घर में घुसे 3 युवक, जातिसूचक शब्द भी कहे… पर हाईकोर्ट ने इसे नहीं माना अपराध, जज बोले- जब तक…
प्रयागराज. एससी-एसटी एक्ट को लेकर बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट से एक अहम खबर आई. कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि जानबूझकर अपमानित करने के कथित कृत्य के लिए एससी-एसटी एक्ट 1989 के तहत अपराध तभी बनेगा जब यह सार्वजनिक जगह पर किया गया हो. पिंटू सिंह नामक व्यक्ति और दो अन्य लोगों की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान की बेंच ने इन तीन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट की धारा 3(1) (आर) के तहत अपराध के संबंध में आपराधिक मुकदमा रद्द कर दिया.
इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ नवंबर, 2017 में आईपीसी की विभिन्न धाराओं और एससी-एसटी एक्ट की धारा 3(1)(आर) के तहत FIR दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपियों ने शिकायतकर्ता के घर में घुसकर उन्हें जातिसूचक गालियां दीं और उसे और उसके परिवार को मारा-पीटा. सुनवाई के दौरान, दलील दी गई कि यह अपराध शिकायतकर्ता के घर के भीतर किया गया जो एक सार्वजनिक स्थल नहीं है और आम लोगों ने इस घटना को नहीं देखा, इसलिए एससी/एसटी कानून के तहत कोई अपराध नहीं बनता है.
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घटना स्थन पर नहीं था कोई बाहरी शख्स….याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध तभी बनता है जब अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को सरेआम जानबूझकर अपमानित किया जाता है. वहीं, दूसरी ओर राज्य सरकार के वकील ने याचिकाकर्ता के वकील की दलील पर आपत्ति की. हालांकि, वह इस घटना से इनकार नहीं कर सके कि यह घटना शिकायतकर्ता के घर के भीतर हुई. अदालत ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत शिकायतकर्ता के बयान और FIR को देखने पर पता चलता है कि जिस जगह पर घटना हुई, वहां कोई बाहरी व्यक्ति मौजूद नहीं था.
अगर अपराध आम लोगों के सामने हुआ…अदालत ने 10 मई को दिए अपने निर्णय में कहा कि एससी-एसटी एक्ट अधिनियम की धारा 3(1)(आर) के तहत यह आवश्यक है कि अपराध सार्वजनिक स्थान पर किया होना चाहिए. अदालत ने एससी-एसटी एक्ट के संबंध में मुकदमा रद्द करते हुए कहा, “यदि अपराध आम लोगों के सामने हुआ है तो एससी-एसटी एक्ट के प्रावधान लागू होंगे, लेकिन मौजूदा मामले में ऐसा नहीं हुआ.”
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FIRST PUBLISHED : May 22, 2024, 23:51 IST