Rajasthan this number considered inauspicious know history

Last Updated:April 03, 2025, 15:11 IST
राजस्थान के थार मरुस्थलीय इलाके में भयंकर आपदाओं का साक्षी रहा है. यहां का जनजीवन बहुत कठिन रहता है. हालांकि अकाल इस इलाके के लिए नया नहीं है. पहले कई बार अकाल पड़ चुके है. लेकिन विक्रम संवत 1956 में एक ऐसा दौर…और पढ़ेंX
राजस्थान में इसे छप्पनिया-काळ कहा जाता था
हाइलाइट्स
राजस्थान में 56 नंबर को अशुभ माना जाता था.विक्रम संवत 1956 में तीन साल तक अकाल पड़ा.अकाल के कारण 56 नंबर को बही खातों में खाली छोड़ते थे.
बीकानेर:- त्याग और बलिदान की भूमि रही राजस्थान का नाम सुनते ही सबसे पहले राजा महाराजा, शूरवीरों और महापुरुषों का नाम आता है. पूरी दुनिया में भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान का कठिन इलाका माना जाता है. यहां आज भी जीवनयापन करना बहुत मुश्किल होता है. लेकिन राजस्थान में एक ऐसा दौर भी आया, जब इस राज्य में अकाल पड़ा.
इस नंबर को मानते थे अशुभसाल 1899-1900 में राजस्थान में एक बदनाम अकाल पड़ा था. विक्रम संवत 1956 में ये अकाल पड़ने के कारण राजस्थान में इसे छप्पनिया-काल कहा जाता था. एक अनुमान के मुताबिक, इस अकाल से राजस्थान में लगभग पौने-दो लाख लोगों की मृत्यु हो गयी थी. इसके बाद से राजस्थान में 56 नंबर को काफी अशुभ माना जाने लगा.
यही कारण है कि राजस्थान के लोग अपनी बहियों मारवाड़ी अथवा महाजनी बही-खातों में पृष्ठ संख्या 56 को रिक्त छोड़ते थे. छप्पनिया-काल की विभीषिका व तबाही के कारण राजस्थान में 56 की संख्या अशुभ माना जाने लगा. हालांकि अब लोग इस संख्या को अशुभ नहीं मानते हैं.
तीन साल तक त्रिकाल राजकीय डूंगर महाविद्यालय के प्रोफेसर विक्रमजीत सिंह ने लोकल 18 को बताया कि राजस्थान के थार मरुस्थलीय इलाके में भयंकर आपदाओं का साक्षी रहा है. यहां का जनजीवन बहुत कठिन रहता है. हालांकि अकाल इस इलाके के लिए नया नहीं है. पहले कई बार अकाल पड़ चुके हैं. लेकिन विक्रम संवत 1956 में एक ऐसा दौर आया, जब लगातार तीन साल तक राजस्थान में अकाल पड़ा. इस राज्य में तीन साल तक बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी.
उसके कारण चारों तरफ अन्न का संकट, जल का संकट हो गया. इस वजह से कई जनहानि हुई और पशुओं की भी मौत हुई. इंसानों के पीने का पानी नहीं था, तो लाखों लोगों की मौत हो गई. इस अकाल को त्रिकाल भी कहते हैं. लगातार तीन वर्षों से अकाल पड़ने से राजस्थान में इसे त्रिकाल कहने लगे.
राजस्थान से बढ़ गया था पलायनपूर्वजों के वृतांत है कि भरूट घास की रोटी बनाकर खाते थे. लोगों ने खेजड़ी के वृक्ष की छाल खा-खाकर इस अकाल में जीवनयापन किया था. वहीं कई लोग दूसरे राज्यों में पलायन कर गए थे. उस समय विक्रम संवत का ज्यादा प्रचलन था, लेकिन अब नहीं है. विक्रम संवत 1956 को अकाल पड़ा, तो लोगों की मान्यता हो गई कि 56 नंबर अशुभ है. हालांकि अब ऐसा कुछ भी नहीं है.
कुछ लोगों ने यह मान्यता बना ली कि 56 के अंक से बचना चाहिए. यह 56 नंबर अशुभ है. शुभ और अशुभ तो सिर्फ मन की कल्पना है. आज के दौर में यह अकाल और 56 नंबर संख्या से अपरिचित है. इसके पीछे कारण है कि आज लोगों के पास साधन और कई तरह की सुविधाएं हैं. पहले लोगों ने बहुत परेशानियां देखी है, लेकिन अब वो समस्या लोगों के सामने नहीं है.
Location :
Bikaner,Rajasthan
First Published :
April 03, 2025, 15:11 IST
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कभी राजस्थान में इस नंबर को मानते थे अशुभ, हैरान कर देगी इसके पीछे की वजह