‘यह नागरिकता जांचने जैसा’, एसआईआर पर CJI के सामने सिंघवी की दलील, सिब्बल ने पूछा-बीएलओ के पास कितनी पॉवर

Last Updated:November 28, 2025, 01:09 IST
सुप्रीम कोर्ट में SIR पर सुनवाई में अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग की शक्तियों और BLO की भूमिका पर सवाल उठाए, कहा चुनाव आयोग जो कर रहा है वह नागरिकता जांचने जैसा है. ऐसा कानून बनाने की शक्ति सिर्फ संसद या विधानसभा को दी गई है. सिब्बल ने बीएलओ की शक्तियों पर सवाल उठाए.
एसआईआर पर सीजेआई के सामने सिब्बल और सिंघवी ने तगड़ी बहस की.
सुप्रीम कोर्ट में एसआईआर (SIR) पर सुनवाई चल रही थी. तभी याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) जस्टिस सूर्यकांत कह दिया, SIR कोई आम प्रक्रिया नहीं है, यह massification en masse exercise यानी बड़े पैमाने पर चलाया जा रहा सामूहिक अभियान है. यह सिर्फ फोटो वेरिफिकेशन नहीं, बल्कि नागरिकता की जांच जैसा बन चुका है. चुनाव आयोग के पास ऐसा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. उनके इस बयान ने सुप्रीम कोर्ट के अंदर और बाहर दोनों जगह SIR को लेकर नई बहस छिड़ गई. सवाल उठे कि क्या सच में एसआईआर के बहाने नागरिकता जांच हो रही है? उधर, कपिल सिब्बल ने पूछ डाला, बीएलओ के पास आखिर पॉवर कितनी है? क्या वो नागरिकता तय कर सकता है?
सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ के सामने सिंघवी ने कहा, चुनाव आयोग, चुनावों के संचालन को नियंत्रित करने के नाम पर ऐसे आदेश नहीं दे सकता जो पूरी तरह विधायी प्रकृति के हों, क्योंकि संविधान की व्यवस्था में यह अधिकार सिर्फ संसद और राज्य विधानसभाओं को दिया गया है. किसी भी तरह से यह नहीं कहा जा सकता कि चुनाव आयोग संविधान की विधायी प्रक्रिया का तीसरा सदन है. सिर्फ इसलिए कि चुनाव आयोग को संविधान के तहत बनाया गया है, उसे पूरी तरह कानून बनाने की शक्ति नहीं मिल जाती. लेकिन चुनाव आयोग इसी बहाने से वास्तविक और ठोस बदलाव कर रहा है जो कि कानून बनाना है. वे इसे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं.
ये नियमों में कहां लिखा जो डॉक्यूमेंट मांगे
सिंघवी ने कहा, संविधान का अनुच्छेद 324 (चुनावों का नियंत्रण) को अनुच्छेद 327 के साथ मिलाकर पढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि 327 संसद को चुनाव संबंधी कानून बनाने की शक्ति देता है. सिंघवी ने जून 2025 में जारी एक फॉर्म पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें 11–12 तरह के दस्तावेज मांगे गए थे. उन्होंने पूछा, ये नियमों में कहां लिखा है? ऐसा फॉर्म तो सिर्फ डेलिगेटेड कानून से ही आ सकता है.
कपिल सिब्बल ने पूछा-बीएलओ के पास कितनी पॉवर
कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया कि BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) की शक्ति की सीमा क्या है. क्या BLO यह तय कर सकता है कि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार है?” यह अत्यंत खतरनाक है, आपने एक स्कूल टीचर को बीएलओ बनाकर इतनी ताकत दे दी है कि वह नागरिकता तय करेगा. सिब्बल ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 16 का हवाला दिया, जो वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करने से अयोग्यता के नियम बताती है. यह धारा कहती है कि किसी की नागरिकता का फैसला गृह मंत्रालय करता है. अगर कोई मानसिक रूप से बीमार है, तो उसका फैसला अदालत करती है. आप BLO को यह सब तय करने के लिए कैसे कह सकते हैं? उन्होंने कहा कि SIR में लगाए गए नियम विदेशी अधिनियम जैसे हैं, जहां व्यक्ति पर ही यह प्रेशर होता है कि वह साबित करे कि वह विदेशी नहीं है.
Gyanendra Mishra
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi..com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for ‘Hindustan Times Group…और पढ़ें
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First Published :
November 27, 2025, 20:44 IST
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‘यह नागरिकता जांचने जैसा’, एसआईआर पर CJI के सामने सिंघवी की दलील



