आसोज अमावस्या: कौन हैं बिश्नोई समाज के गुरु जम्भेश्वर, कहां है इनका धाम? जानें पूरा इतिहास
नागौर. आसोज अमावस्या के चलते चुनाव आयोग ने हरियाणा राज्य के मतदान की तिथि में बदलाव कर दिया है. आसोज अमावस्या पर राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा इलाके में स्थित गुरु जम्भेश्वर के मुकाम धाम (समराथल धोरा) पर बड़ा मेला भरता है. इस मेले में देशभर से श्रद्धालु खासकर बिश्नोई समाज के लोग जुटते हैं. यह मेला बिश्नोई पंथ के संस्थापक गुरु जम्भेश्वर की याद में भरता है. इसे सबसे नया पंथ माना जाता है. आगामी 2 अक्टूबर को आसोज अमावस्या है. गुरु जम्भेश्वर का जीवन बेहद खास रहा है.
बिश्नोई समाज के इतिहासकारों के अनुसार गुरु जंभेश्वर जी का जन्म 1451 ईस्वी (विक्रम संवत 1508) में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन नागौर जिले के पीपासर गांव में हुआ था. जांभोजी के पिता का नाम लोहट पंवार और मां का नाम हंसादेवी था. इनके पिता पंवार गोत्रिय राजपूत थे. जंभेश्वर जी के गुरु का नाम गोरखनाथ था. जंभेश्वर जी की मां हंसादेवी ने उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार माना था. माता-पिता के निधन के बाद जम्भेश्वर जी ने अपनी पूरी संपति जनहित में दान कर दी.
1485 में 34 वर्ष की आयु में बिश्नोई पंथ की स्थापना की थीउसके बाद वे समराथल धोरे पर जाकर रहने लगे. सन् 1485 में 34 वर्ष की आयु में उन्होंने बिश्नोई पंथ की स्थापना की. पंथ स्थापना तत्कालीन बीकानेर राज्य के समराथल धोरे पर कार्तिक वदी अष्टमी को की गई थी. विक्रमी संवत 1593 सन् 1536 मिंगसर वदी नवमी (चिलत नवमी) के दिन लालासर में गुरु जम्भेश्वर निर्वाण को प्राप्त हुए. उनका समाधि स्थल आज भी मुकाम गांव में स्थित है.
आसोज अमावस्या का मेला संत विल्होजी ने 1591 ई. में शुरू किया थामुकाम मंदिर में हर साल दो बड़े मेले भरते हैं. पहला फाल्गुन अमावस्या पर और दूसरा आसोज अमावस्या के दिन. बताया जाता है कि फाल्गुन अमावस्या का मेला बहुत पुराना है. लेकिन आसोज अमावस्या का मेला संत विल्होजी ने 1591 ई. में शुरू किया था. इस मेले का आयोजन अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा और अखिल भारतीय गुरु जम्भेश्वर सेवक दल मिलकर करते हैं. हर साल आसोज अमावस्या पर यहां हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से लोग आते हैं तथा मुक्तिधाम में मत्था टेकते हैं. इस बार आसोज अमावस्या का मेला 2 अक्टूबर को है. उसी दिन पहले हरियाणा में मतदान होना था. लेकिन अब असोज मेले के देखते हुए इसकी तारीख में बदलाव किया गया है.
महाराज को समाधि देने के लिए 24 हाथ नीचे खुदाई की गई थीजम्भेश्वर जी का यह मुकाम बीकानेर जिला मुख्यालय से लगभग 63 किलोमीटर और नोखा तहसील से लगभग 15 किलोमीटर दूर है. मान्यता है कि गुरु जम्भेश्वर जी को बीकानेर में मुकाम नामक जगह पर एकादशी के दिन समाधि दी गई थी. यही जगह आज मुक्तिधाम के नाम से जानी जाती है. कहा यह भी जाता है कि गुरु महाराज ने समाधि लेने से पहले खेजड़ी और जाल के वृक्ष को अपनी समाधि का चिह्न बताया था. आज उसी जगह पर उनकी समाधि बनी हुई है. इतिहासकारों की मानें तो जब गुरु महाराज को समाधि देने के लिए 24 हाथ नीचे खुदाई की गई तो वहां एक त्रिशूल मिला था. वह त्रिशूल आज भी मुक्तिधाम मुकाम पर स्थापित है. इस मंदिर का निर्माण गुरु जम्भेश्वर के प्रिय शिष्यों में से एक रणधीर जी बावल ने करवाया था. उनके स्वर्गवास के बाद इस मंदिर को बिश्नोई समाज के संतों की मदद से पूरा किया गया था.
बिश्नोई समाज के लोगों के लिए 29 नियम की आचार संहिता बनाई थीजम्भेश्वर जी को जांभोजी भी कहा जाता है. उन्होंने बिश्नोई समाज के लोगों के लिए 29 नियम की आचार संहिता बनाई थी. इसी आधार पर कई इतिहासकारों ने बीस और नौ नियमों को मानने वाले को बिश्नोई कहा है. गुरु जांभोजी को पर्यावरण वैज्ञानिक भी कहा जाता है. जम्भवाणी का मुख्य ध्येय ‘जीया ने जुगती मरिया ने मुक्ति’ है. जम्भेश्वर जी ने पुल्होजी पंवार को दीक्षित कर सर्वप्रथम बिश्नोई बनाया था. गुरु जम्भेश्वर जी ने अपने जीवन काल में अनेक शब्द कहे लेकिन वर्तमान में उनके 120 शब्द ही उपलब्ध है. उन्हें जंभ वाणी या शब्दवाणी के नाम से जाना जाता है.
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FIRST PUBLISHED : September 1, 2024, 12:10 IST