरक्षित महसूस किया. पुजारी कमलेश रावल ने कहा कि 40 मण जणेऊ कहा जाए तो समझा जा सकता है कि हजारो की संख्या में पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी जान गवाई. वही वजह थी कि उनको पाली छोडकर यहां से जाना पडा.
जानिए क्या कहते है इतिहासकारपरिहार वंश के शासक लक्ष्मण राव ने अपने गौड़ वंश के गुरु को विक्रम संवत 534 ईस्वी सन 477 में पाली नगर एक संकल्प पर दान में दिया था. जिसके बाद गौड़ ब्राह्मण वंश के लोग पाली नगर में आकर बस गए. जिसके बाद उनके दूसरे गौत्र भाई और रिश्तेदार भी आकर पाली में रहने लगे और धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई. इतिहासकार की माने तो भारत में मुस्लिम साम्राज्य 1175 ईस्वी से 1206 के बीच रहा है और उससे पहले मोहम्मद गौरी और गजनवी का शासन काल रहा था. भारत में मुगल साम्राज्य की नींव 1526 ईस्वी में शुरू हुई. जिसका संस्थापक बाबर था. खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन फिरोजशाह 70 वर्ष की आयु में दिल्ली का शासक बना, जो 1290 से 1296 ईस्वी तक खिलजी वंश का शासक रहा. खिलजी वंश के लोग अफगानिस्तान के खिलजी क्षेत्र के निवासी थे. इसलिए यह खिलजी वंश के शासक कहलाए.
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FIRST PUBLISHED : August 23, 2024, 23:12 IST