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राजस्थान कांग्रेस में बवाल, बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट को लेकर मची धमाचौकड़ी, जलेबी बने सियासी दांवपेंच

डूंगरपुर. राजस्थान कांग्रेस में आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट को लेकर जोरदार घमासान मचा हुआ है. कांग्रेस इस सीट पर पहले ऐनवक्त तक अपना प्रत्याशी तय नहीं कर पाई थी. बाद में नामांकन का समय समाप्त होने से एक घंटे पहले प्रत्याशी तय किया किया. लेकिन उस प्रत्याशी ने नामांकन नहीं भरा. नामांकन करने की समय सीमा समाप्त होन से महज दस मिनट पहले दूसरे कार्यकर्ता का नामांकन कराया गया.

बाद में पार्टी ने वहां नवगठित पार्टी भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन कर लिया. लेकिन कांग्रेस के सिंबल पर नामांकन करने वाले प्रत्याशियों ने नाम वापस नहीं लिया. इससे वहां धमाचौकड़ी मची हुई है. कांग्रेस के साथ यह स्थिति वहां डूंरगपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर ही नहीं बल्कि बागीदौरा विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर भी है.

भारतीय आदिवासी पार्टी ने बदले समीकरण
दरअसल राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य इलाके में तेजी से उभरती भारतीय आदिवासी पार्टी ने इस इलाके के राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं. बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट में 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें बांसवाड़ा के 5 और डूंगरपुर के 3 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. वर्तमान में इन 8 में से 5 पर कांग्रेस, 2 पर बीजेपी और एक पर बाप पार्टी है. फिर भी कांग्रेस ने एक सीट वाली बाप पार्टी से समझौता किया. पूर्व में गहलोत सरकार को समर्थन देकर उनके करीबी बने विधायक राजकुमार बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट से बाप के प्रत्याशी हैं.

रोत और गहलोत के बीच हुआ समझौता!
इलाके की राजनीति को गहरे से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अशोक गहलोत का राजकुमार से कथित तौर पर गुप्त समझौता हुआ था. जालोर-सिरोही इलाके में भी आदिवासियों की बड़ी संख्या है और वहां भी बाप पार्टी मजबूत स्थिति में है. इस कथित समझौते के मुताबिक बाप पार्टी जालोर-सिरोही सीट पर अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत के सामने प्रत्याशी नहीं उतारने या फिर नाम वापस ले लेने को तैयार हो गई थी. बदले में कांग्रेस ने बांसवाड़ा सीट पर राजकुमार के सामने कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं उतारने का वादा किया था. कांग्रेस में शीर्ष स्तर पर इस बात पर सहमति भी बन गई थी.

अंतिम समय में कांग्रेस ने उतारे उम्मीदवार
बाप पार्टी शुरू से कांग्रेस से गठबंधन न कर स्वतंत्र चुनाव लड़ने की बात कहती आ रही थी. जबकि कांग्रेस अंतिम समय तक गठबंधन की बात करती रही और उसने लोकसभा और बागीदौरा विधानसभा पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा. लेकिन स्थानीय कांग्रेस नेताओं के आक्रोश को देखते हुए नामांकन के अंतिम दिन कांग्रेस के सिंबल बांसवाड़ा आए. कांग्रेस के सिंबल आने की सूचना मिलते ही राजकुमार ने अपने सुर बदल दिए. उन्होंने ट्वीट कर कांग्रेस का समर्थन मांगते हुए उनके सामने कांग्रेस उम्मीदवार नहीं खड़ा करने का निवेदन किया.

दूसरे कार्यकर्ता से करवाया नामांकन
लेकिन इस इसमें बड़ा खेला हो गया. कांग्रेस की बैठक में डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट से अर्जुन बामनिया का नाम तय हो गया था. लेकिन अंतिम समय में अर्जुन बामनिया ने नामांकन करने से मना कर दिया और साधारण युवा कार्यकर्ता अरविंद डामोर को प्रत्याशी बनाकर नामांकन करवा दिया. इसके बाद बाप प्रत्याशी राजकुमार ने बयान दिया कि कांग्रेस की लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई में वे कांग्रेस के साथ है और गठबंधन को तैयार हैं. वहीं बागीदौरा विधानसभा सीट के लिए कांग्रेस ने कपूर सिंह को अपना प्रत्याशी बना दिया। उन्होंने भी अंतिम समय में नामांकन किया.

प्रत्याशी फोन बंदकर हो गए गायब
गठबंधन के सिरे पर चढ़ने के बाद कांग्रेस में लोकसभा और बागीदौरा विधानसभा सीट के कांग्रेस प्रत्याशियों के नाम वापस लेने की चर्चाएं शुरू हो गई. कांग्रेस प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर रंधावा ने नाम वापसी वाले दिन की पूर्व संध्या पर ट्वीट कर गठबंधन पर मुहर लगाई और लिखा की बाप पार्टी के समर्थन में कांग्रेस के दोनों उम्मीदवार कल अपना नाम वापस लेंगे. लेकिन नाम वापस लेने के अंतिम दिन कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी फोन बंद कर गायब हो गए. वे नाम वापसी का समय गुजरने के बाद सामने आए. इस पर कांग्रेस ने उन दोनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया. अब दोनों सीट पर कांग्रेस से निष्कासित उम्मीदवार पार्टी के सिंबल पर चुनावी मैदान में है. वहीं कांग्रेस गठबंधन का दावा कर रही है.

मालवीय ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी में हो गए शामिल
उल्लेखनीय है इस आदिवासी इलाके में पूर्व में कांग्रेस के मजबूत स्तंभ आदिवासी नेता महेन्द्रजीत सिंह मालवीय थे. वे विधानसभा चुनाव में बागीदौरा से चुनाव जीते थे. वे गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे थे. उसके बाद वे पिछले दिनों बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने उनको डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट से प्रत्याशी बना दिया. मालवीय के बीजेपी में आते ही वहां कांग्रेस के राजनीतिक समीकरण गड़बड़ा गए और घमासान मच गया.

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