राजस्थान का अनोखा वाद्य यंत्र! 3 पीढ़ियों से जिंदा रखी जा रही है ये विलुप्त होती धरोहर

Last Updated:March 03, 2025, 12:15 IST
मशक बाजा राजस्थान का एक प्राचीन वाद्य यंत्र है, जो बदलते समय और आधुनिक संगीत उपकरणों के कारण लुप्ति के कगार पर है.भीलवाड़ा के ईश्वर इसे जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि यह सांस्कृतिक धरोहर अगली पीढ़ी तक पह…और पढ़ेंX
मशक बाजा बजाते ईश्वर
रवि पायक /भीलवाड़ा– आज के आधुनिक दौर में नए-नए म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट आने के कारण प्राचीन वाद्य यंत्र लुप्त होते जा रहे हैं. ऐसे में हम आपको राजस्थान के एक ऐसे वाद्य यंत्र के बारे में बता रहे हैं, जो पुराने समय में राजा-महाराजाओं के समक्ष बजाया जाता था. हम बात कर रहे हैं राजस्थान के प्राचीन वाद्य यंत्रों में से एक मशक बाजा (Bagpipe) की, जो राजशाही जमाने से चला आ रहा है. लेकिन बदलते समय और म्यूजिक इंडस्ट्री में बदलाव के चलते यह वाद्य यंत्र विलुप्ति के कगार पर है.
मशक बाजा को जीवंत रख रहे ईश्वरभीलवाड़ा जिले के शाहपुरा के रहने वाले ईश्वर इस प्राचीन वाद्य यंत्र को बजाकर इस कला को जीवंत बनाए हुए हैं. वे लोगों को इस वाद्य यंत्र का परिचय भी करवाते हैं. मशक बाजा के माध्यम से ईश्वर और उनके परिवार ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. वे पीढ़ी दर पीढ़ी इसे बजाते आ रहे हैं और अपनी कला का प्रदर्शन न केवल भीलवाड़ा, बल्कि राजस्थान के अन्य शहरों में भी कर चुके हैं.
तीन पीढ़ियों से बजा रहे मशक बाजाभीलवाड़ा जिले के शाहपुरा निवासी ईश्वर ने ‘लोकल 18’ से बातचीत में बताया कि उनका परिवार तीन पीढ़ियों से मशक बाजा (जिसे आम भाषा में पाइप बैंड और मशक बंध भी कहा जाता है) बजा रहा है. यह वाद्य यंत्र बहुत प्राचीन है और राजाओं के समय शादी या शाही दावतों में बजाया जाता था. पुराने समय में जब शाहपुरा एक रियासत हुआ करती थी, तब उनके पूर्वज इस वाद्य यंत्र को बजाते थे.
लेकिन आज बहुत कम लोग बचे हैं जो इस वाद्य यंत्र को बजाना जानते हैं, जिससे यह कला खत्म होती जा रही है. फिर भी ईश्वर इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं और जहां भी जाते हैं, वहां लोगों को इस वाद्य यंत्र के बारे में जानकारी देते हैं और इसे बजाने की कला का परिचय कराते हैं. वे अपनी आने वाली पीढ़ी को भी इसे बजाना सिखा रहे हैं.
क्या है मशक बाजा वाद्य यंत्र?मशक बाजा वाद्य यंत्र में एक बड़ा थैला होता है, जिसमें पाइप लगे होते हैं. इसे बजाने के लिए थैले में हवा भरी जाती है, ठीक वैसे ही जैसे बांसुरी बजाने के लिए फूंक दी जाती है. इस वाद्य यंत्र को हाथ और मुंह की सहायता से बजाया जाता है. पुराने समय में यह राजा-महाराजाओं के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में विशेष स्थान रखता था. इसे गले में पहनकर, हाथों और मुंह की सहायता से बजाया जाता है, जिससे अलग-अलग धुनें उत्पन्न होती हैं.
बदलते संगीत यंत्रों के बीच विलुप्त होता मशक बाजाईश्वर ने ‘लोकल 18’ से बातचीत में बताया कि आज के आधुनिक दौर में लगातार साउंड सिस्टम, डीजे नाइट, गिटार, पियानो, ड्रम सेट सहित अन्य आधुनिक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स आ जाने के कारण राजस्थान के कई प्राचीन वाद्य यंत्र लुप्त हो गए हैं. आज की युवा पीढ़ी भी इन पारंपरिक वाद्य यंत्रों में रुचि नहीं लेती है, जिससे इनका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है.
हालांकि, ईश्वर जैसे लोग इन्हें जीवित रखकर हमारी पुरानी संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रहे हैं. जरूरत इस बात की है कि लोग जागरूक हों और राजस्थान की इस अनूठी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए आगे आएं.
Location :
Bhilwara,Rajasthan
First Published :
March 03, 2025, 12:15 IST
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