दिवाली पर राजस्थानी नागौर कंठी गहना क्यों है खास?

नागौर. राजस्थान की हर चीज में अपनी अलग पहचान और रंग होता है फिर चाहे वह पहनावा हो या गहना. आज हम जिस गहने की बात कर रहे हैं वह है राजस्थानी कंठी, जो महिलाओं के गले में पहने जाने वाला पारंपरिक बेहद सुंदर गहना है. शादी के समय ससुराल की तरफ से दुल्हन को सोने या चांदी की कंठी उपहार के रूप में दी जाती है.
कहा जाता है कि यह कंठी प्यार ,सम्मान और सौभाग्य का प्रतीक होता है. ये एक एक पारंपरिक गले में पहनने वाला गोल हार होता है. जिसे लाल और पीले धागे से तैयार किया जाता है. इसके ऊपर सुंदर मोती ,फुलकारी डिजाइन और बीच में जड़ा छोटा सा लटकन होता है जो इसे बेहद ही सुंदर आकर देता है. कंठी के दोनों छोर पर रेशमी पीली डोरियां होती है जिससे इसे गले में बांधा जाता है.
इसमें पीला रंग मंगल और पवित्रता का प्रतीक
शादी के बाद जब दुल्हन पहली बार ससुराल आती है तो ससुराल की महिलाएं उसे कंठी पहनाकर आशीर्वाद देती है. यह रस्म इस बात का प्रतीक है कि अब वह घर की बहू और कुल की लक्ष्मी बन चुकी है, इसलिए इसे सौभाग्य कंठी या मांगलिक कंठी भी कहा जाता है.राजस्थान में हर रंग की अपनी बोली होती है और कंठी में इन रंगों का बड़ा महत्व होता है. कंठी में लगा हुआ लाल रंग प्रेम, उत्साह और वैवाहिक सौभाग्य का प्रतीक होता है, तो वही म होता है जो हर शुभ कार्य में जरूरी होता है. इसी के साथ सुनहरी चमक समृद्धि ,वैभव और मां लक्ष्मी की कृपा का प्रतीक मानी जाती है, इसलिए कंठी में लाल ,पीले रंग और सुनहरी चमक का प्रयोग किया जाता है. इसे शुभ अवसर पर पहनना बहुत शुभ माना जाता है.
दीवाली आते ही बाज़ारों में बढ़ जाती है इसकी मांग
दिवाली को मां लक्ष्मी और शुभता का त्योहार माना जाता है. इस दिन महिलाएं राजस्थानी पारंपरिक पोशाक ,घाघरा -लुगड़ी, चुनरी या राजपूती पोशाक के साथ कंठी पहनती है. यह कंठी सोने या चांदी की होती है, ऐसा माना जाता है की दिवाली की रात अगर कंठी पहनकर लक्ष्मी पूजन किया जाए तो सुख- समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है. इस दिन कंठी को शुभता की डोर कहा जाता है जो परिवार को एक सूत्र में बांधती है. यही कारण होता है की दिवाली जैसे ही पास आती है सीकर के बाजार में सुनार की दुकान पर इसकी मांग बढ़ जाती है.
राजस्थानी कंठी बनवाने के लिए नागौर में भीड़ लगी हुई होती है. दुकानों पर इन कंठीयों की अलग-अलग डिजाइन मिल रही है. कारीगरों ने इन कंठी को अब आधुनिक फैशन रूप भी दिया है इसमें पत्थर जड़ित, मिरर वर्क या हल्के गोल्ड प्लेटेड रूप होते हैं. नागौर में दुकानदारों का कहना है कि इस साल पारंपरिक कंठियों की बिक्री 30 से 40% तक बढ़ी है क्योंकि लोग फिर से पुराने पारंपरिक गहनों की ओर लौट रहे हैं.
अब कंठी केवल ग्रामीण इलाकों तक की सीमित नहीं रही, शहरों में भी महिलाएं इसे राजस्थानी पोशाक ,साड़ी और लहंगे के साथ पहनती है. इसे अब फैशन ज्वेलरी के रूप में पसंद किया जा रहा है ,यह वह धरोहर है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी जाती है. दिवाली के इस पावन अवसर पर जब महिलाएं कंठी पहनती है तो वह न केवल श्रृंगार को दिखाती है, बल्कि वह शेखावाटी परंपरा और संस्कृति को भी दिखती है.