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कनाडा में मार्क कोर्नी की जीत का क्या मतलब है, इससे भारत के रिश्तों क्या असर पड़ेगा?

Mark Carney’s party wins in Canada: कनाडा के फेडरल चुनावों में प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की लिबरल पार्टी ने जीत हासिल की है. ज्यादातर वोटों की गिनती पूरी हो चुकी है. जो नतीजे सामने आए हैं उसमें लिबरल पार्टी ने 169 सीटों पर जीत दर्ज की है. जबकि तीन महीने पहले तक कई चुनाव पूर्व सर्वे में आगे चल रही कंजरवेटिव पार्टी को 144 सीटें मिली हैं. हालांकि लिबरल पार्टी 343 सीटों वाले हाउस ऑफ कॉमंस में अभी आवश्यक बहुमत से तीन सीट पीछे है. कनाडा में सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 172 सीटों की जरूरत होती है. इसका मतलब है कि मार्क कोर्नी किसी छोटी पार्टी के साथ गठबंधन करेंगे. 

इसे लिबरल पार्टी के नेता मार्क कार्नी की बड़ी जीत माना जा रहा है. क्योंकि उन्होंने राजनीतिक वापसी करते हुए सत्ता बरकरार रखी है. जबकि मार्क कार्नी के प्रतिद्वंद्वी माने जा रहे कंजरवेटिव नेता पियरे पोइलीव्रे ओंटारियो में अपनी सीट हार गए हैं. तीन महीने पहले तक पियरे पोइलीव्रे को बड़ी जीत और प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था. यह घटनाक्रम लिबरल पार्टी के लिए एक बड़ा बदलाव है. ये पार्टी कुछ महीने पहले तक तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में भारी हार की आशंका से जूझ रही थी. कार्नी देश के भीतर मची भारी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच चुनावों से चंद हफ्ते पहले मार्च 2025 में कनाडा के 24वें प्रधानमंत्री बने थे.

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मार्क कार्नी की जीत के भारत के लिए मायनेयह कोई रहस्य नहीं है कि जस्टिन ट्रूडो के शासनकाल में हाल के वर्षों में भारत- कनाडा संबंध अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे. ट्रूडो ने 2020 में भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन पर टिप्पणी की थी. वह ऐसा करने वाले दुनिया के पहले नेता बन गए. लेकिन उसके बाद भी दोनों देशों के बीच टकराव में कोई कमी नहीं आई. ट्रूडो ने नई दिल्ली पर खालिस्तानी समर्थकों के प्रति नरम रुख अपनाने का आरोप लगाया. यही नहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री ट्रूडो ने 2023 में आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का संबंध होने का आरोप लगाया. नई दिल्ली ने कनाडा के आरोपों को बेतुका बताया था. भारत ने दावा किया था कि ट्रूडो ‘वोट बैंक की राजनीति’ खेल रहे थे. उस समय उनकी अल्पमत में थी और वामपंथी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) और खालिस्तानी समर्थक नेता जगमीत सिंह के समर्थन से सत्ता में बनी हुई थी.

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कार्नी ने कहा, भारत से रिश्ते महत्वपूर्णमार्क कार्नी की जीत इस बात संकेत है कि नई दिल्ली और ओटावा अपने बिगड़े हुए रिश्तों को सुधार सकते हैं. कार्नी ने सोमवार को भारत के साथ संबंधों को अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण बताया. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक कार्नी ने कहा, “कनाडा-भारत संबंध, कई स्तरों पर एक अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण संबंध है. भारत के व्यक्तिगत स्तर पर कनाडा के लोगों के साथ गहरे संबंध हैं, आर्थिक रूप से और रणनीतिक रूप से.” अपने चुनाव अभियान के दौरान कार्नी ने भारत जैसे ‘समान विचारधारा वाले’ देशों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता पर जोर दिया था. 

