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Tribal Culture: आदिवासी समाज की 400 साल पुरानी अनोखी परंपरा, होली के बाद गांवों में गैर नृत्य का आयोजन, तलवार के संग करते हैं प्रदर्शन

Last Updated:March 17, 2025, 18:10 IST

Tribal Culture: जिले के उपलागढ़ गांव में आदिवासी गेर नृत्य को देखने उपलागढ़ गांव में सैकडों की संख्या में आसपास के गांवों से लोग पहुंचे. धूलंडी के दूसरे दिन आयोजित होने वाले उपलागढ़ गैर मेले में प्रस्तुति देने व…और पढ़ेंX
गैर
गैर नृत्य करते गरासिया जनजाति के लोग

हाइलाइट्स

उपलागढ़ गांव में हुआ गैर नृत्य का आयोजनससुराल से पीहर आती हैं गांव की विवाहिताएंढोल की धुन पर तलवार के साथ करते हैं नृत्य

सिरोही. होली के बाद सिरोही जिले के गांवों में गैर नृत्य का आयोजन एक पुरानी परंपरा है, जो कई पीढ़ियों से चली आ रही है. यह सिर्फ नृत्य नहीं, बल्कि एक उत्सव जैसा होता है, जिसमें पूरे गांव के साथ-साथ आसपास के गांवों के लोग भी शामिल होते हैं. इसका इतिहास लगभग 400 साल पुराना माना जाता है.

गरासिया जनजाति बहुल इलाकों में गैर नृत्य का आयोजनकुछ खास होता है। जिले के उपलागढ़ गांव में आदिवासी गैर नृत्य को देखने के लिए सैकड़ों लोग आसपास के गांवों से पहुंचे. धूलंडी के दूसरे दिन आयोजित होने वाले उपलागढ़ गैर मेले में उपलागढ़ गांव के ही कलाकार अलग-अलग फलियों से पूरी तैयारी के साथ अपनी वेशभूषा में ढोल के साथ गैर मेला स्थल पहुंचे. वहां भाखर बाबा की प्रतिमाओं के सामने आशीर्वाद लेकर, ढोल वादन की ध्वनि के साथ अपनी प्रस्तुतियों के लिए विद्यालय के सामने की जगह पर आगे बढ़े. वहां बारी-बारी से अपने-अपने दल की प्रस्तुतियां देते रहे.

ससुराल से पीहर आती हैं गांव की नवविवाहिताएं उपलागढ़ का गैर नृत्य आदिवासी गरासिया समुदाय का प्रसिद्ध गैर है. यह वर्षों से धूलंडी के दूसरे दिन आयोजित होता है. इस वार्षिक आयोजन पर गांव की विवाहिताएं ससुराल से पीहर आती हैं. अपने परिवार के साथ गैर स्थल पर पहुंचकर बाबा की प्रतिमाओं के सामने प्रसाद आदि भेंटकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं और फिर हेरतअंगेज कार्यक्रमों का आनंद लेती हैं.

ढोल वादन की धुन पर दिखा आदिवासी लोककलाओं का नजारा गैर मेले के सभी कार्यक्रम ढोल की धुन पर ही प्रस्तुत किए जाते हैं, लेकिन कार्यक्रमों की लय और ताल के अनुसार ढोल बजाने की शैली ढोल वादक द्वारा बदली जाती है. जैसे ढोल वादक द्वारा बाबा ढोल की भाषा में ढोल बजाने पर केवल बाबा ही नृत्य करते हैं. उसके बाद वादक द्वारा रायण ढोल की भाषा बजाने पर वे आदिवासी लोक कलाकार जिनके हाथों में तलवार होती है और महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा पहने होती हैं. फिर ज्वारा नृत्य में पुरुष आगे ढोल बजाकर नृत्य करते हुए बढ़ते हैं, तो युवतियां पीछे-पीछे ज्वारा लेकर नृत्य के साथ परिधि में आगे बढ़ती हैं.


Location :

Sirohi,Sirohi,Rajasthan

First Published :

March 17, 2025, 18:10 IST

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होली के बाद गांवों में गैर नृत्य का आयोजन, आदिवासी समाज की अनोखी है परम्परा

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