गतका में दिखा युद्ध कौशल, हैरतअंगेज कारनामों से दर्शक हुए रोमांचित, जीवंत हुई सारागढ़ी किले की विजय गाथा

शक्ति सिंह/ कोटा: दशहरा मैदान पर आयोजित ‘गतका’ कार्यक्रम ने सिखों की शौर्य और साहस का अद्भुत प्रदर्शन किया. नीले वेशभूषा में सजे युवाओं और बच्चों ने पारंपरिक युद्ध कला ‘गतका’ का हैरतअंगेज प्रदर्शन किया, जहां तलवारों की चमक और फरसों की खड़खड़ाहट ने सभी का ध्यान खींचा. इस कार्यक्रम का आयोजन वीर खालसा ग्रुप द्वारा किया गया, जिसने दर्शकों को वीरता, शौर्य और रोमांच से भरपूर अद्भुत अनुभव प्रदान किया.
कार्यक्रम की शुरुआत अरदास से हुई, जिसके बाद नॉन-स्टॉप प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हुआ. इस दौरान ‘बोले सो निहाल.. सस्त्री अकाल.. वाहे गुरुजी दा खालसा.., वाहे गुरुजी दी फतह..’ की गूंज ने माहौल को और भी धार्मिक बना दिया. हजारों की संख्या में दर्शक उपस्थित थे और वे कार्यक्रम के अंत तक अपने स्थान पर बैठे रहे.
साहस और पराक्रम का अद्भुत संगम‘गतका’ में सिख वीरों ने अपने शस्त्रों—गोलिया, फरीसोटी, चक्कर, बैत, डांग, गुर्ज, कीलों के पट्टे और कृपाण को सलामी दी. जब कई मीटर लंबी और मोटी गतका छड़ें चलीं, तो उनकी खनक ने पूरे मंच पर एक विशेष माहौल बना दिया. भारी भरकम तलवारों को थामे हुए प्रदर्शनकारियों की ऊर्जा और जोश दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रहा था.
50 मिनट तक चलने वाले इस कार्यक्रम में, जब एक वरिष्ठ सदस्य ने आंखों पर पट्टी बांधकर पांच युवा सदस्यों की गर्दनों पर रखा केला तेज धार वाली तलवार से काटा, तो पूरा दशहरा मैदान जयकारों से गूंज उठा.
सारागढ़ी किले के युद्ध का नाट्य रूपांतरण इसके बाद, सारागढ़ी किले के युद्ध का नाट्य रूपांतरण मंच पर प्रस्तुत किया गया. यह दृश्य इतना प्रेरणादायक था कि हर दर्शक के दिल में उत्साह की लहर दौड़ गई. कार्यक्रम के अंत में ‘सिंह इज किंग’ की धुन पर समूह ने प्रस्तुति दी, जिससे पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. इस मौके पर निशान साहेब के झंडे भी लहराए गए, जो सिख संस्कृति और उनकी परंपराओं को प्रदर्शित कर रहे थे.
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FIRST PUBLISHED : November 2, 2024, 17:21 IST