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क्यों प्रसिद्ध हैं सीकर के लादू हलवाई के लड्डू, पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत की थी पहली पसंद, जानें क्या है रेसिपी 

Last Updated:December 04, 2025, 16:06 IST

Laddoo Halwai’s laddus: सीकर के मशहूर लादू हलवाई के लड्डू 150 साल पुरानी परंपरागत तकनीक से तैयार किए जाते हैं. देसी घी की खुशबू और हाथ की बनी बूंदी का स्वाद इतना लाजवाब है कि लोग एक बार खाकर भूल नहीं पाते. नेताओं से लेकर फिल्मी सितारों तक, हर कोई इन लड्डुओं का दीवाना है. यही इन्हें सीकर की पहचान बनाता है.लादू हलवाई

सीकर के लादू हलवाई के लड्डू अपनी परंपरागत विधि, देसी घी की महक और लाजवाब स्वाद के कारण पूरे राजस्थान ही नहीं, बल्कि देशभर में प्रसिद्ध हैं. इन लड्डुओं की बढ़ती डिमांड का सबसे बड़ा कारण इनकी रेसिपी है. आज भी इसमें 150 साल पुरानी तकनीक का उपयोग किया जाता है. लोग बताते हैं कि एक बार इन लड्डुओं का स्वाद चखने के बाद इसे भूल पाना मुश्किल होता है, क्योंकि इनमें देसी मिठास और पारंपरिक स्वाद का ऐसा मेल होता है जो कहीं और नहीं मिलता.

लादू हलवाई

पूर्व उपराष्ट्रपति और तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे भैरों सिंह शेखावत भी लादू हलवाई के इन लड्डुओं के दीवाने थे. जब भी वे सीकर आते, लादूराम के लड्डुओं से ही उनका स्वागत किया जाता था और वे स्वयं इसकी तारीफ करते थे. उनके जयपुर में हुए शपथ ग्रहण समारोह में भी सीकर से विशेष रूप से ये लड्डू भेजे गए थे. इसके अलावा आजादी से पहले 1936 में जब लाल बहादुर शास्त्री सीकर आए तो उन्होंने भी इन लड्डुओं का स्वाद चखा था. आज भी कई राजनीतिक हस्तियां, फिल्मी सितारे और बड़े अधिकारी भी सीकर आने पर इन लड्डुओं का स्वाद चखते हैं, जिससे इनकी प्रसिद्धि लगातार बढ़ती जा रही है.

लादू हलवाई

लादू हलवाई परिवार की लड्डू बनाने की परंपरा लगभग छह पीढ़ियों से चली आ रही है. शुरुआत 150 साल पहले लादूराम गिनोड़िया ने की थी, जिन्होंने देसी घी और हाथ से बनी बूंदी के स्वाद को लोगों के बीच पहचान दिलाई. उनके बाद आने वाली पीढ़ियों ने भी स्वाद और गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया. यही कारण हैं कि आज भी इन लड्डुओं का स्वाद पहले जैसा बना हुआ है. परिवार के लोग बताते हैं कि उन्होंने परंपरा को बनाए रखने के लिए आधुनिक मशीनों का उपयोग नहीं अपनाया, जिससे असल स्वाद में कभी कमी नहीं आई.

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लादू हलवाई

ऐसे तैयार होते हैं लड्डू: लड्डुओं को बनाने के लिए सबसे पहले बेसन का घोल तैयार करते हैं. घोल को काफी देर तक घोटा जाता है. इसके बाद लकड़ी से जलने वाली भट्टी पर देशी घी में बूंदी तैयार करते हैं. फिर बूंदी की सिकाई अच्छे से की जाती है. बूंदी का दाना मीडियम साइज का रखते हैं. इस दौरान चीनी की चाशनी तैयार की जाती है. अब इसमें देशी घी में सिकी बूंदी को भिगोया जाता है. चाशनी में नरम होने के बाद बूंदी में इलायची और मगज (तरबूज के बीज) मिक्स करते हैं. इसके बाद कारीगर हाथ से ही बूंदी के लड्डू तैयार करते हैं. कई बार लड्डुओं में हरे और लाल रंग की बूंदी भी मिलाते हैं.

लादू हलवाई

सीकर के लड्डू केवल स्वाद के लिए ही नहीं, बल्कि धार्मिक आयोजनों में भी खास जगह रखते हैं. खाटू श्याम जी, जीण माता और हर्षनाथ जैसे प्रमुख मंदिरों में सवामणी के लिए सबसे अधिक मांग इन्हीं लड्डुओं की होती है. दूर-दराज से आने वाले भक्त 50 किलो की सवामणी के लिए कई दिन पहले बुकिंग करवा लेते हैं. खाटू श्याम जी के मेले के दौरान हलवाई रात-दिन लगातार काम करते हैं, क्योंकि इस समय ऑर्डर इतने बढ़ जाते हैं कि पूरी टीम को अतिरिक्त कारीगर बुलाने पड़ते हैं. यही कारण है कि मंदिरों की सवामणी में सीकर के लड्डू एक परंपरा की तरह शामिल हो चुके हैं.

लादू हलवाई

सीकर में आज लगभग 100 से अधिक दुकानों पर ये पारंपरिक लड्डू तैयार किए जाते हैं, जिनमें से कई दुकानों का इतिहास सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. बड़े त्योहारों, मेलों और शादियों के सीजन में इनकी बिक्री कई गुना बढ़ जाती है. बड़ी दुकानों पर एक दिन में कई क्विंटल लड्डू बिकते हैं, जबकि साधारण दुकानों पर भी प्रतिदिन 50 से 100 किलो की बिक्री होती है. स्थानीय लोग बताते हैं कि लड्डू के कारण सीकर की मिठाई उद्योग को नई पहचान मिली है और अब यह शहर राजस्थान में विशेष मिठाई केंद्र के रूप में जाना जाता है.

लादू हलवाई

लादू हलवाई के लड्डुओं से सैकड़ों लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पाते हैं. देसी घी, पारंपरिक विधि और पीढ़ियों की मेहनत ने इन लड्डुओं को ऐसा ब्रांड बनाया है, जो सिर्फ मिठाई नहीं बल्कि सीकर की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है. आज भी देशभर से लोग सिर्फ इन लड्डुओं का स्वाद लेने यहां पहुंचते हैं. यही वजह है कि आधुनिक मिठाइयों के जमाने में भी लादू हलवाई का देसी लड्डू अपनी अलग और मजबूत पहचान बनाए हुए है.

First Published :

December 04, 2025, 16:06 IST

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सीकर के लादू हलवाई के लड्डू, पूर्व उपराष्ट्रपति की पहली पसंद ही क्यों?

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