अरावली कटाई से राजस्थान में रेगिस्तान का खतरा बढ़ा

जयपुर. अरावली पर्वतमाला को राजस्थान की प्राकृतिक रीढ़ कहा जाता है, लेकिन अब यही अरावली रेगिस्तान के बढ़ते दबाव के आगे कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है. अजमेर और नागौर जिले की सीमा पर पुष्कर के पास जो हालात सामने आए हैं, वे इस खतरे को जमीन पर साफ दिखाते हैं. यहां अरावली की पहाड़ियों की कटाई के बाद नागौर की ओर का रेतीला इलाका अब धीरे-धीरे अजमेर की दिशा में बढ़ता नजर आ रहा है. विशेषज्ञ इसे आने वाले समय के लिए गंभीर चेतावनी मान रहे हैं.
अरावली न सिर्फ राजस्थान बल्कि पूरे उत्तर भारत के पर्यावरण संतुलन में अहम भूमिका निभाती रही है. यही पर्वतमाला थार रेगिस्तान को पश्चिम में सीमित रखती है और इसके पूर्वी हिस्सों को मरुस्थलीकरण से बचाती आई है. लेकिन बीते कुछ वर्षों में विकास परियोजनाओं, खनन और पहाड़ियों की कटाई ने इस प्राकृतिक दीवार को कमजोर कर दिया है.
अरावली कैसे बांटती है राजस्थान को दो हिस्सों में
अरावली पर्वतमाला राजस्थान को भौगोलिक रूप से दो अलग-अलग हिस्सों में विभाजित करती है. एक तरफ मारवाड़ के 12 जिले हैं, जिन्हें मरुस्थलीय क्षेत्र माना जाता है, जहां रेत, कम बारिश और सूखे हालात आम हैं. दूसरी तरफ अजमेर से लेकर अलवर तक 15 जिले ऐसे हैं, जिन्हें अरावली की वजह से अपेक्षाकृत हरा-भरा और संतुलित जलवायु वाला माना जाता है. इन दोनों क्षेत्रों के बीच अरावली एक प्राकृतिक दीवार की तरह खड़ी रहती है, जो रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकती है. लेकिन जब इसी दीवार को काटा जाता है, तो असर साफ दिखाई देने लगता है.
पुष्कर बाईपास और पहाड़ी कटाई का असर
करीब पांच साल पहले जयपुर-अहमदाबाद हाईवे से पुष्कर बाईपास होते हुए नागौर को जोड़ने के लिए एक नया बाईपास बनाया गया था. इस सड़क निर्माण के लिए अजमेर और नागौर जिले की सीमा पर पुष्कर के पास अरावली की पहाड़ियों को काटा गया. उस वक्त इसे विकास की आवश्यकता बताकर सही ठहराया गया, लेकिन अब इसके नतीजे सामने हैं. नागौर की ओर के रेत के टीले अरावली की कटी हुई पहाड़ियों को पार कर अजमेर की ओर बढ़ चुके हैं. जिस पहाड़ी को काटा गया, उसकी ऊंचाई 50 मीटर से भी कम थी, लेकिन यही कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां रेगिस्तान के खिलाफ मजबूत सुरक्षा कवच का काम कर रही थीं. हाईवे के एक तरफ कटी हुई अरावली और दूसरी तरफ रेत के ऊंचे टीले इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पहाड़ियों की कटाई पर्यावरण को किस कदर नुकसान पहुंचा रही है. यह साफ संकेत है कि विकास की योजनाएं अगर पर्यावरणीय संतुलन को नजरअंदाज कर बनाई जाएंगी, तो उनका खामियाजा लंबे समय तक भुगतना पड़ेगा.
विशेषज्ञों ने दे दी ये चेतावनीअजमेर की महाराजा दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सुभाष चंद्र और वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर राजीव कुमार का कहना है कि अरावली के लगातार हो रहे कटाव से रेगिस्तान का विस्तार तेज हो रहा है. इसका असर सिर्फ जमीन तक सीमित नहीं है, बल्कि जल स्रोत, जंगल और पूरे इको-सिस्टम पर पड़ रहा है. अरावली के इस ओर मौजूद जैव विविधता भी खतरे में है. जैसे-जैसे रेगिस्तान आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे यहां की वनस्पति और जीव-जंतुओं पर दबाव बढ़ेगा.
अन्य इलाकों में भी दोहराई जा रही कहानी
पुष्कर की पहाड़ी सिर्फ एक उदाहरण है. अलवर के रामगढ़ और सिरोही जैसे इलाकों में भी अरावली की कई पहाड़ियों को लेकर सवाल उठते रहे हैं. आरोप हैं कि 100 मीटर से अधिक ऊंची पहाड़ियों को कागजों में 80 मीटर दिखाकर खनन की मंजूरी दी गई या फिर अवैध खनन के जरिए पहाड़ियों को काट दिया गया. नतीजा यह है कि अरावली का प्राकृतिक ढांचा कमजोर हो रहा है और रेगिस्तान का रेत का समंदर धीरे-धीरे दिल्ली की ओर बढ़ता जा रहा है. विशेषज्ञ साफ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर अरावली की कटाई और खनन पर सख्ती नहीं की गई, तो यह सिर्फ राजस्थान की नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत की पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. यह मुद्दा अब स्थानीय नहीं, बल्कि क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर की चिंता का विषय बन चुका है.



