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महाकुंभ: कौन होती हैं भगवान राम की वो सखियां, जो हमेशा आती हैं कुंभ में, होते हैं पुरुष पर वेष स्त्रियों का

Last Updated:February 17, 2025, 12:57 IST

हर बार कुंभ के मौके पर पुरुषों का एक झुंड ऐसा भी पहुंचता है, जो स्त्रियों के वेष में होता है और महिलाओं की तरह सारे श्रृंगार करके राम को रिझाने की कोशिश करती हैं. जानें इन सखियों के बारे में महाकुंभ: कौन हैं राम की वो सखियां, जो हमेशा आती हैं कुंभ में, होते हैं पुरुष

हर कुंभ में भगवान राम की सखियां भी आती हैं. वो कुंभ को अपना नैहर मानती हैं. लिहाजा ऐसे हर मौके पर वो सजी धजी यहां आती हैं. कुंभ में चार शाही स्नान में हिस्सा लेती हैं. सजी-धजी रहती हैं लेकिन उनकी एक बात ऐसी है जो हर किसी को हैरान भी करती है और मन में एक सवाल भी पैदा होता है कि ये सखियां पुरुष क्यों हैं और ये क्यों स्त्री की वेषभूषा और उसी तरह सज-धज कर यहां आती हैं. फिर कहां से आती हैं और कहां चली जाती हैं.

कुंभ में जब त्रिजटा स्नान हो जाता है तो भगवान राम की सखियां भी विदा हो जाती हैं. इस बार भी हमेशा की तरह राम की सखियों ने स्नान करने के बाद नैहर से विदा ले ली. चलते समय वो अपनी साड़ी की गांठ में गंगा की रेती बांध लेती हैं. अब वो सभी अर्धकुंभ में फिर यहां आएंगी.

क्या होता है त्रिजटा स्नानत्रिजटा स्नान का महत्व उन श्रद्धालुओं के लिए है जो माघ पूर्णिमा के बाद भी संगम में स्नान कर अपनी धार्मिक मान्यताओं को निभाते हैं. मान्यता है कि त्रिजटा स्नान से पूरे माघ मास के स्नान का पुण्य मिलता है.

‘त्रिजटा’ का अर्थ है 3 धाराएं– गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती. इस स्नान को कर्म, भक्ति और ज्ञान का संगम भी माना जाता है, मान्यता है कि इससे श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है.

असल में राम की सखियां कौन थींराम की सखियों के तौर पर उन महिलाओं को कहा जाता है जो राम के साथ उनकी जीवन यात्रा में शामिल थीं. जिसमें सीता, लक्ष्मण की पत्नी और सीता की बहन उर्मिला और शृंगि थीं. इसके अलावा बहुत सी ऐसी महिलाएं, जिनका जीवन राम और उनके परिवार के साथ जुड़ा हुआ था. ये भी कहते हैं कि सीता के साथ जमीन से पैदा हुई आठ स्त्रियां सखी हैं. इसमें चारशिला, चंद्रकला, रूपकला, हनुमाना, लक्षमाना, सुलोचना, पदगंधा एवं बटोहा शामिल हैं. इस नाते से यह सीता की बहनें हैं.

कुंभ में आने वाली राम की सखियां कौन होती हैंपिछले एक माह से अनी अखाड़ों में इन सखियों के भजन गूंज रहे थे. सखी संप्रदाय में शामिल सखियां शारीरिक रूप से पुरुष होती हैं लेकिन राम की उपासना सखी भाव से करने की वजह से वह खुद को स्त्रियों की तरह सजाते-संवारते हैं. हाथों में रंग-बिरंगी चूड़ियां, लाली और आंखों में काजल के साथ अपने पांव को आलता से लाल रंग में रंगती हैं. वो राम को दुल्हा समझती हैं. वो भगवान राम से जीजा-साली का रिश्ता समझती हैं. अपने इस रिश्ते के चलते भगवान से छेड़छाड़ से भी वह बाज नहीं आतीं. इनके भजनों में भी राम से छेड़छाड़ के तमाम प्रसंग मौजूद रहते हैं.

कुंभ उनके लिए नैहर सरीखा है. महीने भर यहां रहकर वह अपने जीजा राम को रिझाने को नाचती गाती हैं. त्रिजटा स्नान के बाद वो भी विदजा ले लेती हैं. जाते समय मां गंगा से आशीष लेते हुए राम के भजन गाते हुए विदा लेती हैं

अनी अखाड़ा क्या है, जिससे ये सखियां जुड़ी होती हैंअनी अखाड़ा (Ani Akhada) एक विशेष प्रकार का धार्मिक और सांस्कृतिक संगठन होता है, जो मुख्य रूप से हिंदू धर्म और विशेष रूप से शैव और नथ परंपराओं से जुड़ा होता है. यह भारतीय समाज में धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का हिस्सा होता है.

सखी संप्रदाय क्या होता हैसखी संप्रदाय एक विशेष भक्ति परंपरा है जो मुख्य रूप से भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति से जुड़ी है. इसमें पुरुष ही शामिल होते हैं. हालांकि राम से जुड़ा सखी संप्रदाय भी है. सखी संप्रदाय में दीक्षित होने के बाद पूरे जीवन पालन करना होता है. इसके बाद कोई घर बार नहीं होता. तो ये सखी संप्रदाय रामनंदी भी होता है और कृष्णानंदी भी.

कैसे पता लगता है कौन रामनंदी सखी और कौन कृष्णानंदीबैरागियों के सभी संप्रदाय में सखियों को मान्यता दी गई है. माथे पर तिलक लगाने के तरीके से इनका संप्रदाय पता चलता है. रामानंदी संप्रदाय की सखियां लाल तिलक लगाती हैं जबकि कृष्णानंदी शाखा की सखियां माथे राधा नाम की बिंदी लगाती हैं.

रामनंदी सखी संप्रदाय में भगवान राम भक्ति का केंद्र होते हैं. इस संप्रदाय में राम को पूजा जाता है लेकिन भक्त उन्हें प्रिय मित्र या सखा के रूप में भी देखते हैं. भक्त भगवान राम से अपने संबंध को एक सखी के रूप में महसूस करते हैं, जो गहरे आत्मीय प्रेम से जुड़ा होता है.

कृष्णनंदी संप्रदाय में पुरुष रुपी भक्त खुद को गोपी मानते हैं और कृष्ण से लीलाएं और प्रेम में डूबते हैं. उन्हें एक प्रेमी, मित्र, या प्रियतम के रूप में मानते हैं. कृष्णानंदी संप्रदाय में भक्त रासलीला और प्रेम के रस को प्राथमिकता देते हैं. इसमें भक्त खुद को राधा या गोपियों की तरह समझते हैं.

रामनंदी सखी संप्रदाय मुख्य रूप से उत्तर भारत और गुजरात के क्षेत्रों में प्रचलित है. कृष्णानंदी सखी संप्रदाय अधिकतर वृंदावन, मथुरा, और गोप्य भक्ति से जुड़ा हुआ है.


Location :

Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh

First Published :

February 17, 2025, 12:57 IST

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