ये है राजस्थान का देशी वॉयलिन, सदियों पुराने इस वाद्ययंत्र को 30 साल से बजा रहे ये बुजुर्ग
सिरोही : राजस्थान में लोकगीतों की बात आती है, तो इसमें कई प्रकार के वाद्ययंत्रों का जिक्र जरूर होता है. राजस्थानी गीतों में मधुर संगीत के लिए उपयोग होने वाले एक वाद्ययंत्र को राजस्थान का देशी वॉयलिन भी कहा जाता है. हम बात कर रहे हैं रावण हत्थे की.
प्रदेश के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू की फेमस नक्की झील के किनारे 61 वर्षीय बाबूलाल इस इंस्ट्रूमेंट को बजाकर मधुर संगीत पर्यटकों को सुनाते है पर्यटक भी इस वाद्ययंत्र की आवाज को पसंद करते हैं. यहां से होने वाली आय से बाबूलाल अपना घर खर्च चलाते हैं. बाबूलाल ने लोकल-18 को बताया कि ये रावणहत्था उन्होंने खुद ही तैयार किया था. वह पिछले 30-35 साल से रावण हत्था बजा रहे हैं और उनके परिजन भी ये वाद्य यंत्र बजाते थे.
भगवान शिव को प्रसन्न करने रावण ने बजाया था रावणहत्थारावणहत्थे शब्दों के अनुसार इसे रावण का हाथ कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस वाद्ययंत्र पर मधुर धुन बजाय थी. इसे आधुनिक वॉयलिन का पूर्वज माना जाता है. वैसे तो ये राजस्थान गुजरात के लोकवाद्य यंत्रों में शामिल हैं. लेकिन इसकी उत्पत्ति मूल रूप से श्रीलंका के हेला सभ्यता से जुड़ी हुई मानी जाती है.
ऐसे तैयार होता है रावण हत्थाइस वाद्ययंत्र को तार वाला वाद्ययंत्र कहा जाता है. इसे स्टील, घोड़े के बाल, लकड़ी, नारियल के खोल, बांस, और चमड़े से तैयार किया जाता है. रावण हत्था बजाने का तरीका काफी हद तक वायलिन से मिलता-जुलता है. इसमें भी एक धनुष होता है जिससे संगीतमय कंपन पैदा करने के लिए तारों पर खींचा जाता है. राजस्थानी भोपाओ द्वारा इसका काफी उपयोग किया जाता था. राजस्थान के भोपाओं द्वारा एक पारंपरिक कथाओं पाबूजी की फड़ मुखर संगत के लिए प्रमुख रूप से इसका उपयोग किया जाता है. इसके अलावा वाद्ययंत्र राजस्थान के लोकगीतों में अहम भूमिका निभाता है.
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FIRST PUBLISHED : December 26, 2024, 12:38 IST