Unique Devmali village of Ajmer ban on only these 4 things houses not locked full details nodvm

अजमेर. राजस्थान (Rajasthan) के अजमेर जिले का देवमाली गांव (Devmali Village) कई मायनों में अनूठा है. ऐसी मान्यता है की गांव के पूर्वज के वचनों के कारण गांव में चार चीजों पर प्रतिबंध लगा हुआ है. कच्चा मकान, शराब, मांस और सेवन नहीं करना. इसके साथ ही केरोसिन का उपयोग नहीं करने के वचन पर गांव वाले प्रतिबंध है. देवमाली गांव में लावड़ा गोत्र के गुर्जर समाज (Gurjar Samaj) के लोग रहते हैं. गांव में गुर्जर समाज के आराध्य देव भगवान देवनारायण का मंदिर (Lord Devnarayan Temple) पहाड़ी पर बना हुआ है. साथ ही पूरे गांव में एक ही गोत्र के लोग रहते हैं जिसके कारण वह भगवान देवनारायण की पूजा करते हैं. जहां उनको पुजारी माना जाता है.
गांव में 300 परिवार की बस्ती है. जनसंख्या करीब 2000 है. गांव में बिजली चले जाने पर मिट्टी के तेल यानी केरोसिन का उपयोग नहीं किया जाता है और तिल्ली के तेल से दीपक जलाया जाता है. गांव की तमाम जमीन भगवान देवनारायण के नाम अंकित है.
सुकून से रहना है तो पक्की छत का मकान मत बनाना
सभी ग्रामीण सुबह-सुबह गांव की पूरी पहाड़ी के चारों तरफ नंगे पैर परिक्रमा करते हैं. इस पहाड़ी पर भगवान देवनारायण का मंदिर है. ग्रामीणों की भगवान देवनारायण में यहां के लोगों की गहरी आस्था है. ऐसी मान्यता है कि देवनारायण जब इस गांव में आये तो ग्रामीणों की सेवा भावना से बहुत खुश हुए. उन्होंने ग्रामीणों से वरदान मांगने को कहा तो गांव वालों ने कुछ नहीं मांगा. बताया जाता है कि इस पर देवनारायण जाते-जाते कह गए सुकून से रहना है तो पक्की छत का मकान मत बनाना. गांव वाले इसका आज भी पालन करते हैं. दशकों गुजर गए, लेकिन देवमाली गांव में पक्की छत का एक भी मकान नहीं बना.
गांव के घरों में तमाम सुविधाएं हैं, लेकिन घर कच्चा
गांव की लगभग 25 वर्ष तक सरपंच रही भागी देवी गुर्जर ने कहा कि पूरे गांव में हमारी पौराणिक मान्यता व देवनारायण भगवान की आस्था के होने के कारण हम मिट्टी व पत्थर से कच्चा मकान बनाते हैं और उनमें रहते हैं. इस गांव के संपन्न लोग भी मिट्टी के बने कच्चे घरों में ही रहते हैं. इनका मानना है कि पक्की छत बनाने से गांव में आपदा आ सकती हैं. घर में तमाम सुविधा उपलब्ध है. लेकिन मकान जरूर कच्चे हैं. घर में टीवी, फ्रिज, कूलर और महंगी लग्जरी गाड़ियां उपलब्ध होते हुए भी कच्चे मकान बने हुए हैं.
पक्की छत डालने की कोशिश की नुकसान हुआ
ग्रामीणों के मुताबिक कई लोगों ने पक्की छत डालने की कोशिश की तो उसका कोई न कोई खामियाजा उनको उठाना पड़ा. तभी से अनहोनी की आशंका में चलते ग्रामीण पक्की छत नहीं बनाते. कच्चे, घास फूस और केलू से बने आशियाने ही देवमाली की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. सीमेंट-चूने का इस्तेमाल भी ग्रामीण नहीं करते. ग्रामी, शराब, मांस और अंडे को छूते तक नहीं हैं.
कई दिन-रात तक बिना थके-हारे गाते हैं भजन
गांव के बुजुर्ग बताते हैं इस गांव में आज तक कभी चोरी नहीं हुई. एक बार चोर पहाड़ी पर बने मंदिर में घुस गए. दान पात्र में रखे पैसे भी चुरा लिए, लेकिन आगे नहीं जा सके. बाद में चोरों को ग्रामीणों ने पकड़ लिया. गांव की पहाड़ी के तमाम पत्थर झुके हुए हैं. यहां की पहाड़ी से कोई पत्थर नहीं ले जाता. यहां के बगड़ावत भोपा गुर्जर देवनारायण की आराधना में कई दिन और कई रात बिना थके-हारे भजन गाते हैं.
अनपढ़ होने के बावजूद भोपाओं की याददाश्त बहुत तेज
अनपढ़ होने के बावजूद भोपाओं की याद्दाश्त बहुत तेज है. इनके मुंह से बगड़ावतों की कहानी सुनने हजारों लोग जुटते हैं. पूरा गांव सुबह सुबह पूरी पहाड़ी के चारों तरफ नंगे पैर परिक्रमा करता है. लोग देवनारायण से कुछ नहीं मांगते. बस शांत और समृद्धि की कामना करते हैं. 2000 की आबादी वाले इस गांव में गुर्जर जाति की सिर्फ लावड़ा गोत्र के लोग ही बसते हैं, जो देवनारायण के साथ प्रकृति की इबादत करते हैं.
एक भी इंच जमीन ग्रामीणों के पास नहीं है
बिना पक्की छत के भी यह गांव गुलजार है. गांव का स्कूल और धर्मशाला पक्की बनी हुई है. एक भी इंच जमीन ग्रामीणों के पास नहीं है. गांव की सारी जमीन भगवान देवनारायण के पास है. ये जमीन ग्रामीणों के नाम नहीं हो सकती. पशुपालन के जरिये ही यहां जिंदगी चहकती है. इसे आस्था कहें या अन्धविश्वास. लेकिन गांव वालों की इस श्रद्धा से हर कोई हैरान है. पूरे देश के श्रद्धालु इस गांव में दर्शन करने आते हैं.
यहां भाद्रपद मास में लगता है देवनारायण का मेला
वहीं मंदिर के पुजारी ने बताया कि भगवान में आस्था होने के कारण तमाम मकान कच्चे बने हुए हैं. यहां भाद्रपद मास में मेला लगता है और राजस्थान के कई जिलों से पैदल दर्शनार्थी पहुंचते हैं. लेकिन अभी तक जमीन भगवान के नाम दर्ज है. यहां सरकारी बिल्डिंग के अलावा सभी मकान कच्चे बने हुए हैं. गांव में पानी का टैंक हम नहीं बनाते हैं सिर्फ प्लास्टिक के डिब्बों में ही पानी एकत्रित रखते हैं.
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