एक वीर की आखिरी लड़ाई, अकेले 40 विद्रोहियों से भिड़ने वाले शौर्य चक्र विजेता मेजर रणवीर सिंह शेखावत की कहानी

Last Updated:November 28, 2025, 18:13 IST
Warrior of India : राजस्थान की वीरभूमि का एक शेर, जिसने मौत को भी चुनौती दी! मणिपुर के जंगलों में घात लगाकर बैठे उग्रवादियों से अकेले भिड़ने वाले भारतीय सेना के शौर्य चक्र विजेता मेजर रणवीर सिंह शेखावत ने आखिरी सांस तक ट्रिगर दबाए रखा. गोलियां शरीर चीरती रहीं, पर जज़्बा नहीं टूटा. उनकी बहादुरी ने दुश्मनों के हौसले चकनाचूर कर दिए!
सीकर : राजस्थान की वीरभूमि ने देश को ऐसे अनगिनत योद्धा दिए हैं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान हंसते हसंते दे दिया. इन्हीं योद्धाओं की कहानी हम आपको Warrior of India सीरिज के जरिए बताते हैं. सीरीज में आज हम आपको भारतीय सेना के शौर्य चक्र विजेता मेजर रणवीर सिंह शेखावत की कहानी बताएंगे, जिन्हें अकेले ही घुसपैठियों से लोहा लिया.
10 जुलाई 1945 को झुंझुनूं जिले के टाई गांव में जन्मे मेजर रणवीर सिंह शेखावत बचपन से ही तेज, अनुशासित और राष्ट्र के प्रति समर्पित थे. उनके पिता पन्ने सिंह शेखावत राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे और माता सिरेह कंवर थी. जयपुर में प्रारंभिक शिक्षा और पिलानी के प्रतिष्ठित BITS संस्थान से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर करते हुए उनका चयन भारतीय सेना में हो गया. IMA देहरादून के 40वें नियमित कोर्स के बाद 16 दिसंबर 1967 को वे सिक्ख रेजीमेंट में एक कमीशन्ड अधिकारी बने.
मणिपुर में वह दिन… जब मौत ने घात लगाई हुई थी19 फरवरी 1982, यह वही दिन था जब भारतीय सेना की 21 सिख रेजीमेंट के 40 सैनिक तीन ट्रकों में मणिपुर के उखरुल क्षेत्र से होकर अपनी यूनिट में जा रहे थे. पहाड़ी रास्ता, घना जंगल और तीखे मोड़ ये जगह उग्रवादी हमलों के लिए जानी जाती है. मेजर शेखावत सबसे आगे के ट्रक में सवार थे और उनकी टुकड़ी मिजोरम में विद्रोहियों के खिलाफ अभियान के लिए प्रशिक्षित थी. एक खतरनाक मोड़ पर अचानक आगे बैलगाड़ी खड़ी दिखाई दी और काफिला रुक गया. सैनिक कुछ समझ पाते उससे पहले ही झाड़ियों में छिपे उग्रवादियों ने चारों ओर धमाके किए और हथियारों से गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पहला निशाना मेजर शेखावत ही बने, एक गोली विंडस्क्रीन फाड़ती हुई उनके कंधे को चीर गई. लेकिन वे गिरे नहीं, हिम्मत नहीं हारी.
घायल होते हुए भी पहाड़ी पर चढ़कर किया मुकाबलाकंधे में गोली लगने के बावजूद मेजर शेखावत ने अपनी स्टेनगन उठाई और रेंगते हुए पहाड़ी की ओर बढ़े, वहीं से विद्रोही सबसे अधिक फायरिंग कर रहे थे. दूसरी ओर कुछ उग्रवादी पहले ट्रक के सैनिकों को मारकर हथियार लूटने की कोशिश में थे. लेकिन मेजर शेखावत के आक्रमण ने उन्हें रोक दिया. वे अकेले ही उन मशीनगन वाली पॉज़ीशन्स की ओर बढ़ते गए, लगातार गोलियों की बौछार झेलते हुए भी उन्होंने विद्रोहियों को पीछे हटने के बाद मजबूर कर दिया. कई गोलियां उनके शरीर में धसती चली गईं. मशीनगन की एक तेज़ बर्स्ट उनके पेट में लगी, पर वे अंतिम सांस तक ट्रिगर दबाते रहे. आधा घंटा चले इस भयंकर संघर्ष में 1 अधिकारी, 2 नॉन-कमीशन्ड अधिकारी, 15 जवान शहीद हुए.
पराजित नहीं, अमर हुए मेजर शेखावतविद्रोही उनके शव के पास तक नहीं आ सके. उनकी स्टेनगन वहीं पड़ी मिली जो इस बात का प्रमाण थी कि वे अंतिम सांस तक लड़ते रहे. उनकी चुनौती के कारण विद्रोही कई हथियार छोड़कर भाग निकले और भारतीय सेना ने इस हमले को नाकाम कर दिया. उनकी बहादुरी और नेतृत्व के लिए 16 अप्रैल 1983 को तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया. यह सम्मान उनकी पत्नी श्रीमती पुष्पा कंवर ने ग्रहण किया.
About the AuthorRupesh Kumar Jaiswal
रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन…और पढ़ें
Location :
Sikar,Rajasthan
First Published :
November 28, 2025, 18:13 IST
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अकेले 40 उग्रवादियों से लड़े शौर्य चक्र विजेता मेजर रणवीर सिंह शेखावत



