Vijayadashami 2024: दशहरे पर हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल, तीन पीढ़ियों से बना रहे हैं रावण का पुतला
रवि पायक / भीलवाड़ा: दशहरा पर्व के अवसर पर भीलवाड़ा में हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की एक अनोखी मिसाल देखने को मिल रही है. यहां दो परिवारों की दोस्ती तीन पीढ़ियों से चली आ रही है और ये परिवार दशहरे के अवसर पर मिलकर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले तैयार कर रहे हैं. इस साल भी भीलवाड़ा के तेजाजी चौक में 51 फीट ऊंचे रावण के पुतले का दहन किया जाएगा, जिसे हिंदू और मुस्लिम परिवारों ने मिलकर तैयार किया है.
सांप्रदायिक सौहार्द का अद्भुत उदाहरणभीलवाड़ा के समद सोलगर और राजेश गाछा के परिवार पिछले तीन पीढ़ियों से एक साथ मिलकर रावण के पुतले का निर्माण कर रहे हैं. समद सोलगर ने बताया कि उनके पिता सुलेमान सोलगर और राजेश के पिता ग्यारसी लाल गाछा पक्के दोस्त थे और दशहरे के दौरान मिलकर रावण के पुतले बनाते थे. अब यह काम उनकी अगली पीढ़ी संभाल रही है. इस साल 51 फीट का रावण और 35 फीट ऊंचे कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले बनाए जा रहे हैं. इस बार रावण की नाभि में घूमता चक्र और हाथों में तलवार के साथ विशेष प्रभाव दिखाया जाएगा, जिससे उसकी आंखों और नाभि से अंगारे भी निकलेंगे.
तीन पीढ़ियों से चल रही परंपरासमद सोलगर ने बताया, हमारे पिताजी सुलेमान और ग्यारसी लाल दशकों से रावण के पुतले बनाते आए हैं. अब हम और राजेश मिलकर यह काम कर रहे हैं और हमारे बच्चे भी इस काम में हाथ बंटा रहे हैं. इस काम से हमें सांप्रदायिक सौहार्द और गंगा-जमुनी तहजीब को प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है. राजेश ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कहा, हमारे पिता के देहांत के बाद हम दोनों भाई मिलकर रावण बनाते हैं. यह हमारी पुरानी दोस्ती और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है.
नगर निगम के कार्यक्रमइस बार नगर निगम द्वारा भीलवाड़ा में तीन स्थानों पर रावण दहन किया जाएगा, जिसमें मुख्य कार्यक्रम तेजाजी चौक, दशहरा मैदान, लेबर कॉलोनी और टंकी के बालाजी में आयोजित किया जाएगा. रावण के पुतले के निर्माण में बांस, बल्ली, सुतली, रंगीन कागज, पुराने अखबार और गोंद का उपयोग किया जाता है. इन सामग्रियों से पुतले का ढांचा तैयार किया जाता है, जिसे अंत में पेंट कर सजाया जाता है और आतिशबाजी व पटाखों का इस्तेमाल किया जाता है.
दोस्ती को बनाए रखने की परंपरारावण के पुतले बनाने से इन परिवारों को आर्थिक लाभ तो बहुत कम होता है, लेकिन पीढ़ियों से चली आ रही दोस्ती को जिंदा रखने के लिए वे इसे जारी रखते हैं. समद और राजेश उम्मीद करते हैं कि उनकी आने वाली पीढ़ी भी इस परंपरा को इसी तरह आगे बढ़ाएगी और सांप्रदायिक सौहार्द की यह मिसाल कायम रहेगी.
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FIRST PUBLISHED : October 10, 2024, 17:11 IST