जालोर में महिलाओं के स्मार्टफोन बैन पर यू-टर्न, आंजना चौधरी समाज ने प्रस्ताव वापस लिया, जानें क्या दिया तर्क

जालोर. राजस्थान के जालोर जिले में सुंधा माता पट्टी के आंजना चौधरी समाज द्वारा महिलाओं और बच्चियों के लिए कैमरे वाले स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव विवादों में घिरने के बाद वापस ले लिया गया है. समाज के अध्यक्ष सुजानाराम चौधरी और वरिष्ठ सदस्यों ने इस फैसले को निरस्त करने का निर्णय लिया. समाज के अग्रणी नथाराम चौधरी ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि प्रस्ताव को पूरी तरह वापस ले लिया गया है.
यह मामला तब सुर्खियों में आया जब 21 दिसंबर को गजीपुर गांव में आयोजित समाज की बड़ी बैठक में 15 से 24 गांवों की बहू-बेटियों और युवतियों के लिए स्मार्टफोन उपयोग पर रोक लगाने का फैसला लिया गया था. बैठक की अध्यक्षता सुजानाराम चौधरी ने की थी, जिसमें 14 पट्टियों के प्रतिनिधि और पंच शामिल हुए. प्रस्ताव के अनुसार, 26 जनवरी 2026 से महिलाएं केवल की-पैड वाले बेसिक फोन का ही उपयोग कर सकती थी. सार्वजनिक आयोजनों, शादियों या पड़ोसी के घर जाते समय भी स्मार्टफोन ले जाने पर पाबंदी थी. पढ़ाई करने वाली छात्राओं को घर में सीमित उपयोग की छूट दी गई थी.
देवाराम कारनोल पक्ष की ओर से रखा गया था प्रस्ताव
समाज के बुजुर्गों का तर्क था कि महिलाओं के पास स्मार्टफोन होने से घर के छोटे बच्चे मोबाइल की लत का शिकार हो रहे हैं. लगातार स्क्रीन देखने से बच्चों की आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है और वे गेमिंग ऐप्स तथा सोशल मीडिया में डूब जाते हैं. इसके अलावा, साइबर क्राइम का खतरा और अनुशासनहीनता जैसे मुद्दे भी उठाए गए. प्रस्ताव देवाराम कारनोल पक्ष की ओर से रखा गया था, जिसे पंच हिम्मताराम ने बैठक में पढ़कर सुनाया और सर्वसम्मति से पास किया गया. प्रभावित गांवों में गजीपुरा, पावली, राजपुरा, खानपुर, रोपसी आदि शामिल थे.
शिकायतों के बाद समाज के लोगों ने किया पुनर्विचार
हालांकि, फैसले की घोषणा के बाद सोशल मीडिया और मीडिया में भारी विवाद खड़ा हो गया. कई लोगों ने इसे महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला करार दिया. महिलाओं ने सवाल उठाया कि दूर रहने वाले परिवारजनों से वीडियो कॉल कैसे करेंगी? सुरक्षा ऐप्स और आपात स्थिति में स्मार्टफोन की जरूरत पर भी बहस हुई. कुछ महिलाओं ने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी, जबकि युवतियां इसे पिछड़ा कदम बता रही थी. विवाद बढ़ने और मामले को गलत तरीके से पेश किए जाने की शिकायतों के बाद समाज के प्रबुद्ध लोगों ने बैठक कर प्रस्ताव पर पुनर्विचार किया.
परिवार की भलाई के लिए लिया गया था निर्णय
नथाराम चौधरी ने स्पष्ट किया कि मूल उद्देश्य केवल बच्चों को मोबाइल की लत, सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों और साइबर अपराधों से बचाना था. यह महिलाओं के खिलाफ नहीं, बल्कि परिवार की भलाई के लिए था, लेकिन मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म्स पर इसे सनसनीखेज बनाकर पेश किया गया, जिससे समाज की छवि प्रभावित हुई. अंततः, समाज के वरिष्ठों और अध्यक्ष सुजानाराम चौधरी ने सभी पक्षों की राय लेकर प्रस्ताव को पूरी तरह निरस्त कर दिया. समाज के लोगों का कहना है कि अब कोई बैन नहीं रहेगा और सदस्य स्वविवेक से निर्णय लें. यह कदम समाज में एकता बनाए रखने और अनावश्यक विवाद से बचने के लिए उठाया गया.



