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VP Singh Death Anniversary | VP Singh Information- राजीव गांधी को सत्ता से हटाने वाले अकेले शख्स! जब वीपी सिंह ने खोली बोफोर्स घोटाले की पोल, आज भी क्यों याद किए जाते हैं ‘राजा साहब’

VP Singh Death Anniversary: भारत के राजनीतिक इतिहास में बहुत कम नेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने सत्ता का शिखर भी देखा और सत्ता से लड़ने की कीमत भी चुकाई. विश्वनाथ प्रताप सिंह जिन्हें देश आज भी ‘राजा साहब’ कहकर याद करता है ऐसे ही नेता थे. बोफोर्स घोटाले का सच सामने लाने से लेकर मंडल कमीशन लागू करने तक, वे उन फैसलों के लिए जाने जाते हैं जिन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा ही बदल दी.

27 नवंबर 2008 को उनके निधन को सत्रह साल बीत चुके हैं, लेकिन उनका प्रभाव आज भी उतना ही प्रासंगिक है. राजीव गांधी की प्रचंड लोकप्रियता को चुनौती देकर सत्ता से हटाने वाले वे अकेले नेता थे. भ्रष्टाचार-विरोधी राजनीति और सामाजिक न्याय के दो बड़े मोर्चों पर जो लड़ाई उन्होंने लड़ी, उसका असर आज भी महसूस किया जाता है.

कौन थे वीपी सिंह, कैसे बने ‘राजा साहब’?
वीपी सिंह का जन्म 25 जून 1931 को इलाहाबाद के पास मंदा रियासत में हुआ था. उनकी छवि शुरू से ही सादगी पसंद, ईमानदार और सिद्धांतों के पक्के व्यक्ति की रही. राजनीति में उनकी शुरुआत 1969 में हुई जब वे कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने. इसके बाद वे 1971 में सांसद चुने गए और धीरे-धीरे कांग्रेस के भीतर एक मजबूत चेहरा बनकर उभरे.

वीपी सिंह का जन्म 25 जून 1931 को इलाहाबाद के पास मंदा रियासत में हुआ था.

उत्तर प्रदेश से दिल्ली तक- तेजी से बढ़ता सफर

वीपी सिंह ने-

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
केंद्रीय वित्त मंत्री
रक्षा मंत्री

जैसे बड़े पदों की जिम्मेदारी निभाई.

केंद्र में राजीव गांधी की सरकार के दौरान वे सबसे प्रभावशाली मंत्रियों में गिने जाते थे. लेकिन 1987 में स्वीडिश रेडियो की रिपोर्ट ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया और वहीं से वीपी सिंह का किरदार बदल गया.

बोफोर्स: जब एक मंत्री ने अपने ही प्रधानमंत्री से टक्कर ली

बोफोर्स तोप सौदे में कमीशनखोरी के आरोप सामने आए.
वीपी सिंह ने सबसे पहले इस मुद्दे को उठाया.
राजीव गांधी से मतभेद बढ़े.
अंततः उन्होंने मंत्री पद छोड़ दिया.
1989 के चुनाव में बोफोर्स कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना.

यही वह मोड़ था जब वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के राष्ट्रीय प्रतीक बन गए.

देश के सातवें प्रधानमंत्री और सबसे विवादित फैसलों में से एक

2 दिसंबर 1989 को वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने. उनकी सरकार 11 महीने रही, लेकिन इन 11 महीनों में उन्होंने ऐसा कदम उठाया जिसने भारतीय समाज को गहराई तक प्रभावित किया.

केंद्र में राजीव गांधी की सरकार के दौरान वे सबसे प्रभावशाली मंत्रियों में गिने जाते थे.

मंडल कमीशन लागू करने के बड़े प्रभाव

ओबीसी वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण.
पिछड़े वर्ग की राजनीति का उभार.
पूरे देश में विरोध और समर्थन दोनों की लहर.
कई जगह आत्मदाह की घटनाएं.
भारतीय राजनीति में स्थायी सामाजिक ध्रुवीकरण.

7 अगस्त 1990 को संसद में जब उन्होंने यह फैसला घोषित किया, उसी दिन भारत की राजनीति हमेशा के लिए बदल गई.

वीपी सिंह के राजनीतिक जीवन के प्रमुख पड़ाव
साल घटना महत्व1969पहली बार विधायकराजनीतिक शुरुआत1984-87वित्त और रक्षा मंत्रीदेशव्यापी पहचान1987बोफोर्स का खुलासाराष्ट्रीय प्रभाव1989प्रधानमंत्री बनेभ्रष्टाचार विरोधी छवि1990मंडल कमीशन लागूसामाजिक न्याय का युग

सत्ता गई लेकिन सिद्धांत नहीं छोड़े
भाजपा ने समर्थन वापस लिया और 10 नवंबर 1990 को उनकी सरकार गिर गई. लेकिन सत्ता छूटने के बाद भी उन्होंने न तो समझौता किया और न ही कोई पद लेने की इच्छा जताई. 1996 में कैंसर का पता चलने के बाद वे धीरे-धीरे राजनीति से दूर होते गए. वे दिल्ली और इलाहाबाद में शांत जीवन जीते रहे. 27 नवंबर 2008 को उनका निधन हुआ. उनकी इच्छा थी कि अंतिम संस्कार बिना किसी दिखावे के हो और ठीक वैसा ही हुआ.

आज भी क्यों याद किए जाते हैं ‘राजा साहब’

वीपी सिंह दो कारणों से भारतीय राजनीति में अमर हैं-

भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का साहस
पिछड़े वर्ग को अधिकार दिलाने का संकल्प

भले ही लोग उनके फैसलों से सहमत हों या असहमत, लेकिन यह तय है कि वे भारत की सबसे निर्णायक राजनीतिक शख्सियतों में से एक रहे.

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