Rajasthan

लकवा पीड़ित रोगियों के लिए स्वर्ग है ये मंदिर! मनोकामना पूरी होने पर चढ़ता है जिंदा मुर्गा, अनोखी मान्यता

भीलवाड़ा:- राजस्थान प्रदेश का मेवाड़ अपनी खास परंपरा और प्राचीन मन्दिरों को लेकर पूरी दुनिया में एक अहम स्थान रखता है. वैसे तो आमतौर पर देखा जाता है कि ज्यादातर लकवा रोगी, चिकित्सकों का सहारा लेकर अपनी बीमारी को दूर करने का प्रयास करते हैं. लेकिन मेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक झांतला माता का एक ऐसा स्थान है, जहां न केवल प्रदेश से, बल्कि दूर-दराज के अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में लकवा रोगी पहुंचकर रोग मुक्त हो जाते हैं. यहां की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से लकवा रोगी ठीक हो जाते हैं. वर्षों पुराने माता के मंदिर में इस तरह के चमत्कार की गाथा दूर-दूर तक फैली हुई है. जिसके चलते यहां वर्ष भर लकवा रोगियों की भीड़ देखने को मिलती है. कई बार तो अपनी मनोकामना पूरी होने और रोग मुक्त होने के बाद श्रद्धालु यहां जिंदा मुर्गे का उतारा कर मन्दिर परिसर में छोड़ देते हैं.

जानें मंदिर की क्या है मान्यतामेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठ श्री झांतला माताजी ट्रस्ट के अध्यक्ष लालचन्द गुर्जर ने लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए कहा कि भीलवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित चित्तौड़गढ़ के पांडोली में झांतला माता जी स्थित है. यह मेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. यह मंदिर लोक आस्था का केंद्र है. यहां सैकड़ों वर्ष पूर्व एक विशाल वट वृक्ष था, जिसके नीचे देवी की प्रतिमा थी. झांतला माता मंदिर में गुजरात, महाराष्ट्र मध्य प्रदेश सहित राजस्थान के भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, अजमेर, राजसमंद सहित अन्य जिलों से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. इस स्थान पर विक्रम संवत 1215 के लगभग एक विशाल मंदिर का निर्माण किया गया, जो आज भी स्थित है. अपने वर्तमान स्वरूप में इस मंदिर के गर्भ गृह में 5 देवियों की प्रतिमा स्थित है. यहां माताजी की सेवा गुर्जर समाज के एक ही परिवार के द्वारा 5 पीढ़ियों से की जा रही है.

लकवा ( पैरालाइज ) का रोग यहां होता है ठीकमंदिर के जगदीश कहते हैं कि आमतौर पर झातला माता को लकवा ग्रस्त रोगियों की देवी भी कहा जाता है. मान्यता है कि जो लकवा ग्रस्त रोगी चिकित्सकों के द्वारा भी सही नहीं होते हैं, तो वह माता के दरबार में सही होकर अपने घर जाते हैं. लकवा ग्रस्त रोगियों को मंदिर में रात्रि विश्राम करने के साथ ही वहां स्थित वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर बीमारी से राहत मिलती है.

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मंदिर परिसर में छोड़कर जाते हैं जिंदा मुर्गाइस मंदिर परिसर में अगर नजर घुमाकर देखें, यहां आपको चारों तरफ मुर्गे नजर आएंगे, क्योंकि जब यहां पर एक भक्त अपने कष्ट पीड़ा लेकर आता है और बाद में माता द्वारा पीड़ा दूर करने के बाद भक्तों द्वारा 21 बार जिंदा मुर्गे को उतरवाकर यहां मंदिर परिसर में जिंदा छोड़ दिया जाता है और उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है. इसके चलते यहां मंदिर परिसर में हर जगह मुर्गे घूमते हुए नजर आते हैं.

Tags: Bhilwara news, Dharma Aastha, Local18, Rajasthan news

FIRST PUBLISHED : November 13, 2024, 19:00 IST

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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