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भारत को समान विचारधारा वाला देश बतायाएनडीटीवी के मुताबिक कार्नी ने कहा, “कनाडा समान विचारधारा वाले देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंधों में विविधता लाना चाहता है और भारत के साथ संबंधों को फिर से बनाने के अवसर मौजूद हैं. उस व्यावसायिक संबंध के इर्द-गिर्द मूल्यों की साझा भावना होनी चाहिए. अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो मैं इसे बनाने के अवसर का इंतजार करता.” फरवरी में टोरंटो स्टार को दिए एक साक्षात्कार में कार्नी ने कहा, “अलग व्यक्ति, अलग नीतियां, शासन करने का अलग तरीका.” हालांकि कार्नी ने निज्जर हत्या और उससे जुड़े आरोपों पर टिप्पणी नहीं की है, लेकिन उन्होंने अधिक संतुलित लहजा अपनाया. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार 2023 में कार्नी ने कहा, “स्पष्ट रूप से कहें तो उस रिश्ते पर तनाव है, जो हमने पैदा नहीं किया है. लेकिन आपसी सम्मान के साथ उन्हें दूर करने और आगे बढ़ने का एक रास्ता है.”

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कनाडा में भारतीय माइग्रेंट्सइन समस्याओं के बावजूद भारतीयों का कनाडा में माइग्रेशन जारी है. कनाडा में भारत के लगभग 30 लाख अस्थायी कर्मचारी, छात्र और स्थायी निवासी हैं. कनाडा में भारत के लगभग 427,000 छात्र हैं. इनमें से अधिकांश पंजाब से हैं जो कनाडा की अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर का योगदान करते हैं. इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार अकेले पंजाब के छात्र हर साल कनाडा में 68,000 करोड़ रुपये (8 बिलियन डॉलर) खर्च करते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि कुल आंकड़ा 20 अरब डॉलर के करीब हो सकता है. ट्रूडो के नेतृत्व वाली सरकार ने कनाडा ने अपने इमिग्रेशन नियमों को कड़ा करने की घोषणा की थी. लिबरल पार्टी ने अपने घोषणापत्र में 2027 तक आप्रवासन को जनसंख्या के पांच प्रतिशत तक सीमित रखने और स्थायी निवासी प्रवेश को एक प्रतिशत पर रखने का संकल्प लिया है. एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री कार्नी संभवतः इस बात को समझते हैं कि छात्र, कुशल पेशेवर और तकनीकी कर्मचारी कनाडा की अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकते हैं. कार्नी बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ कनाडा के पूर्व गवर्नर हैं. 

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पटरी पर लौटेगा मुक्त व्यापार समझौताभारत और कनाडा लंबे समय से मुक्त व्यापार समझौते पर विचार कर रहे हैं. वाणिज्य विभाग के अनुसार, 2008 में भारत-कनाडा सीईओ गोलमेज ने पहली बार व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) की सिफारिश की थी. सितंबर 2010 में एक संयुक्त अध्ययन में दृढ़तापूर्वक सिफारिश की गई कि दोनों देश CEPA पर सहमत हों. उस समय, दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने घोषणा की थी कि सीईपीए वार्ता शुरू हो गयी हैं. 2020 में अंतरिम समझौते पर चर्चा के लिए द्विपक्षीय बैठक आयोजित की गई थी. हालांकि, नई दिल्ली और ओटावा के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता तब स्थगित कर दिया गया जब ट्रूडो ने 2023 के अंत में निज्जर की हत्या में भारत के खिलाफ आरोप लगाए. भारत और कनाडा ने एक-दूसरे के राजनयिकों को भी निष्कासित कर दिया था. अब, कार्नी के पद पर वापस लौटने के बाद, उम्मीद है कि संबंधों को पुनः समान स्तर पर लाया जा सकेगा. इससे सीईपीए को जल्द से जल्द पूरा किया जा सकेगा.

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कार्नी ने अमेरिका को सुनाई खरी-खोटीकार्नी ने कहा, “हम अमेरिकी विश्वासघात के सदमे से उबर चुके हैं, लेकिन हमें उससे मिले सबक कभी नहीं भूलना चाहिए. जैसा कि मैं महीनों से चेतावनी दे रहा हूं, अमेरिका हमारी जमीन, हमारे संसाधन, हमारा पानी, हमारा देश चाहता है. ये बेकार की धमकियां नहीं हैं. राष्ट्रपति ट्रंप हमें तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं ताकि अमेरिका हम पर कब्जा कर सके. ऐसा कभी नहीं होगा… कभी नहीं होगा.”

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