UP Assembly Election 2022 Akhilesh yadav make BJP path difficult in Hardoi sadar Vidhan Sabha Seat

हरदोई. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Aseembly Election 2022) में हरदोई की सदर सीट (Hardoi Sadar Seat) पर मुकाबला बेहद रोचक होता दिख रहा है. इस सीट से समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने पूर्व विधायक अनिल वर्मा को उतारकर बीजेपी (BJP) प्रत्याशी नितिन अग्रवाल की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. इस विधानसभा सीट में पासी बिरादरी के मतदाता सबसे अधिक हैं. अनिल वर्मा इसी बिरादरी से आते हैं. वहीं, मुस्लिम वोट को भी सपा अपना मान रही है. ऐसे में कुछ अन्य जातियों का भी सपा को समर्थन मिला तो निश्चित तौर पर नरेश के गढ़ में सेंध लग सकती है. कांग्रेस ने आशीष सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया वो भी जितना वोट काटेंगे, नितिन का ही नुकसान करेंगे, तो वहीं सदर विधानसभा से एक मुस्लिम प्रत्याशी भी सामने आ खड़ा हुआ है. आजाद समाज पार्टी (आसपा) से अख्तर अली गाजी सदर विधानसभा की सीट पर अपना जोर आजमाएंगे.
सपा से पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं अनिल
सपा प्रत्याशी के रूप में पहली बार सदर विधानसभा सीट पर अपनी किस्मत आजमा रहे अनिल वर्मा सीएसएन डिग्री कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं. उनके चाचा छोटेलाल 1996 में भाजपा के टिकट पर बावन-हरियावां सीट से विधायक चुने गए थे. 1999 में उनका निधन हो गया, जिसके बाद उपचुनाव हुआ था. तब भाजपा के टिकट पर अनिल वर्मा पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे. वर्ष 2002 के आम चुनाव में अनिल भाजपा के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए. 2012 में वे सपा में चले गए और पार्टी ने उन्हें बालामऊ से प्रत्याशी बनाया जहां उन्होंने जीत हासिल की. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट न मिलने पर वो चुनाव नहीं लड़े.
पासी मतदाताओं की संख्या ज्यादा
सदर सीट के जातिगत समीकरण की बात करें तो इस सीट पर पासी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है और सपा के प्रत्याशी पासी बिरादरी से ही आते हैं. कुल मतदाताओं में करीब 16 फीसदी मतदाता पासी बिरादरी के हैं. इसके अलावा 15 फीसदी मुस्लिम, 4.5 फीसदी यादव और 10.32 फीसदी रैदास मतदाता इस क्षेत्र में निर्णायक की भूमिका में रहते हैं. यहां ब्राह्मण 10.94 फीसदी क्षत्रिय 14.92 फीसदी और 4.87 फीसदी वैश्य मतदाता हैं.
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चार दशक से नरेश का परिवार है काबिज
नरेश अग्रवाल ने सदैव सत्ता पक्ष में रहना पसंद किया है. वे उथल पुथल करने के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. वर्ष 1980,1989, 1991, 1993, 1996, 2002 और 2007 में वे इस सीट से विधायक चुने गए. 2008 में उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और उपचुनाव में अपने बेटे को बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़वाया जिसमें नितिन अग्रवाल ने जीत हासिल कर अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की. इसके बाद नितिन 2012 व 2017 के चुनाव में भी विधायक निर्वाचित हुए. कुल मिलाकर देखा जाए तो आंकड़ों में सपा प्रत्याशी का पलड़ा भारी जरूर दिखता है लेकिन नरेश की व्यूह रचना को छिन्न भिन्न करने के लिए विरोधी पिछले चार दशकों से कोशिश कर रहे हैं लेकिन हर बार नरेश ही विजयी होकर उभरते हैं इस बार ऊंट किस करवट बैठेगा इसका फैसला जनता 23 फरवरी को करेगी.
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सभी राजनीतिक पार्टियों के द्वारा जातीय समीकरण को देखते हुए वोट बटोरने का प्रयास किया जाता है. सपा ने पासी बिरादरी के वोटबैंक को हथियाने के लिए अनिल वर्मा को मैदान में उतारा, कांग्रेस ने क्षत्रिय चेहरे को वरीयता दी.
मुस्लिम प्रत्याशी के कूदने से बढ़ा रोमांच
सदर के गदर में मुस्लिम प्रत्याशी के कूद पड़ने से अब सदर की सीट पर चुनाव और भी रोमांचकारी हो गया है. आसपा से अख्तर अली गाजी के आ जाने से मुस्लिम वोट कट जाने का भी खतरा तय है. अख्तर अली गाजी इससे पहले हरदोई की हरदोई देहात ग्राम पंचायत से प्रधान भी रहे हैं और दोबारा भी प्रधानी में हाथ आजमाया मगर वहां पर उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी. फिलहाल अब वह आसपा से विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने के लिए चुनावी मैदान में उतर पड़े हैं. अब देखना यह होगा कि सदर में मुस्लिम वोट को सबसे ज्यादा कौन रिझाता है.
कांग्रेस ने भी उलझाया गणित
कांग्रेस ने भी अपने कार्यवाहक जिलाध्यक्ष आशीष सिंह को सदर विधानसभा से प्रत्याशी घोषित कर दिया है अब विधायक रहे नितिन अग्रवाल की मुश्किलें और भी बढ़ चुकी हैं. आखिर वह किन किन जातियों के वोट समेटेंगे जिससे कि उनकी कुर्शी बची रहे, कांग्रेस के क्षत्रिय प्रत्याशी उतार देने से कहीं ना कहीं क्षत्रिय वोटों के कटने का डर भी नितिन के लिए खड़ा हो गया है. फिलहाल हरदोई से कांग्रेस अकेले हाथ थामे अशीष को प्रत्यासी बनाकर कहीं ना कहीं कांग्रेस सदर से हाथ का साथ देने की उम्मीद जनता से लगा बैठी है.
वहीं अगर बसपा की बात करें तो बसपा ने अभी तक कोई भी प्रत्याशी सदर विधानसभा के मैदान में नहीं उतारा है.
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