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श्याम बिश्नोई.
जालोर. राजस्थान के जालोर जिले के कोमता गांव (Komta village) में जमीन से 35 फीट ऊपर खड़े इस कुएं (Well) को आप जिद्दी या अडिग कह सकते हैं. क्योंकि पूरे गांव का अस्तित्व मिटा देने वाली 1990 (विक्रम संवत् 2047) में 3 दिन और 3 रात तक लगातार मूसलाधार बारिश और फिर भीषण बाढ़ से पूरे गांव का अस्तित्व मिट गया लेकिन 100 साल पुराने कुएं का यह बाढ़ भी कुछ नहीं बिगाड़ सकी. जालोर जिले के सायला क्षेत्र के कोमता में कुएं के आसपास की 35 फीट मिट्टी को बाढ़ भले ही बहा ले गई, लेकिन कुएं की यह पक्की दीवार ज्यों की त्यों अभी भी खड़ी है.
यह कुआं गांव के तत्कालीन जागीरदार के आंगन में था. गांव का वो इकलौता पक्का मकान भी इस बाढ़ में नहीं बच पाया था. इतना ही नहीं साल 2015 और 2017 में भी जालोर जिले में आई भीषण बाढ़ भी इस कुंए का कुछ नहीं बिगाड़ सकी. 72 वर्षीय मोड़सिंह ने बताया कि 1990 से 1993 की आखिरी बाढ़ से पहले तक यहां करीब एक हजार परिवारों की आबादी थी. लेकिन 1990 और उसके बाद 1993 में भीषण बाढ़ से गांव का पूरा अस्तित्व मिट गया.
पूरा गांव 35 फीट गहरी खाई में तब्दील हो गया
पूरे गांव में एक भी मकान नहीं बचा और गांव पूरा 35 फीट गहरी खाई में तब्दील हो गया. भीषण बाढ़ की वजह से गांव के लोग ऊंचे टीलों पर पहुंच गए. लेकिन उनके मकान व सामान पूरी तरीके से पानी के साथ बह गये. बाढ़ के बाद ग्रामीण ऊंचाई वाले क्षेत्र में जाकर रहने लगे. कई परिवार भीनमाल, जीवाणा, बालोतरा और मुंबई आदि क्षेत्रों में बस गए.
करीब 10 फीट का है कुएं का घेरा
करीब 100 साल पुराना यह कुआं जमीन से 35 फीट ऊपर है. वहीं यह 20 से 25 फीट जमीन अंदर है. कुएं के निर्माण में आज से चौगुनी ईंट और सफेद चूने के साथ शीशे का उपयोग गया था. इस कुएं की चौड़ाई (घेरा) 10 फीट है. यह कुआं गांव के तत्कालीन जागीरदार के आंगन में था. बाढ़ में गांव का वह एकमात्र पक्का मकान भी बह गया लेकिन यह कुआं बच गया.
कोमता गांव को फिर से बसाने के लिए 14 किसानों ने 315 बीघा जमीन दी
भीषण बाढ़ में पूरा गांव तबाह हो जाने के बाद गांव को फिर से बसाने के लिए गांव के ही 14 किसानों ने अपनी 315 बीघा जमीन दी. उस जमीन पर कोमता गांव को फिर से बसा दिया गया. सरकार ने वादा किया था कि जिन 14 किसानों ने जमीन दी है उनको विशाला गांव में जमीन दी जाएगी. लेकिन सरकार का यह वादा ही वादा ही रह गया. 30 साल गुजर गए लेकिन आज भी किसानों को जमीन नहीं मिली. 14 किसानों की 315 बीघा जमीन पर आज फिर से 1800 परिवार रहते हैं और यह गांव फिर से बस गया.
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