आदिवासी समाज की जनगणना के लिए अलग व्यवस्था हो, संसद में बोले राजकुमार रोत

नई दिल्ली. बांसवाड़ा डूंगरपुर से सांसद राजकुमार रोत ने लोकसभा में कहा कि आदिवासी समाज अपनी पहचान के लिए लड़ाई लड़ रहा है. उसकी जनगणना के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए. देश में धर्म की राजनीति का काम हो रहा है. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज अब जाग गया है और उसे बहकाया नहीं जा सकता. सरकार ने खनन के लिए बड़ी कंपनियों को काम दिया है जो जंगल और पहाड़ों में खनन कर रही हैं, इससे आदिवासी समाज प्रभावित हो रहा है.
भारत आदिवासी पार्टी के नेता राजकुमार रोत ने कहा कि आदिवासी समाज जिस गांव में आजादी से पहले से बैठा हुआ है, रह रहा है उसको उस जमीन का पट्टा नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि यहां सत्ता की लड़ाई लड़ी जाती है, लेकिन हमें अपना अस्तित्व बचाना है. हमें सत्ता नहीं चाहिए, हमें जल, जंगल और जमीन बचाना है. जब देश में आदिवासी समाज जल, जंगल की बात करता है तो उसे नक्सली और नक्सलवादी कह देते हैं. उन्होंने कहा कि हमें फ्री वाली योजनाएं नहीं चाहिए. हमें जल, जंगल और जमीन दो, उसका मालिकाना हक दो. संविधान में जो प्रावधान किए गए हैं; उसे धरातल पर लागू किए जाएं.
आदिवासी समाज के लिए अलग से धर्म कोड की व्यवस्था होनी चाहिएराजकुमार रोत ने कहा कि लंबे समय से मांग है कि आदिवासी समाज को अलग से धर्म कोड दिया जाए. 1871 से लेकर 1951 तक अलग-अलग जनगणना हुई. आदिवासी समाज बंटा हुआ है, कोई एक धर्म अपना रहा है तो कोई दूसरा धर्म, इससे उनकी पहचान खत्म हो रही है. लंबे समय से मांग है कि जनगणना में अलग से कॉलम होना चाहिए. हम आदिवासी हैं और हमें आदिवासी रहने दिया जाए. शिक्षा के निजीकरण को खत्म किया जाए. अभी सरकार ने 6 साल के बच्चे को पहली कक्षा में प्रवेश देने की जो नीति बनाई है, उसे बदलना चाहिए. सरकारी स्कूलों में सुविधाओं को बढ़ाना चाहिए.
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FIRST PUBLISHED : July 29, 2024, 19:48 IST