This youth did wonders by growing saffron in sandy banks, made a profit of four lakhs – News18 हिंदी

रिपोर्ट-निखिल स्वामी
बीकानेर. राजस्थान की भीषण गर्मी और तपते रेतीले धोरों में इन दिनों सुंदर नजारा है. मरुस्थल में कश्मीर की बहार आ गयी है. ठंडे प्रदेश की फसल रेतीले प्रदेश में लहलहा रही है. ये कुदरत के करिश्मे के साथ युवा किसान की मेहनत का फल है. इस कीमती और नाजुक फसल का बाजार भाव सुनकर चक्कर आ जाएंगे. बाजार में इसका मौजूदा दाम 3 लाख रुपए प्रति किलो है.
सुनकर कानों को एक बार यकीन नहीं होगा. कश्मीर जैसे ठंडे प्रदेश की नाजुक फसल केसर अब मरुस्थलीय इलाके बीकानेर में उग रही है. 45 डिग्री के तापमान वाले शहर में केसर उगायी गयी है. यहां के एक युवा किसान सुनील जाजड़ा ने ये प्रयोग किया और वो सफल रहा.
मरुस्थल में कश्मीर
मरुस्थल में कश्मीर की फसल उगाना आसान नहीं था. एकदम ठंडे प्रदेश की गर्म प्रदेश में पैदावार सोचना भी मुश्किल भरा है. लेकिन सुनील ने एयरोपोनिक्स तकनीक से केसर की खेती कर एक नायाब उदाहरण प्रस्तुत किया है. कश्मीर की वादियों के पांच डिग्री तक न्यूनतम तापमान और 80 फीसदी से ज्यादा नमी वाले वातावरण को यहां रेगिस्तान में कृत्रिम रूप से एक कमरे में तैयार कर केसर की खेती की. सुनील ने एयरोपोनिक्स तकनीक से 10 गुणा 18 फीट के एक कमरे में केसर की खेती की है.
बहुत नाजुक और महंगी है फसल
सुनील जाजड़ा ने बताया लॉक डाउन के दौरान जब वो फुरसत में थे तब उन्होंने केसर की खेती पर रिसर्च शुरू किया. फिर पता चला कि एयरोपोनिक्स तकनीक से केसर किसी भी जगह उगा सकते हैं. उन्होंने वर्ष 2020 में इस पर प्रयास शुरू किया और आखिरकार सफलता मिल ही गयी. एयरोपोनिक्स तकनीक यहां पूरी तरह सफल रही. इस तकनीक पर 6 लाख रुपए खर्च हुए और 4 लाख का मुनाफा भी हो गया. अपनी सफलता से उत्साहित सुनील पर दोबारा केसर उगाने की तैयारी में हैं. जुलाई और अगस्त में केसर लगाया जाता है जो अक्टूबर-नवंबर में तैयार हो जाती है. सुनील बताते हैं-मैंने केशर की सुपीरियर क्वालिटी लगाई है.
मरुस्थल में बेहद कठिन है केसर की खेती
सुनील ने बताया पहली बार केसर के बीज खरीदकर लाने पड़े. अब कई गुणा बीज हर साल तैयार होते रहेंगे. एयरोपोनिक्स तकनीक से तैयार किए कक्ष में तापमान और आवश्यक नमी मेंटेन रखने और फूल खिलने के लिए जरूरी यूवी अल्ट्रावॉयलेट रोशनी पर बिजली का खर्च ही लगेगा. दिन में दो बार कमरे का तापमान बदलना पड़ता है. वे बताते हैं मेरा पुश्तैनी काम किसानी खेतीबाड़ी का ही है. मैंने परंपरागत खेती के साथ आधुनिक खेती की तरफ जाने का सोचा. केसर कम जगह में ज्यादा मुनाफा दे सकती है.
ऐसे शुरू की खेती
सुनील बताते हैं इस बार वे एक किलो केसर उगाने की तैयारी में हैं. स्नातकोत्तर तक शिक्षित और किसान के बेटे सुनील जाजड़ा बीकानेर के चोपड़ाबाड़ी, गंगाशहर क्षेत्र में रहते हैं. अप्रेल 2020 में लॉकडाउन के दौरान उनका टायर का शोरूम बंद हो गया. तब एक वीडियो देख केसर की खेती करने का विचार आया. साल 2021 में श्रीनगर गए. वहां केसर की खेती देखी और कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से बात की. फिर चार-पांच बार श्रीनगर जाकर किसानों से केसर की खेती के लिए तापमान और नमी की जानकारी जुटाई और बीकानेर आकर खेती शुरू की.
एक से दस हुए बल्ब
सुनील ने केसर की एक फसल लेने के बाद दिसम्बर में ट्रे में बचे जड़नुमा बल्ब को कमरे के बाहर 30 गुणा 45 फीट की क्यारी बनाकर मिट्टी में खाद देकर बो दिया है. यह लहसुन और प्याज की तरह उग आए हैं. नौ महीने खाद-पानी देते रहेंगे और मिट्टी के भीतर एक बल्ब से दस से बारह बल्ब बन जाएंगे.
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FIRST PUBLISHED : April 24, 2024, 16:56 IST