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unique wedding bride and groom take fera banyan trees as witnesses

Last Updated:May 16, 2025, 18:45 IST

राजस्थान के करौली में ऐसी अनोखी शादी देखने को मिली, जहां दूल्हा-दुल्हन ने अग्नि के नहीं, बल्कि पेड़ के सात फेरे लिए, जो पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन गया. आइए जानते हैं कि पूरी प्रक्रिया क्या है. X
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मंडप में फेर लेते हुए वर – वधु 

हाइलाइट्स

नीम और बरगद को साक्षी मानकर लिए सात फेरेशादी में पंडित और वैदिक मंत्रोच्चारण नहीं हुआधराड़ी प्रथा के तहत पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा

करौली:- राजस्थान के करौली जिले के करणपुर कस्बे के गांव कैमाखेड़ी में एक अनोखी शादी चर्चा का विषय बन गई है. यह विवाह एक खास परंपरा धराड़ी प्रथा के अंतर्गत संपन्न हुआ, जिसमें वर–वधू ने अग्निकुंड के बजाय नीम और बरगद के पेड़ों को साक्षी मानकर सात फेरे लिए.

यह विवाह जोहर जागृति मंच आदिवासी मिशन के तहत संपन्न हुआ और करौली जिले में धराड़ी प्रथा के अंतर्गत होने वाली यह पहली शादी मानी जा रही है. खास बात यह रही कि यह विवाह पूरी तरह से पारंपरिक दिखावे और आधुनिक तामझाम से दूर, वैज्ञानिक सोच और पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों पर आधारित था.

नीम और बरगद को साक्षी मानकर लिए सात फेरेशादी के दौरान मंडप में नीम और बरगद के पौधे रखे गए थे, जिन्हें साक्षी मानकर दूल्हा–दुल्हन ने फेरे लिए. इस पूरी प्रक्रिया में न तो कोई पंडित शामिल हुआ और न ही कोई वैदिक मंत्रोच्चारण हुआ. यह विवाह पूरी तरह से पाखंड, अंधविश्वास और काल्पनिक मान्यताओं से मुक्त रहा.

इस अनोखी शादी की एक और खास बात यह रही कि किसी भी तरह की फिजूलखर्ची नहीं की गई. जितने भी मेहमान शादी में शामिल हुए, उन्होंने दूल्हा–दुल्हन को उपहार स्वरूप पौधे भेंट किए, जिससे पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी गया.

मीणा महापंचायत के 14 नियमों के अनुसार हुआ विवाहदुल्हन के भाई रामप्रेम मीणा ने लोकल 18 को बताया कि यह विवाह मीणा समाज की ‘धराड़ी प्रथा’ के तहत संपन्न हुआ है, जो प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देती है. इस विवाह में समाज के 14 नियमों का पालन किया गया. परंपरा के अनुसार, कबीले के पंच और पटेल विवाह मंडप में मौजूद रहते हैं और वहीं वर-वधू को फेरे दिलवाते हैं.

क्या है धराड़ी प्रथा?स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, ‘धराड़ी’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है. जिसमें ‘ध’ का मतलब धरती और ‘राड़ी’ का अर्थ है रखवाली करने वाली. यह परंपरा धरती की रक्षा और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से निभाई जाती है. इस विधि में शादी की सभी रस्में बिना पंडित के संपन्न होती हैं और कोई धार्मिक पाखंड या अंधविश्वास इसमें शामिल नहीं होता. वर–वधू अपने कुल वृक्षों को साक्षी मानकर विवाह सूत्र में बंधते हैं.

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मंडप में अग्नि नहीं.. वर-वधु इस चीज को साक्षी मानकर लिए सात फेरे, जानें माजरा

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