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Water Resources: लुप्त हुई श्रीगंगानगर में रहट सिंचाई प्रणाली, सरकारी सहायता और नहर पर निर्भर हुए किसान, फसल उत्पादन में भारी कमी

Last Updated:April 16, 2025, 19:00 IST

Water Resources: श्रीगंगानगर में प्राचीन रहट सिंचाई प्रणाली लुप्त हो गई है, जिससे किसान नहरों और सरकारी सहायता पर निर्भर हो गए हैं. कम बारिश और आधुनिक तकनीक के कारण फसल उत्पादन में 50-60 प्रतिशत तक कमी आई है.X
गांवों
गांवों से लुप्त हो रहे कुएं.

हाइलाइट्स

श्रीगंगानगर में रहट सिंचाई प्रणाली लुप्तकिसान नहरों और सरकारी सहायता पर निर्भरफसल उत्पादन में 50-60 प्रतिशत तक कमी आई है

श्रीगंगानगर. रहट, जी हां आपने नाम तो सुना ही होगा. रहट प्राचीन काल में सिंचाई का एक ऐसा साधन था जो कुएं से पानी निकालने का काम करता था. मगर धीरे -धीरे कुओं की संख्या में कमी आती गई और सिंचाई का एक अहम साधन किसानों से दूर हो गया.

कम बारिश के चलते बढ़ी सिंचाई की समस्या इंसानी फितरत ने कुएं भी गायब कर दिए और उनके साथ ही लुप्त हो गई इन कुओं पर पानी भरने आने वाली महिलाओं की पदचाप, हंसी ठिठोली. समय के साथ-साथ रहट के गायब हो जाने से बैलों की जोड़ी और घुंघरू की आवाज भी अब कानों में सुनाई नहीं पड़ती है. दूसरी ओर देश का अन्नदाता बारिश कम होने से परेशान है. कम बारिश के चलते सिंचाई की समस्या बढ़ रही है. फलस्वरूप पैदावार गिरती है और कड़ी मेहनत के बाद भी अन्नदाता वही फटेहाल रहता है. इस स्थिति के लिए जितने जिम्मेदार हम हैं, उतना ही किसान है. किसान अपने परम्परागत सिंचाई के साधानों का उपयोग नहीं कर रहे हैं. सिंचाई के लिए वे नहरों और सरकारी सहायता पर आश्रित होते जा रहे हैं जिसका खामियाजा किसान खुद भुगत रहा है.

किसान समझने लगे हैं बोझरहट सिंचाई तकनीक से भले ही 21वीं सदी के अधिकांश लोग वाकिफ न हो. इस सिंचाई तकनीक से किसान जहां पर्यावरण का संरक्षण करते थे, वहीं बिजली और डीजल की बचत भी होती थी. वर्तमान में बदलती तकनीक और विकास की इस रफ्तार में किसानों को भी पुरानी परम्पराओं को बदलने पर मजबूर कर दिया है. अति सरल और किफायती तकनीक को इस्तेमाल करने में किसान अब बोझ समझने लगे हैं.

रहट से होती थी आरामदायक सिंचाईऐसा नहीं है कि पुराने समय में खेतों और नहरों में पानी आसानी से पहुंच जाता था. उस वक्त भी थोडी मेहनत करनी पड़ती थी लेकिन वह मेहनत किसानों के लिए कारगार साबित होती थी. अब तो तकनीक इतनी उन्नत है कि पानी पहाड़ों पर भी पहुंचाया जा सकता है. लेकिन पहले की बात करें तो खेतों और नहरों में पानी पहुंचाने के लिए किसान खेतों के पास कुंआ खोदकर उसमें लोहे ही ‘रहट’ नामक मशीन लगाकर फसलों की सिंचाई बड़े आराम से कर लेते थे. 2 बैलों की सहायता से इस सिस्टम को परम्परागत कुंए में लगाया जाता था और चेन में लगे डिब्बों के जरिए पानी खेतों पर पहुंचाया जाता था. बैलों को चलाने के लिए महज एक व्यक्ति की जरूरत होती थी.

डीजल व बिजली की बचत होती थीइस तकनीक में किसी तरह की बिजली अथवा डीजल का इस्तेमाल नहीं किया जाता था. किसानों के मुताबिक कुछ बैल इस तकनीक के लिए इतने फिट रहते थे कि वे बिना किसी व्यक्ति के इस सिस्टम को चलाते रहते थे. इससे बिजली की भी बचत रहती थी और साथ में पर्यावरण का भी संरक्षण होता था. बिना धुएं और बिना किसी ईधन के इस सिस्टम को चलाया जाता था.क्यों लुप्त हो गई यह तकनीक…?प्राचीनकाल में काफी नीचे से ऊपर पानी चढ़ाने का काम करने वाली यह रहट प्रणाली कई सदियों तक भारत में किसानों के लिए सिंचाई का साधन बनी रही. मगर घटते जलस्तर और सूखे की वजह से कुएं में पानी काफी नीचे चला गया और रहट प्रणाली दम तोड़ती गई. जैसे-जैसे तकनीक का विकास हुआ वैसे-वैसे इसे भुला दिया गया. नतीजा ये हुआ कि इस तकनीक की जगह पर्यावरण का दोहन करने वाली नई टेक्नोलॉजी ने ले ली.

ज़्यादातर किसान नहरों पर निर्भरअगर बात श्री गंगानगर जिले की करे तो जिले में 1 प्रतिशत से कम की सिंचाई कुंओं  द्वारा की जाती है. जबकि पड़ोसी राज्य पंजाब-हरियाणा में अभी भी 50 प्रतिशत से ज्यादा की सिंचाई रहट कुओं द्वारा की जाती है. श्री गंगानगर जिले के ज़्यादातर किसान नहरों पर निर्भर रहते है. यही वजह है कि श्री गंगानगर जिला राजस्थान में पानी के आन्दोलन के नाम से जाना जाता है. जिले में हर साल सिचाई पानी की मांग को लेकर किसान धरने-प्रदर्शन करते है. जिसकी वजह से फसल उत्पादन में 50 से 60 प्रतिशत तक कमी होती है.

Location :

Ganganagar,Rajasthan

First Published :

April 16, 2025, 19:00 IST

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खत्म हो गए पुराने सिंचाई के साधन, विलुप्त हो गया रहट, नहर पर निर्भर किसान

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