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गौरेया के बचाव की अनोखी मुहिम, वेस्ट से बने घरों में छिपा है जीवन का एक बड़ा राज! बचा रहे हैं विलुप्त पक्षी

Last Updated:March 21, 2025, 16:55 IST

पिछले 15 वर्षों से एक व्यक्ति एक पौधा मिशन शिवगंज संस्था पर्यावरण व पशु-पक्षियों संरक्षण के लिए समर्पित है. अब तक सात वर्षों में 10 हजार से ज्यादा वेस्ट वस्तुओं और मिट्टी से बने गौरेया हाउस और परीडा वितरित किए …और पढ़ेंX
गौरेया
गौरेया पक्षी के लिए वेस्ट वस्तुओं से दम्पत्ति गौरेया हाउस बनाकर लगा रहे

हाइलाइट्स

ओमप्रकाश और विमला 7 वर्षों से गौरेया संरक्षण में जुटे हैं.10 हजार से ज्यादा गौरेया हाउस और परिंडे वितरित किए गए.’गौरेया आओ ना’ अभियान के तहत वेस्ट वस्तुओं से गौरेया हाउस बनाए.

सिरोही:- देश समेत दुनियाभर में 20 मार्च विश्व गौरेया दिवस के रूप में मनाया जाता है. गौरेया को किसानों का दोस्त और जैव विविधता का अहम हिस्सा भी माना जाता है. आमजन के आसपास रहने वाला ये पक्षी धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर पहुंच गया है. इसके संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं. आज हम आपको सिरोही जिले के एक ऐसे पर्यावरण प्रेमी दम्पत्ति के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पिछले कई वर्षों से वेस्ट वस्तुओं से गौरेया हाउस तैयार कर लोगों को वितरित कर रहा है.

जिले के शिवगंज निवासी पर्यावरण प्रेमी ओमप्रकाश कुमावत और विमला देवी गौरेया के संरक्षण के लिए करीब 7 वर्षों से काम कर रहे हैं. उपखंड के गांव जोयला, वेरारामपुरा, पोसालिया व छावणी मोक्षधाम में विश्व गौरैया दिवस पर दम्पत्ति द्वारा गौरेया संरक्षण के लिए ‘गौरेया आओ ना’ अभियान चलाकर गौरैया हाउस और परिंडे लगाए गए. साथ ही आमजन से भी विश्व गौरैया दिवस पर इस नन्हें पक्षी को बचाने की अपील की. आमजन को वेस्ट वस्तुओं से तैयार किए गए करीब 500 गौरेया हाउस व परिंदा भी वितरित किए गए.

10 हजार से ज्यादा वितरित किए गौरेया हाउस और परिंदेपर्यावरण प्रेमी ओमप्रकाश कुमावत ने लोकल 18 को बताया कि पिछले 15 वर्षों से एक व्यक्ति एक पौधा मिशन शिवगंज संस्था पर्यावरण व पशु-पक्षियों संरक्षण के लिए समर्पित है. अब तक सात वर्षों में 10 हजार से ज्यादा वेस्ट वस्तुओं और मिट्टी से बने गौरेया हाउस और परीडा वितरित किए जा चुके हैं. गर्मी में दुर्गम क्षेत्रों में वन्यजीवों के लिए टेंकर के माध्यम पानी की व्यवस्था की जा रही है.

कुमावत ने बताया कि गांव-गांव में घरेलू पक्षी गौरेया यानी चकली, जो विलुप्त के कगार पर है, ये किसानों का मित्र पक्षी हैं. जैव विविधता की दृष्टिकोण से पेड़-पौधों व पक्षियों में गहरा संबंध है. अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने गौरेया पक्षी को लाल सूची में दर्ज किया है. गौरेया को बचाने के लिए दिल्ली सरकार ने भी इसे राज्य पक्षी का दर्जा दिया है. भारत वन मंत्रालय से पर्यावरण प्रेमियों की मांग है कि विलुप्त गौरेया पक्षी संरक्षण प्रोजेक्ट चलाए जाए.

‘गौरेया आओ ना’ अभियान पर्यावरण प्रेमी ओमप्रकाश कुमावत ने Local 18 को बताया कि एक व्यक्ति एक पौधा मिशन के जरिए पिछले सात वर्षों से गौरेया पक्षी संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट गौरेया आओ ना अभियान चलाया जा रहा है. इस वर्ष भी मार्च से जून तक गौरेया संरक्षण की मुहिम जारी रहेगी. गर्मी के कारण कोई भी पक्षी की प्यास से मौत ना हो, इसलिए परिंदा भरो अभियान जारी रहेगा. घरेलू वेस्ट वस्तुएं जैसे मिट्टी के मटके, जूते के बाॅक्स, तेल व घी डिब्बे, प्लास्टिक की बोतल से गौरेया हाउस तैयार कर गर्मियों परिंदों में पानी भरकर इन पक्षियों को आश्रय दिया जा सकता है.

गौरेया पक्षी विलुप्त होने के कारणकुमावत ने बताया कि नवीन शैली के भवनों में गौरेया के लिए नीड़ निर्माण का स्थान नहीं है. मोबाइल टावरों के सिग्नल की तरंगों के दुष्प्रभाव से इनकी प्रजनन क्षमता का धीरे-धीरे कम हो रहा है. नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित करते हैं. गौरेया के अस्तित्व के संकट में ग्लोबल वार्मिग व कीटनाशकों का इस्तेमाल की अहम भूमिका है. इनके प्रजनन का समय मार्च से जून तक रहता है.


Location :

Sirohi,Rajasthan

First Published :

March 21, 2025, 16:55 IST

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गौरेया के बचाव की मुहिम; वेस्ट से बने घरों में छिपा है जीवन का एक बड़ा राज!

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