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Water Conservation: पर्यावरण, प्रकृति और सांकृति का अद्भुत गठजोड़ झुंझुनूं का लक्ष्मीनाथ मन्दिर, बारिश के पानी से ही पूरे होते हैं सारे विधि-विधान

Last Updated:April 03, 2025, 20:11 IST

Water Conservation: झुंझुनूं में वर्षों पहले बने धार्मिक स्थलों में बनाए गए वाटर स्ट्रक्चर आज भी पानी बचा रहे हैं. इससे साबित होता है कि पानी के मोल को हमारे पुरखों ने बहुत अच्छे से जान लिया था. झुंझुनूं शहर मे…और पढ़ेंX
झुंझुनूं
झुंझुनूं का लक्ष्मीनाथ मन्दिर जल संरक्षण का अनूठा उदाहरण,106 साल से मन्दिर में स

हाइलाइट्स

लक्ष्मीनाथ मंदिर में 106 साल से बारिश का पानी सहेजा जाता हैबारिश के पानी से होता है मंदिर में भगवान का अभिषेक और भोग20,000 लीटर क्षमता वाले भूमिगत कुंड में जमा किया जाता है पानी

झुंझुनूं. सैकड़ों वर्ष पहले शेखावाटी क्षेत्र की सूखी धरती पर, जहां पानी की किल्लत आम है, झुंझुनूं शहर का 106 साल पुराना श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर एक ऐसी विरासत का प्रतीक है. जहां आस्था और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा मेल देखने को मिलता है. यह मंदिर सदियों पुरानी जल संचयन की पारंपरिक तकनीकों को आज भी जीवित रखे हुए है. मंदिर परिसर में बने विशाल कुंड में एकत्र बारिश का पानी भगवान के अभिषेक, भोग तैयार करने और मंदिर के अन्य नित्य कर्म में इस्तेमाल किया जाता है. यह प्रथा न केवल पुरखों की दूरदर्शिता को दर्शाती है, बल्कि आज के जल संकट के दौर में एक सबक भी देती है.

बरसात के पानी से ही लगाया जाता है भगवान का भोग झुंझुनूं में वर्षों पहले बने धार्मिक स्थलों में बनाए गए वाटर स्ट्रक्चर आज भी पानी बचा रहे हैं. इससे साबित होता है कि पानी के मोल को हमारे पुरखों ने बहुत अच्छे से जान लिया था. झुंझुनूं शहर में पुराना पोस्ट ऑफिस के पास स्थित 106 साल पुराने लक्ष्मीनाथ मंदिर में बरसात के पानी से ही भगवान का भोग लगाया जाता है. यहां छत के पानी को नालों से होते हुए मंदिर के नीचे बनाए कुंड में एकत्रित किया जाता है. इस पानी का उपयोग भगवान का भोग बनाने, भगवान को स्नान – करवाने के काम में लेते हैं.

20,000 लीटर क्षमता वाले भूमिगत कुंड का निर्माणइसके अलावा मंदिर पुजारी सभी धार्मिक प्रक्रिया, साफ-सफाई व बागवानी में काम लेते हैं. इस मंदिर में भगवान लक्ष्मीनारायण के साथ राम परिवार की प्रतिमाएं व शिव परिवार स्थापित है. मंदिर के व्यवस्थापक रघुनाथ प्रसाद शर्मा ने बताया कि हिंदी वर्ष 1972 में मंदिर की नींव रखी गई थी. मंदिर का निर्माण पुरा होने में करीब चार साल लगे. मंदिर निर्माण के साथ ही लगभग 20,000 लीटर क्षमता वाले भूमिगत कुंड का निर्माण भी करवाया गया, जो आज तक मानसून के पानी को संजोए हुए है. मंदिर के व्यवस्थापक रघुनाथ प्रसाद शर्मा ने बताया की इस कुंड में मंदिर की छत से बारिश का पानी नालियों के जरिए एकत्र कर दिया जाता है. इस पानी का इस्तेमाल केवल धार्मिक कार्यों में होता है, क्योंकि इसे शुद्ध और दैवीय माना जाता है.

कुंड के जल से ही पूरी होती है सभी क्रियाएं श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर में 106 साल पुराने कुंड का बारिश का जल आज भी भगवान की दिनचर्या का आधार बना हुआ है. मंदिर के पुजारी कृष्ण व्यास द्विवेदी ने बताया कि इस कुंड में संग्रहित वर्षा जल से ही भगवान लक्ष्मीनाथ के स्नान, पूजा-अर्चना और भोग तैयार किए जाते हैं. दिनभर में सात बार की जाने वाली आरती और प्रसाद की तैयारी भी इसी जल से होती है.सुबह भगवान के स्नान से रोजाना के नित्य कर्म की शुरुआत होती है. दिन में सात बार पूजा अर्चना सात बार भोग मंदिर में स्थापित कुंड के पानी से ही किया जाता है. मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को इसी पानी के पंचामृत दिया जाता है. पुजारी कृष्ण व्यास द्विवेदी ने बताया कि झुंझुनूं शहर के अन्य धार्मिक आयोजनों में भी यहाँ के कुंड से जल ले जाया जाता है, उन्होंने बताया कि सुबह भगवान के स्नान से दिन की शुरुआत होती है और संध्या आरती तक सभी रीति-रिवाज इसी जल से पूरे होते हैं.

जल संरक्षण के साथ पर्यावरण और संस्कृति के साथ सामंजस्यआप को बता दें की झुंझुनूं का लक्ष्मीनाथ मंदिर एक धार्मिक स्थल की नहीं, बल्कि जल संरक्षण के साथ पर्यावरण और संस्कृति के साथ सामंजस्य बिठाने की प्रेरणा है. यह परंपरा न केवल जल संरक्षण का संदेश देती है, बल्कि शेखावाटी की जल संचयन की ऐतिहासिक विरासत को भी जीवित रखे हुए है. मंदिर प्रशासन का कहना है कि कुंड का पानी कभी खत्म नहीं होता, क्योंकि वर्षा जल के संग्रहण और उपयोग का चक्र सदियों से चला आ रहा है.

Location :

Jhunjhunu,Jhunjhunu,Rajasthan

First Published :

April 03, 2025, 20:11 IST

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जल संरक्षण का अनूठा उदाहरण झुंझुनूं का लक्ष्मीनाथ मन्दिर, 106 सालों की गाथा

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