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भरतपुर के गांवों में आज भी जिंदा है परंपरा, हाथों की मेहनत से बनती है खजूर के कांटों वाली देसी झाड़ू

Last Updated:October 15, 2025, 18:37 IST

भरतपुर के ग्रामीण इलाकों में खजूर के पत्तों से झाड़ू बनाना आज भी जीवित परंपरा है, ये झाड़ू पूरी तरह प्राकृतिक, टिकाऊ और सफाई में बेहद प्रभावी होती हैं. ग्रामीण महिलाएं बड़ी मेहनत और सावधानी से इन्हें बनाती हैं, जो उनकी आत्मनिर्भरता और घरेलू कला का प्रतीक हैं. कम कीमत और पारंपरिक बनावट के कारण ये झाड़ू स्थानीय बाजारों में लोकप्रिय हैं और आधुनिकता के बीच अपनी खास पहचान बनाए हुए हैं.news 18

भरतपुर आधुनिक युग में, जहां बाजारों में मशीन से बनी झाड़ू आसानी से मिल जाती हैं, वहीं यहां के कई ग्रामीण इलाकों में आज भी परंपरागत तरीके से खजूर के पत्तों से झाड़ू बनाने की परंपरा जीवित है. इन झाड़ुओं की खासियत यह है कि ये पूरी तरह से प्राकृतिक होती हैं और घर की सफाई के लिए बेहद उपयोगी मानी जाती हैं. ये झाड़ू सफाई करने में काफी अच्छी और मददगार साबित होती हैं, जिनकी मदद से घर को अच्छे से साफ किया जा सकता है.

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भरतपुर के ग्रामीण क्षेत्रों जैसे रूपवास, बयाना, वैर, रुदावल और आसपास के गांवों में खजूर की झाड़ू बनाना आज भी कई परिवारों का पारंपरिक कार्य है. इन झाड़ुओं को विशेष रूप से ग्रामीण महिलाएं बड़ी मेहनत और सावधानी से तैयार करती हैं. खजूर के पेड़ में कांटे होने के कारण झाड़ू बनाने की प्रक्रिया आसान नहीं होती, इसलिए महिलाएं इन्हें बनाते समय अपने हाथों की सुरक्षा के लिए कपड़े या मोटे दस्तानों का इस्तेमाल करती हैं.

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झाड़ू बनाने की प्रक्रिया भी काफी रोचक होती है, सबसे पहले खजूर के पेड़ों से कच्ची और मुलायम पत्तियों को सावधानीपूर्वक तोड़ा जाता है. इन पत्तियों को घर लाकर बड़े-बड़े कांटों से अलग किया जाता है, इसके बाद ग्रामीण महिलाएं इन पत्तियों को आकार और लंबाई के अनुसार एक समान करके बांधती हैं. जब झाड़ू का आकार तय हो जाता है, तो इन्हें एक मजबूत डंडे के साथ जोड़ दिया जाता है, ताकि वे लंबे समय तक टिक सकें.

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तैयार झाड़ुओं को दो से तीन दिन तक पत्थरों या किसी भारी वस्तु के नीचे दबाकर रखा जाता है, ताकि उनका आकार स्थिर रहे और वे अच्छी तरह सूख जाएं. सूखने के बाद ये झाड़ू उपयोग के लिए तैयार हो जाती हैं, ग्रामीण बताते हैं कि खजूर की झाड़ू से सफाई करना न केवल आसान होता है, बल्कि यह धूल को भी अच्छी तरह खींच लेती है.

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ये झाड़ू घर को सुंदर, साफ और अच्छा बनाती हैं, भरतपुर के कई हाटों और कस्बों के बाजारों में आज भी इन्हें बिकते देखा जा सकता है. स्थानीय लोग इन्हें बड़े शौक से खरीदते हैं क्योंकि ये टिकाऊ होती हैं और लंबे समय तक चलती हैं, ग्रामीण महिलाओं के लिए यह परंपरा आज भी आत्मनिर्भरता और घरेलू कला का प्रतीक बनी हुई है.

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अगर बात करें इनकी कीमत की तो ये बहुत कम और किफायती होती हैं, इसलिए लोग इन्हें खुद भी पसंद करते हैं. यह खजूर से बनी झाड़ू की परंपरा प्रकृति से जुड़ी हुई है, और इन्हें बनाने की यह कला भरतपुर की ग्रामीण जीवनशैली का एक अहम हिस्सा है, जो आज भी आधुनिकता के बीच अपनी पहचान बनाए हुए है.

First Published :

October 15, 2025, 18:37 IST

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जानिए भरतपुर के ग्रामीण इलाकों में खजूर की झाड़ू बनाने की परंपरा और महत्व

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