प्राकृतिक धरोहर और आध्यात्मिकता का अनोखा संगम, खेजड़ी के लिए विश्नोई समाज देता है बलिदान

Last Updated:May 01, 2025, 13:29 IST
डाबला मंदिर राजस्थान में स्थित बिश्नोई समाज का प्रमुख तीर्थस्थल है, जो धार्मिक आस्था, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक एकता का प्रतीक है. यह गुरु जाम्भोजी के 29 नियमों पर आधारित है और हर अमावस्या मेला आयोजित होता है…और पढ़ेंX
श्रीगंगानगर के डाबला में स्थित बिश्नोई मंदिर.
हाइलाइट्स
डाबला मंदिर बिश्नोई समाज का प्रमुख तीर्थस्थल है.हर अमावस्या को मंदिर में मेला आयोजित होता है.बिश्नोई समाज पर्यावरण संरक्षण में प्रसिद्ध है.
श्रीगंगानगर- राजस्थान के रायसिंहनगर तहसील में स्थित बिश्नोई मंदिर बुड्ढा जोहड़ बिश्नोई समाज का एक प्रमुख तीर्थस्थल है. यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है. बिश्नोई समाज, जो 15वीं शताब्दी में गुरु जाम्भोजी द्वारा स्थापित हुआ, अपने 29 नियमों पर आधारित है, जो प्रकृति और जीवों की रक्षा पर जोर देते हैं. डाबला मंदिर इस आस्था और संरक्षा का जीवंत उदाहरण है.
मंदिर का ऐतिहासिक महत्वमंदिर का इतिहास श्री बूढ़ा जी खिलेरी से जुड़ा है, जिन्होंने बिश्नोई पंथ में दीक्षा लेकर इस स्थान पर भक्ति शुरू की थी. गुरु जाम्भोजी ने भी इस स्थान को समर्पित एक शबद अपनी वाणी में लिखा, जो इस स्थान की पवित्रता को दर्शाता है. समय के साथ बिश्नोई समाज ने यहां एक छोटा मंदिर बनवाया, जो आज विशाल तीर्थस्थल में बदल चुका है. यह मंदिर राजस्थान और उत्तर भारत में बिश्नोई समाज के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है.
आध्यात्मिक आयोजनों का महत्वहर अमावस्या को यहां मेला आयोजित होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं. मेले में शब्दवाणी का पाठ, हवन और लंगर जैसी परंपराएं निभाई जाती हैं, जो बिश्नोई समाज की सेवा और समानता की भावना को दर्शाती हैं. मंदिर समिति, जो श्रीगंगानगर द्वारा पंजीकृत है, मंदिर की व्यवस्था और विकास कार्यों का संचालन करती है. समिति के स्वयंसेवक श्रद्धालुओं की सेवा में तत्पर रहते हैं, जिससे यह स्थान आस्था और संगठन का अनुपम उदाहरण बन गया है.
पर्यावरण संरक्षण में योगदानबिश्नोई समाज का पर्यावरण संरक्षण में योगदान दुनिया भर में प्रसिद्ध है. खेजड़ली नरसंहार (1730) में 363 बिश्नोइयों ने खेजड़ी वृक्षों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी, यह प्रेरणा गुरु जाम्भोजी के 29 नियमों से मिली थी. डाबला मंदिर भी इन मूल्यों को बढ़ावा देता है, यहां आने वाले श्रद्धालु प्रकृति संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने का संकल्प लेते हैं. मंदिर परिसर में वृक्षारोपण और जल संरक्षण जैसे कार्य नियमित रूप से किए जाते हैं.
समाज में सामाजिक एकता का प्रतीकवर्तमान में डाबला मंदिर की ख्याति लगातार बढ़ रही है. यह न केवल बिश्नोई समाज, बल्कि अन्य समुदायों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गया है. मंदिर के मेले और धार्मिक आयोजन सामाजिक एकता को मजबूत करते हैं और बिश्नोई समाज के गौरवशाली इतिहास और पर्यावरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं. यह स्थान आध्यात्मिकता, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक सेवा का अनूठा संगम है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा.
Location :
Ganganagar,Rajasthan
homerajasthan
प्राकृतिक धरोहर और आध्यात्मिकता का अनोखा संगम, खेजड़ी के लिए विश्नोई समाज देता