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Umar Khalid Sharjeel Imam Bail Hearing Supreme Court Kapil Sibal Salman Khurshid Top Arguments | ‘कुछ लोग एक दिन की भी रिहाई के लायक नहीं’, उमर-शरजील की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट में बोली सरकार, पढ़ें सिब्बल-खुर्शीद जैसे वकीलों की टॉप दलीलें

Agency:एजेंसियां

Last Updated:November 03, 2025, 17:23 IST

दिल्ली दंगा साजिश केस में सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को जोरदार बहस हुई. केंद्र ने कहा कि कुछ आरोपी एक दिन की भी रिहाई के लायक नहीं, जबकि बचाव पक्ष ने राजनीतिक साजिश का आरोप लगाया. कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद और सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत नहीं हैं. अदालत ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद केस की अगली सुनवाई 6 नवंबर तक स्थगित कर दी.

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‘कुछ लोग एक दिन की भी रिहाई के लायक नहीं’, उमर-शरजील की याचिका पर SC में सरकारSC Hearing Bail Pleas Of Umar Khalid, Sharjeel Imam : उमर, शरजील और अन्य की जमानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को 2020 के उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश केस में उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, शिफा-उर-रहमान, मीरान हैदर और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कड़ा रुख अपनाया और कहा कि ‘कुछ लोग ऐसे हैं जो एक दिन की भी रिहाई के लायक नहीं हैं.’ वहीं बचाव पक्ष की ओर से कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, सिद्धार्थ अग्रवाल और अन्य वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि केस राजनीतिक बदले की भावना से चलाया जा रहा है और आरोपियों को बेवजह जेल में रखा गया है. हर वकील ने अपने-अपने मुवक्किल के पक्ष में अलग-अलग दलीलें दीं – जिनका सार ये था कि न तो किसी ने हिंसा की अपील की, न किसी बैठक में साजिश रची, न कोई ठोस सबूत है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनीं और अब 6 नवंबर को दोपहर 2 बजे अगली सुनवाई होगी.

सरकार का तर्क – ‘कुछ लोग एक दिन की भी आज़ादी के हकदार नहीं’

सरकार की ओर से एएसजी एसवी राजू ने कहा कि ये केस पूरी तरह तथ्यों पर आधारित है. कुछ ऐसे आरोपी हैं जिनके खिलाफ सबूत इतने गंभीर हैं कि उन्हें एक दिन के लिए भी रिहा नहीं किया जाना चाहिए.
राजू ने कहा कि बचाव पक्ष जानबूझकर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है ताकि अदालत में सहानुभूति मिल सके. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ ‘शांति प्रदर्शन’ नहीं था, बल्कि एक सोची-समझी साजिश थी जिसमें हिंसा को व्यवस्थित रूप से फैलाया गया.

कपिल सिब्बल का पलटवार – ‘मैं 751 एफआईआर में से किसी में शामिल नहीं’

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने उमर खालिद की ओर से दलील दी कि उनके खिलाफ कोई सीधा सबूत नहीं है. उन्होंने कहा, ‘751 एफआईआर दर्ज की गई थीं. मैं सिर्फ एक केस में आरोपी था और दिसंबर 2022 में डिस्चार्ज हो चुका हूं. मैं न किसी हिंसक घटना में शामिल था, न किसी अन्य 750 एफआईआर से मेरा कोई संबंध है.’
सिब्बल ने आगे कहा कि अब तक 116 केसों का ट्रायल पूरा हुआ है, जिनमें से 97 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि 17 केसों में तो दस्तावेज ही फर्जी साबित हुए.
जस्टिस कुमार ने बीच में पूछा कि ‘इससे आपका क्या लेना-देना?’ जिस पर सिब्बल ने जवाब दिया, ‘मैं सिर्फ तथ्य बता रहा हूं.’ इस पर एएसजी राजू ने तंज कसते हुए कहा, ‘ये सब अदालत को प्रभावित करने की कोशिश है.’

सलमान खुर्शीद का तर्क, ‘शांतिपूर्ण विरोध को अपराध बना दिया गया’

वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने शिफा-उर-रहमान की ओर से जोरदार दलीलें दीं. उन्होंने कहा, ‘वियतनाम वॉर के वक्त जैसा शिकागो-7 ट्रायल हुआ था, वैसा ही माहौल यहां बनाया गया है. अगर कोई कानून से असहमत है और शांतिपूर्वक विरोध करता है, तो उसे अपराधी नहीं कहा जा सकता.’
खुर्शीद ने कहा कि शिफा-उर-रहमान जामिया एलुमनी एसोसिएशन के हेड हैं, लेकिन उनके खिलाफ किसी गवाह ने हिंसा में शामिल होने की बात नहीं कही. दिसंबर 2019 में जामिया में पुलिस घुसी थी, लेकिन वहां भी उनका कोई रोल नहीं था.
उन्होंने कहा, ‘मेरा मुवक्किल चेरी-पिकिंग का शिकार हुआ है. उसे चुनकर आरोपी बनाया गया. UAPA की किसी भी धारा के तहत उसके खिलाफ मामला नहीं बनता. न उसने ट्रायल में देरी की, न कोई गैरकानूनी मीटिंग अटेंड की.’
खुर्शीद ने आगे कहा, ‘वह सिर्फ जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी का मेंबर था. उसे व्हाट्सएप ग्रुप में बोलने या मीटिंग की अध्यक्षता करने की भी अनुमति नहीं थी. गिरफ्तारी के वक्त सिर्फ दो बयान थे, और वे भी पहले से रिकॉर्डेड थे.’
उन्होंने दलील दी कि जब हाई कोर्ट ने तीन अन्य लोगों को बेल दी थी, तो समानता के आधार पर रहमान को भी जमानत मिलनी चाहिए.खुर्शीद ने कहा, ‘गांधीजी ने कहा था कि अगर कोई कानून अन्यायपूर्ण है, तो उसे चुनौती देना नैतिक कर्तव्य है.’ जिस पर जस्टिस कुमार ने कहा, ‘ये भारत है, शिकागो नहीं.’

सिद्धार्थ अग्रवाल का तर्क, ‘पांच साल से जेल में हूं, फिर भी जांच अधूरी’

वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने मीरान हैदर की ओर से दलील दी कि उन्हें तीसरी कैटेगरी के आरोपियों में रखा गया था, जबकि उनका रोल बेहद सीमित था.अग्रवाल ने कहा, ‘प्रॉसिक्यूशन का दावा है कि कुल खर्च 1.6 करोड़ हुआ, लेकिन मेरे खिलाफ आरोप है कि मेरे अकाउंट में सिर्फ 80 हजार आए और नकद में साढ़े चार लाख मिले, जिनमें से दो लाख खर्च हुए. यानी 1.6 करोड़ में मेरा योगदान सिर्फ दो लाख का बताया जा रहा है.’
उन्होंने कहा कि तीन अन्य आरोपियों – आसिफ इकबाल तन्हा और दो अन्य – को दिल्ली हाई कोर्ट ने बेल दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी उस बेल को बरकरार रखा था. ‘मेरा केस उनसे हल्का है, फिर भी मैं पांच साल सात महीने से जेल में हूं.’
अग्रवाल ने कहा, ‘मुझे इंटरिम बेल दो बार मिली, दोनों बार समय पर सरेंडर किया. कोई गवाह धमकाया नहीं, कोई सबूत छेड़ा नहीं. फिर भी जांच आज तक अधूरी बताई जा रही है.’ उन्होंने कहा कि यह केस साजिश बताकर लंबा खींचा जा रहा है जबकि चार्जशीट में उनका नाम तक नहीं है.

मोहम्मद सलीम खान का पक्ष, ‘मैं तो सिर्फ चांदबाग में रहता हूं’

मोहम्मद सलीम खान के वकील ने कहा कि उनका मुवक्किल चांदबाग में अपने परिवार के साथ रहता है. वह किसी संगठन का सदस्य नहीं, न किसी व्हाट्सएप ग्रुप में था, न किसी ने उसे हिंसक गतिविधियों में शामिल बताया.
उन्होंने कहा, ‘पुलिस का आरोप है कि उसने वाइपर से कैमरा घुमाया. हाई कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ इस आरोप के आधार पर लंबी हिरासत सही नहीं ठहराई जा सकती.’
वकील ने बताया कि सलीम को छह बार इंटरिम बेल मिली और हर बार उसने वक्त पर सरेंडर किया. उन्होंने कहा कि जो लोग बेल पर बाहर हैं, उनके रोल कहीं ज्यादा गंभीर थे.

अगली सुनवाई 6 नवंबर को

सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला 6 नवंबर को दोपहर 2 बजे फिर सुना जाएगा. अदालत ने संकेत दिए कि केस की जटिलता को देखते हुए सुनवाई लंबी हो सकती है.

Deepak Verma

दीपक वर्मा न्यूज18 हिंदी (डिजिटल) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में काम कर रहे हैं. लखनऊ में जन्मे और पले-बढ़े दीपक की जर्नलिज्म जर्नी की शुरुआत प्रिंट मीडिया से हुई थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म…और पढ़ें

दीपक वर्मा न्यूज18 हिंदी (डिजिटल) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में काम कर रहे हैं. लखनऊ में जन्मे और पले-बढ़े दीपक की जर्नलिज्म जर्नी की शुरुआत प्रिंट मीडिया से हुई थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म… और पढ़ें

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First Published :

November 03, 2025, 17:21 IST

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