Rajasthan

Traditional Non-Addictive Tobacco Making in Rajasthan Villages

Last Updated:November 05, 2025, 09:17 IST

Non-Addictive Tobacco: दौसा के ग्रामीण आज भी प्राकृतिक और गैर-नशीली तंबाकू तैयार करने की पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं. यह तंबाकू जैविक खाद और पारंपरिक विधियों से मिट्टी में दबाकर सुखाने की खास प्रक्रिया से बनाई जाती है, जो नशा नहीं बल्कि सुगंध और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है, और सामूहिक श्रम का प्रतीक है.

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दौसा. राजस्थान के कई गांवों में आज भी परंपरागत खेती और ग्रामीण संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. आधुनिक तकनीक और मशीनों के इस दौर में भी ग्रामीण समाज अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवंत रखे हुए है. ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है. गांवों में बनाई जाने वाली प्राकृतिक और गैर-नशीली तंबाकू की, जो घरेलू उपयोग और पारंपरिक रीति-रिवाजों में काम आती है.

गांवों के किसान वर्षों से इस तंबाकू की खेती करते आ रहे हैं. खेत की जुताई के बाद इसमें रासायनिक खाद के बजाय केवल पशुओं के गोबर से बनी जैविक खाद का उपयोग किया जाता है. इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और फसल पर कोई रासायनिक प्रभाव नहीं पड़ता. पौधों को करीब 5-6 महीने तक सहेजकर तैयार किया जाता है, जिसमें नियमित सिंचाई और निराई-गुड़ाई आवश्यक होती है. यह विधि पूरी तरह से पर्यावरण-अनुकूल है.

मिट्टी में दबाकर होती है सुखाने की खास प्रक्रियाजब फसल पक जाती है तो पत्तियों की कटाई की जाती है और फिर उन्हें विशेष तरीके से मिट्टी में दबाकर सुखाया जाता है. इस प्रक्रिया से पत्तियां मुलायम होकर प्राकृतिक खुशबू छोड़ने लगती हैं. यही खुशबू इस ग्रामीण तंबाकू की पहचान है. यह पूरी तरह रासायनिक रहित और केवल सुगंध और स्वाद के लिए तैयार की जाती है, न कि किसी नशे के लिए.

सामूहिक श्रम और लोकगीतों से गूंजते हैं गांवतंबाकू की रस्सियां बनाने का काम गांव में सामूहिक रूप से किया जाता है. महिलाएं और पुरुष मिलकर रस्सी बुनते हैं, इस दौरान लोकगीत गाते हुए उत्सव जैसा माहौल बन जाता है. यह सामूहिक श्रम न केवल जीविका का माध्यम है, बल्कि लोकसंस्कृति और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है. यह ग्रामीण सौहार्द की मिसाल पेश करता है.

किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी का साधनइस तंबाकू की बाजार में अच्छी मांग रहती है. किसान इसे ₹200 प्रति किलो तक बेच देते हैं. साथ ही, जो लोग इस काम में श्रम देते हैं, उन्हें तैयार तंबाकू का हिस्सा मजदूरी के रूप में मिलता है. यह फसल किसानों को अतिरिक्त आमदनी प्रदान कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करती है.

प्रकृति संग तालमेल की मिसालइस पारंपरिक तंबाकू की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें न कोई रासायनिक खाद, न कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है. इस परंपरा ने दिखा दिया है कि आधुनिकता के बीच भी प्रकृति के साथ संतुलित खेती और सदियों पुरानी विरासत को सहेजना संभव है.

Location :

Dausa,Dausa,Rajasthan

First Published :

November 05, 2025, 09:17 IST

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बिना नशे की तंबाकू… ग्रामीण परंपरा जो आज भी ज़िंदा है, जानें कैसे बनता हैं

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