पाकिस्तान से पलायन करते समय पुश्तैनी मकानों की ईंटें भी साथ ले आए थे इस गांव के लोग, आज भी ताजा हैं यादें

बाड़मेर. भारत-पाकिस्तान के विभाजन और 1965, 1971 युद्ध के बाद भारी मात्रा में पलायन हुआ. इस पलायन में कुछ ऐसे भी थे जिन्हें अपनी मातृभूमि से मजबूरन पलायन करना पड़ा लेकिन इन्हें अपने पुश्तैनी मकानों से इतना प्यार था कि वह पाकिस्तान से इसकी ईंटे तक उठाकर ले आए थे. सबसे दिलचस्प बात यह कि उन्ही ईंटों से इन लोगों ने हिंदुस्तान में अपने घर बनाए है.
आज भी उन ईंटों पर किसी तरह का प्लास्तर नही किया गया है. इसकी वजह पूछने पर यह लोग कहते हैं अगर इन ईंटो पर प्लास्टर कर दिया तो पुश्तैनी घर की यादें खत्म हो जाएंगी. भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर का सरहदी गांव गडरारोड़ इन मकानों का आज भी साक्षी है. यहां आपको कई परिवार मिल जाएंगे जो सरहद के उस पार पाकिस्तान से भारत-पाकिस्तान के विभाजन और 1965, 1971 के युद्ध में भारी मात्रा में सरहद के इस पार आए और यही के होकर रह गए.
यह पाकिस्तान से अपने घरों की ईंट तक ले आए जिससे पाकिस्तान के गङरा सिटी में बसे इनके परिवारों, घरों और गलियों की यादें ताजा रहें. पाकिस्तान से भारत आए गडरारोड़ निवासी महेश जोशी बताते है कि भारत-पाक युद्ध के समय पाकिस्तान में बने मकानों से ईंट निकाल कर भारत ले आए. ऊंट और अन्य साधनों के जरिए पाकिस्तान से हजारों ईंटे भारत ले आए. वह बताते है कि पुश्तेनी मकान में लगी ईंटे 100 साल पुरानी हैं.
वह बताते हैं कि भारत – पाक युद्ध के बाद गडरा सिटी आज भी वीरान है. पहले पाकिस्तान में गडरा सिटी तो भारत में गडरारोड़ में आकर बस गए हैं. पाकिस्तान से लाई गईं यह ईंटें पत्थर से भी ज्यादा मजबूत हैं. 100 साल बाद आज भी पाकिस्तान की ईंटे सरहद पार भारत में मकान बनाने में काम आती हैं.
FIRST PUBLISHED : May 19, 2024, 15:53 IST