अनोखी परंपरा…. राजस्थान के इस शहर में चील को खिलाए जाते हैं आटे-गुड़ से बने स्पेशल गुलगुले, जानें वजह

निखिल स्वामी/बीकानेर. धर्मनगरी के नाम से विख्यात बीकानेर शहर में लोग भगवान के प्रति गहरी आस्था और अटूट विश्वास रखते है. यहां लोग पूरे दिन दान पुण्य करते रहते हैं. बीकानेर में एक विश्व प्रसिद्ध करणी माता का मंदिर है. करणी माता का प्रतीक चिन्ह चील को माना जाता है. बीकानेर की स्थापना भी राजा-महाराजा ने करणी माता के आशीर्वाद से किया था. करणी माता के प्रतीक चिन्ह चील में लोगों की गहरी आस्था है. इस शहर पर आसमान में चील मंडराती रहते हैं. जिससे लोग करणी माता का आशीर्वाद मानते है. इस शहर में एक ऐसी दुकान है, जहां चीलों के लिए स्पेशल गुलगुले बनाए जाते हैं. यह दुकान बीकानेर के सट्टा बाजार स्थित है जो पूरे विश्व में एकमात्र ही है. करीब 90 साल से यह गुलगुले बनाकर चीलों को खिलाने का काम चल रहा है.
बुलाकीराम मोदी ने बताया कि यहां तीन पीढ़ी से गुलगुले खिलाने का काम चल रहा है. यहां दोपहर में चीलों का आना शुरू हो जाता है, जो शाम 5 से 6 बजे तक आते-जाते रहते हैं. चील जैसे ही आसमान में मंडराने लग जाते हैं तो बुलाकी राम आसमान में गुलगुले को उछालते है और चील अपने पंजे में उन गुलगुलो को पकड़ लेते हैं. वह बताते हैं उनके यहां रोजाना 30 किलो गुलगुले बनाए जाते हैं. कई बार तो गुलगुले गाय, कुत्ते और चीलों को खिलाते है. इसके अलावा इन गुलगुले को लोग मंदिर में भगवान को भी चढ़ाते हैं. यहां गुलगुलों की कीमत 120 रुपए किलो है.
इस तरह दूर होेती है परेशानियां
यहां पर गुलगुले बनाए जाते है. उनके दादाजी ने इसकी शुरुआत की थी, बीकानेर की स्थापना भी करणी माता के आशीर्वाद से हुई है. पहले चीले बहुत ज्यादा हुआ करती थी. यह गुलगुले आटे और गुड के बनाए जाते हैं. इन गुलगुलों को करणी माता को प्रसाद के रूप में भी भोग लगाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार यहां रोजाना कई लोग आते हैं, जिन्हें किसी तरह का कोई कष्ट होता है तो वो लोग चील को गुलगुले खिलाकर अपने परेशानियों को दूर करते हैं. लोगों में आस्था है कि इन चीलो को गुलगुले खिलाने से उनके कष्ट दूर हो जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : August 18, 2023, 11:43 IST