राजस्थान के इस गांव की अनोखी परंपरा ,तालाब और नाड़ी का होता हैं विवाह, पूरा गांव होता हैं शामिल

Last Updated:April 26, 2025, 09:38 IST
भीलवाड़ा जिले के सांगरिया गांव में एक अनोखा विवाह का आयोजन हुआ हैं जो क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया हैं यहां दूल्हा कोई और नहीं बल्कि भगवान वरुणदेव (तालाब) बने और दुल्हन के रूप में वरुणीदेवी (नाड़ी) की पूजा क…और पढ़ेंX
तालाब और नाड़ी की शादी करवाते ग्रामीण
राजस्थान प्रदेश प्रकृति और प्रकृति को बचाने के लिए एक खास महत्व और पूरी दुनिया में एक अनोखा स्थान रखता है राजस्थान में पर्यावरण संरक्षण के लिए ऐसे कई परंपरा है जो आज भी जिंदा है और ग्रामीण परिवेश के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहे हैं भीलवाड़ा जिले में एक ऐसा गाँव हैं जहाँ बड़ी अनूठी परम्परा निभाई जाती हैं. भीलवाड़ा जिले के सांगरिया गांव में एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है इसके तहत पर्यावरण को बचाने और मानव जीवन और प्रकृति के बीच एक अटूट रिश्ता पैदा करने के लिए ग्रामीणों द्वारा अनोखा आयोजन किया जाता है. जो हर किसी व्यक्ति के लिए चर्चा का विषय बन गया है. इसके तहत यहां दूल्हा भगवान वरुणदेव (तालाब) बने और दुल्हन के रूप में वरुणीदेवी (नाड़ी) की पूजा की गई हैं. ग्रामीणों ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ इस तालाब विवाह को संपन्न कराया जाता हैं इस दौरान विवाह समारोह में शादी की सभी रस्में निभाई जाती हैं. इस अनूठे विवाह को देखने के लिए आसपास के सभी क्षेत्र के ग्रामीण इकट्ठा होते हैं
भीलवाड़ा जिले के सांगरिया गांव में एक अनोखा विवाह का आयोजन हुआ हैं जो क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया हैं यहां दूल्हा कोई और नहीं बल्कि भगवान वरुणदेव (तालाब) बने और दुल्हन के रूप में वरुणीदेवी (नाड़ी) की पूजा की गई. ग्रामीणों ने पूरे उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ इस ‘तालाब विवाह’ को संपन्न कराया हैं दो दिनों तक चले इस विवाह समारोह में हर वह रस्म निभाई गई, जो आमतौर पर किसी व्यक्ति की शादी में होती है इस अनूठे विवाह को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा हैं.
प्रकृति और मानव जीवन का अटूट रिश्ताआयोजन समिति के माधव पोषवाल भाबा महाराज ने इस अनूठी परंपरा के बारे में बताते हुए कहा कि हिंदू धर्म का प्रकृति से अटूट संबंध है. प्रकृति हमारे जीवन का अभिन्न अंग है और इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म में पृथ्वी को देवी का स्थान दिया गया है, और इसी तरह पर्वत, नदी, जंगल, तालाब, वृक्ष और पशु-पक्षी भी हमारी पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़े हुए हैं.प्राचीन काल से ही प्रकृति के संरक्षण के उद्देश्य से इन्हें पूजनीय माना जाता रहा है.
101 गाँवो में होती है प्रभात फेरीइस विशेष अवसर पर सांगरिया गांव में हरिबोल प्रभातफेरी का भी आयोजन किया गया, जिसमें आसपास के 101 गांवों से रामधुनी मंडल के भक्तगण हरी कीर्तन करते हुए शामिल हुए हैं. यह प्रभातफेरी गांव की गलियों से गुजरी, जहां ग्रामीणों ने पुष्प वर्षा कर इसका भव्य स्वागत किया. प्रभातफेरी का समापन पाच्यामण्ड देवनारायण मंदिर में हुआ, जहां एक धर्म सभा का भी आयोजन किया गया.
विवाह के दौरान निभाए विवाह के रिवाज – लालराम गुर्जर ने बताया कि पंडित शंकर लाल शर्मा के सानिध्य में तालाब विवाह के दौरान सभी प्रकार के रीति रिवाज निभाए गए. तालाब की पाल पर आयोजित हुए कार्यक्रम में तोरण की रस्म अदा हुई। हथलेवा भरा गया.हवन में आहुतियां दी गईं. रामधुनी के समापन पर पाच्यामण्ड देवनारायण मंदिर परिसर में धर्मसभा का आयोजन हुआ हैं
Location :
Bhilwara,Rajasthan
First Published :
April 26, 2025, 09:38 IST
homerajasthan
इस गांव की अनोखी परंपरा,तालाब और नाड़ी का विवाह,पूरा गांव होता हैं शामिल