नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग पर हिंसक प्रदर्शन, समर्थक सक्रिय

Gyanendra Shah: पड़ोसी देश नेपाल में राजशाही की वापसी को लेकर प्रदर्शन हिंसक दौर में प्रवेश कर गया है. शुक्रवार को राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच झड़प में एक टीवी कैमरामैन समेत दो लोगों की मौत हो गई. बाद में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना को बुलाना पड़ा और कर्फ्यू लगाना पड़ा था, जो शनिवार सुबह हटा लिया गया.
राजशाही समर्थक तब से राजशाही की बहाली की मांग कर रहे हैं, जब से पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह ने लोकतंत्र दिवस (19 फरवरी) पर प्रसारित अपने वीडियो संदेश में समर्थन की अपील की थी. राजशाही समर्थक कार्यकर्ताओं ने नौ मार्च को भी 77 वर्षीय ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में उस समय एक रैली की थी जब वह देश के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक स्थलों का दौरा करने के बाद पोखरा से त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे थे. ज्ञानेंद्र शाह जब काठमांडू लौटे उनका स्वागत करने उमड़ी भीड़ ने तख्तियां ले रखी थीं जिन पर लिखा था, ‘हमें अपना राजा वापस चाहिए’, ‘संघीय गणतांत्रिक प्रणाली को समाप्त करो और राजशाही को पुनः स्थापित करो’ और ‘राजा और देश हमारे जीवन से भी प्यारे हैं.’
पुराना है राजशाही का इतिहासनेपाल में राजशाही का इतिहास काफी पुराना है. यहां पर एक ही राजपरिवार शाह वंश के सदस्यों का शासन रहा, जो कि खुद को प्राचीन भारत के राजपूतों का वंशज मानते थे. इन्होंने 1768 से साल 2008 तक 240 साल देश पर शासन किया. 2008 में राजशाही को खत्म कर दिया गया और 28 मई को नेपाल के राजनीतिक दलों ने संसद की घोषणा के माध्यम से तत्कालीन हिंदू राष्ट्र को एक धर्मनिरपेक्ष, संघीय, लोकतांत्रिक गणराज्य में बदल दिया था.

2008 में नेपाल की संसद ने राजशाही को समाप्त करने के लिए मतदान किया और ज्ञानेंद्र शाह ने पद छोड़ दिया था.
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ज्ञानेंद्र शाह कब बने राजाज्ञानेंद्र शाह को 2002 में नेपाल की राज गद्दी पर बैठाया गया था. ऐसा तब हुआ जब उनके बड़े भाई बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह और उनके समस्त परिवार की शाही महल में हत्या कर दी गई. ज्ञानेंद्र शाह ने 2005 तक बिना किसी कार्यकारी या राजनीतिक शक्तियों के संवैधानिक राज्य प्रमुख के रूप में शासन किया. उसके बाद उन्होंने सरकार और संसद को भंग कर पूर्ण सत्ता पर कब्जा कर लिया. उन्होंने राजनेताओं और पत्रकारों को जेल में डाल दिया, संचार व्यवस्था काट दी, आपातकाल की घोषणा कर दी और शासन करने के लिए सेना का इस्तेमाल किया.
2008 में छोड़ना पड़ा पदहालांकि, 2006 में राजशाही के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बाद ज्ञानेंद्र को पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. ज्ञानेंद्र शाह ने इसके बाद बहुदलीय सरकार को सत्ता सौंप दी – जिसने माओवादियों के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस प्रकार नेपाल में एक दशक से चल रहा गृह युद्ध समाप्त हो गया, जिसके कारण हजारों लोगों की मौत हुई थी. 2008 में संसद ने राजशाही को समाप्त करने के लिए मतदान किया. ज्ञानेंद्र शाह ने तुरंत अपना पद छोड़ दिया.
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आम आदमी की तरह रहने लगेइसके तुरंत बाद पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को राजमहल खाली करने को कहा गया. राजमहल खाली करने के बाद कुछ समय के लिए वह नागार्जुन पैलेस में रहे. इस पैलेस में पहले राजपरिवार गर्मी की छुट्टियां बिताने आया करता था. अब यहीं पर वे स्थायी तौर पर रहने लगे और उन्होंने एक आम आदमी की तरह जीवन शुरू कर दिया. एक ऐसा आम नागरिक जिनके पास कोई शक्ति या राज्य संरक्षण नहीं रह गया. इस बीच, नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बन गया. इसके साथ ही ज्ञानेंद्र शाह कहीं भी दिखाई देने बंद हो गए.

