पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की अनूठी प्रेम कहानी.. जिसकी गवाही देती है बयाना में बनी यह इमारत! जानें इसका इतिहास

Last Updated:February 14, 2025, 08:29 IST
राजस्थान की मिट्टी में कई प्रेम कहानियां जन्मी हैं, जो इतिहास में दर्ज हो गई हैं. इन्ही में से एक कहानी है महाराज पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की, चलिए जानते हैं कैसे हुई इसकी शुरुआतX
बारहदरी इमारत
हाइलाइट्स
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी राजस्थान की अमर गाथा है.संयोगिता ने स्वयंवर में पृथ्वीराज की प्रतिमा को जयमाला पहनाई.भरतपुर की बारहदरी इमारत इस प्रेम कहानी की गवाही देती है.
भरतपुर:- राजस्थान की वीरभूमि का नाम सुनते ही शौर्य गाथाएं जेहन में उभर आती हैं, पर इसी मिट्टी में कई प्रेम कहानी भी जन्मी हैं. जिन्होंने इतिहास में अमिट स्थान बनाया है. यह भी ऐसी ही एक प्रेम कहानी है महाराज पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की, जो प्रेम और अदम्य साहस का प्रतीक बनी.
आपको बता दें, कि संयोगिता कन्नौज के प्रतापी राजा जयचंद की पुत्री थीं. उनकी सुंदरता और बुद्धिमत्ता की चर्चा दूर-दूर तक थी, मगर दुर्भाग्यवश उनके पिता पृथ्वीराज चौहान से शत्रुता रखते थे जो दिल्ली के पराक्रमी शासक थे, लेकिन प्रेम की डोर बंधने में समय नहीं लगता. बताया जाता है एक दिन एक चित्रकार ने विभिन्न राजाओं और राजकुमारियों के चित्र बनाए. जब संयोगिता ने पृथ्वीराज चौहान का चित्र देखा तो वह उनके व्यक्तित्व और तेजस्विता पर मोहित हो गईं. उधर जब पृथ्वीराज ने संयोगिता का चित्र देखा तो उनका हृदय भी प्रेम से भर गया. यह प्रेम दूरियों के बावजूद भी जन्म ले चुका था.
नियति को कुछ और था मंजूरसंयोगिता के विवाह के लिए कन्नौज में भव्य स्वयंवर का आयोजन हुआ, लेकिन जयचंद ने पृथ्वीराज को निमंत्रित नहीं किया. इतना ही नहीं उन्होंने अपने शत्रु का अपमान करने के लिए स्वयंवर भवन के द्वार पर उनकी प्रतिमा एक द्वारपाल की तरह स्थापित कर दी, मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था. स्वयंवर के दिन संयोगिता ने राजाओं की लंबी पंक्ति को अनदेखा कर सीधे उस प्रतिमा के सामने जाकर जयमाला डाल दी जिससे उनका हृदय पहले ही बंध चुका था. यह देख दरबार में खलबली मच गई. जयचंद क्रोधित हो उठे मगर इससे पहले कि वह कुछ कर पाते, प्रेम ने पराक्रम का रूप धारण कर लिया. पृथ्वीराज जो पहले से ही अपनी योजना बना चुके थे तेजी से स्वयंवर सभा में आए और संयोगिता को घोड़े पर बिठाकर बिजली की गति से वहां से निकल गए.
पृथ्वीराज चौहान यहीं रुके थेकहा जाता है उनके सैनिकों ने भी उन्हें सुरक्षा प्रदान की और वे राजपूताना के पूर्वी द्वार बयाना प्राचीन श्रीप्रस्थ पहुंच गए. भरतपुर के बयाना के पास हिण्डौन मार्ग पर स्थित ऐतिहासिक बारहदरी नामक इमारत आज भी इस प्रेम गाथा की गवाही देती है. कहा जाता है कि पृथ्वीराज और संयोगिता कुछ समय यहीं रुके थे. यह प्रेम की वह अमर निशानी है, जो आज भी प्रेमियों को आकर्षित करती है. संयोगिता और पृथ्वीराज का प्रेम सिर्फ एक कथा नहीं बल्कि यह एक ऐसा साहसिक अध्याय है. जिसने प्रेम को केवल भावना नहीं बल्कि स्वाभिमान और संघर्ष की शक्ति बना दिया था.
Location :
Bharatpur,Rajasthan
First Published :
February 14, 2025, 08:29 IST
homeajab-gajab
पृथ्वीराज और संयोगिता की ऐसी प्रेम कहानी, जिसकी गवाही दे रही बयाना की ये इमारत