राजशाही समर्थक कार्यकर्ताओं ने नौ मार्च को उस समय एक रैली की थी जब ज्ञानेंद्र शाह त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे थे.
राजशाही के पक्ष में बनने लगी हवानेपाल में जब राजसाही खत्म कर लोकतंत्र लागू किया गया तो लोग खुश थे. लेकिन बीते 17 सालों में कोई विकास नहीं देखने पर नेपाली जनता एक बार फिर से राजशाही के बारे में विचार करने लगी है. 2008 में राजशाही को उखाड़ फेंकने के बाद से देश में 13 सरकारें सत्ता में आ चुकी हैं. नेपाल में अब तक करीब-करीब सभी राजनीतिक पार्टियों को आजमा जा चुका है. एक बार फिर से ये हवा चल रही है कि राजशाही की बहाली से देश के हालात सुधरेंगे.
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आरपीपी कर रही राजशाही का समर्थननौ मार्च को जब ज्ञानेंद्र शाह त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे थे तो राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के शीर्ष नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया था. 1990 के दशक में राजशाही के सहयोगियों द्वारा स्थापित राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, राजशाही की बहाली का समर्थन करने वाला सबसे शक्तिशाली समूह है. स्वागत करने वालों में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के अध्यक्ष राजेंद्र लिंगदेन, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल के प्रमुख कमल थापा और अन्य वरिष्ठ नेता शामिल थे.
‘राजा वापस आओ, देश बचाओ’इन राजशाही समर्थकों ने काठमांडू की सड़कों पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया. इन प्रदर्शनकारियों ने ‘राजा वापस आओ, देश बचाओ’ जैसे नारे लगाए. उनका आरोप है कि नेपाल के राजनीतिक दल पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुके हैं और वे दूसरे धर्मों को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसके कारण नेपाल की पहचान खत्म हो सकती है. उनके अनुसार, केवल पूर्व शाही परिवार ही देश की स्थिति को सुधार सकता है. उनका कहना है कि जब शाही परिवार सत्ता में था, तब देश की समस्याओं का समाधान हुआ करता था.
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कब हुआ आरपीपी का गठनराष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, नेपाल की एक राजतंत्रवादी और हिंदू राष्ट्रवादी राजनीतिक पार्टी है. पार्टी का गठन पंचायत युग के प्रधानमंत्रियों सूर्य बहादुर थापा और लोकेंद्र बहादुर चंद ने 1990 में किया था. पार्टी ने 1997 में थापा और चंद के नेतृत्व में दो गठबंधन सरकारों का नेतृत्व किया. दोनों को 2000 के दशक में राजा ज्ञानेंद्र द्वारा प्रधानमंत्री भी नियुक्त किया गया था, 2002 में चंद और 2003 में थापा. 21 नवंबर 2016 को, पार्टी ने कमल थापा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल के साथ एकीकरण की घोषणा की. नई पार्टी ने राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी का नाम बरकरार रखा.
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पहले किया विरोध, अब पक्ष मेंपहली संविधान सभा के पहले सत्र में आरपीपी ने राजशाही को खत्म करने और नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में बदलने के लिए मतदान किया था. हालांकि बाद में, पार्टी ने नेपाल को एक हिंदू गणराज्य में बदलने की वकालत की. राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल, पार्टी का एक अलग समूह जिसने राजशाही को खत्म करने के खिलाफ मतदान किया था, ने हिंदू राज्य की फिर से स्थापना और राजशाही की वापसी का समर्थन करने के लिए अपना संविधान बदल दिया. अब पार्टी एक औपचारिक सम्राट, एक सीधे निर्वाचित प्रधानमंत्री और एक संसद का समर्थन करती है.



